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अविनाश पोईनकर की पुस्तक 'सुरजागड : विकास की विस्थापन?' का विमोचन


गड़चिरोली की खदानों का सामाजिक जीवन पर प्रभाव सामने आया

नागपुर/चंद्रपुर। चंद्रपुर के प्रसिद्ध युवा लेखक, शोधकर्ता और स्वतंत्र पत्रकार अविनाश पोईनकर की चर्चित शोध पुस्तक 'सुरजागड : विकास की विस्थापन?' का हाल ही में यशवंतराव चव्हाण प्रतिष्ठान, मुंबई में आयोजित समता महोत्सव में विमोचन किया गया।

प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय, बेंगलुरु के प्रो. नीरज हातेकर, 'जनतेचा महानायक' पत्रिका के संपादक और सामाजिक कार्यकर्ता सुनील खोब्रागड़े, भटके-विमुक्त आंदोलन से जुड़े अहिल्यानगर के सामाजिक कार्यकर्ता अरुण जाधव, अकोला की सामाजिक कार्यकर्ता व सरपंच रजनी पवार, हेमलकसा के सामाजिक कार्यकर्ता चिन्ना महाका, कोरो संस्था की मुमताज शेख, सुप्रिया जान, कुणाल रामटेके, मेलघाट की सामाजिक कार्यकर्ता व सरपंच गंगा जावरकर, प्रमोद काले, तुकाराम पवार आदि के हाथों इस पुस्तक का विमोचन संपन्न हुआ।

नक्सल प्रभावित गड़चिरोली जिले के खदान प्रभावित आदिवासियों के संघर्ष की वास्तविकता को उजागर करने वाली यह पुस्तक बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है। इस पुस्तक की प्रस्तावना प्रसिद्ध विचारक व संपादक प्रो. सुरेश द्वादशीवार ने लिखी है, जबकि नर्मदा बचाओ आंदोलन की प्रणेता मेधा पाटकर ने पुस्तक के लिए ब्लर्ब लिखा है। इसके अलावा, महाराष्ट्र गांधी स्मारक निधि के डॉ. कुमार सप्तर्षि, संविधान एवं नागरिक अधिकार विश्लेषक एड. असीम सरोदे, वरिष्ठ समीक्षक व विचारक डॉ. प्रमोद मुनघाटे ने भी इस पुस्तक पर महत्वपूर्ण अभिप्राय दिए हैं।

इस अवसर पर प्रमुख विचारक रावसाहेब कसबे, सुजाता खांडेकर, अंजलि मायदेव, संध्या नरे-पवार, सुभाष वारे, अभिजीत कांबळे, दिशा पिंकी शेख, डॉ. चंद्रिका परमार, भीम रासकर, डॉ. विभूति पटेल, सुरेश सावंत, संजय सोनवाणी सहित महाराष्ट्र के सामाजिक, सांस्कृतिक और पत्रकारिता क्षेत्र के कई प्रतिष्ठित व्यक्तित्व उपस्थित थे।

लेखक अविनाश पोईनकर आदिवासी और ग्रामीण विकास के क्षेत्र में कार्यरत एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं। गड़चिरोली के अत्यंत दुर्गम क्षेत्रों में रहकर उन्होंने खोजी पत्रकारिता के माध्यम से यह शोधपरक पुस्तक लिखी है। सुरजागड सहित प्रस्तावित खदानों के कारण स्थानीय आदिवासियों पर पड़ने वाले प्रभाव, पूंजीवादी नीतियां, माओवाद, प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की भूमिका, जल-जंगल-जमीन से जुड़े आदिवासी कानूनों की वर्तमान स्थिति, आंदोलनों तथा आम आदिवासियों के शोषण पर इस पुस्तक में विस्तार से चर्चा की गई है। इस शोधकार्य के लिए पुणे के साधना साप्ताहिक ने तांबे-रायमाने अध्ययनवृत्ति प्रदान की थी। इस पुस्तक को पुणे के हर्मिस पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित किया गया है।
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