शिक्षा से होने वाला शोध जरूरतों के अनुसार नवाचार करने वाला होना चाहिए : केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी
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विदर्भ गौरव प्रतिष्ठान नागपुर और यशवंतराव चव्हाण सेंटर नागपुर के संयुक्त तत्वावधान में नागपुर में राष्ट्रीय शैक्षणिक परिषद भव्य रूप से संपन्न
नागपुर/हिंगणा। गुण और दोषों से युक्त व्यक्ति को उसके दोषों का निवारण करते हुए उसके गुणों को प्रोत्साहित कर जो प्रक्रिया व्यक्ति निर्माण करती है, उसी को शिक्षा कहा जाना चाहिए। शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति को एक अलौकिक शक्ति प्राप्त होती है और उसी शिक्षा के ज़रिए होने वाला शोध, अपने आसपास की ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए, आसानी से उपलब्ध संसाधनों का उपयोग कर आवश्यकताओं को पूरा करने वाला होना चाहिए - ऐसा मत केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने व्यक्त किया। वे नागपुर स्थित धनवटे नेशनल कॉलेज के मातोश्री विमलताई देशमुख सभागृह में विदर्भ गौरव प्रतिष्ठान और यशवंतराव चव्हाण सेंटर नागपुर द्वारा आयोजित राष्ट्रीय शैक्षणिक परिषद में उद्घाटन वक्ता के रूप में बोल रहे थे।
कार्यक्रम की अध्यक्षता शिक्षाविद् और शोधकर्ता पद्मश्री डॉ. जी. डी. यादव ने की, जबकि प्रमुख अतिथि के रूप में सचितानंद शिक्षा संस्था के अध्यक्ष बबनराव तायवाडे मंच पर उपस्थित थे।
आगे बोलते हुए गडकरी ने कहा कि व्यक्ति के भीतर छिपे गुणों का अहसास उसे परिस्थितियाँ और शिक्षक ही कराते हैं। यदि कोई डॉक्टर या इंजीनियर नहीं बन पाया, तो भी चलेगा, लेकिन एक अच्छा इंसान बनकर समाज का ऋण चुकाना चाहिए। शिक्षा से प्राप्त ज्ञान समाज और देश को समृद्ध करने वाला होना चाहिए, इसलिए रोजगारोन्मुखी शिक्षा आवश्यक है।
अध्यक्षीय भाषण में पद्मश्री डॉ. जी. डी. यादव ने कहा कि यदि सरकार शिक्षा पर ध्यान नहीं देती, तो वह देश को महाशक्ति बनाने का सपना कैसे देख सकती है? उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि यदि महिलाओं को केजी से पीएचडी तक मुफ्त शिक्षा दी जाए, तो इससे समाज में व्याप्त विषमता समाप्त हो सकती है। साथ ही यदि शिक्षा क्षेत्र में क्रांति लानी है, तो सरकार को इस क्षेत्र की सभी रिक्त पदों को गुणवत्ता के आधार पर भरना चाहिए।
उद्घाटन सत्र में स्वागत भाषण यशवंतराव चव्हाण सेंटर के अध्यक्ष महेश बंग ने किया, परिषद की भूमिका डॉ. कोमल ठाकरे ने प्रस्तुत की, मंच संचालन बाळासाहेब कुलकर्णी ने किया और आभार प्रदर्शन राजाभाऊ टाकसांडे ने किया।
इस अवसर पर परिषद के आयोजन में विशेष सहयोग करने वाले विश्वास एज्युकेशन सोसायटी की उपाध्यक्ष अलका काले, तायवाडे कॉलेज की प्राचार्या डॉ. शरयू तायवाडे, संत गमाजी महाराज शिक्षण संस्था की उपाध्यक्ष अरुणा बंग, सेंट पॉल इंटरनॅशनल स्कूल के संचालक विपिन टाकसाळे, अमर सेवा मंडल की स्मिता वंजारी, सर्वोदय शिक्षण मंडल के दीपक पालिवाल, धनवटे नेशनल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. श्रीकांत कोठे और वेध प्रतिष्ठान नागपुर के डॉ. मनोहर नरांजे का सत्कार केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के हाथों किया गया।
तीन सत्रों में संपन्न इस राष्ट्रीय शैक्षणिक परिषद के पहले सत्र में 'राष्ट्रीय शैक्षणिक नीति 2020' विषय पर वक्ता डॉ. ज्ञानदेव मोरे ने पर्यावरण शिक्षा को प्रमुखता देते हुए रटने की पद्धति को रोककर तर्कसंगत विचारशील शिक्षा अपनाने और शिक्षा से नेतृत्वगुणों के विकास की आवश्यकता पर जोर दिया। वहीं, सत्र की अध्यक्षता कर रहे महाराष्ट्र राज्य सुकाणू समिति के अध्यक्ष डॉ. नितीन करमळकर ने कहा कि समय के अनुसार शिक्षा और शैक्षणिक नीति में बदलाव आवश्यक है। भाषा तो केवल माध्यम है, शिक्षा किस भाषा में ली गई, यह नहीं, बल्कि वह कितनी गुणवत्तापूर्ण है, यह देखना चाहिए।
दूसरे सत्र में 'स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, संस्थान और निजीकरण' विषय पर नितीन रिढे ने बताया कि नई शैक्षणिक नीति के आर्थिक पहलुओं के कारण पारंपरिक पाठ्यक्रम बंद हो रहे हैं और निजीकरण के कारण वास्तविक गुणवत्ता से युक्त छात्रों को शिक्षा से वंचित होना पड़ता है। सत्र की अध्यक्षता करते हुए डॉ. विवेक कोरडे ने कहा कि शिक्षा का निजीकरण यानी गरीबों को शिक्षा से वंचित करने की साजिश है और शिक्षा व्यापार बन गई है। इसलिए समान दर्जे की स्कूलें और समान शिक्षा होनी चाहिए।
परिषद के तीसरे सत्र में 'शिक्षा, शिक्षक, विद्यार्थी और पालक: आपसी संबंध, समस्याएं व समाधान' विषय पर वक्ता सय्यद मुबारक ने कहा कि किशोरावस्था के बच्चों पर संस्कार डालने के लिए प्राथमिक शिक्षक और बालवाड़ी की शिक्षिकाएं बहुत बड़ी जिम्मेदारी निभाती हैं, इसलिए उनके योगदान को रेखांकित किया जाना चाहिए। वहीं, सत्र की अध्यक्षता करते हुए हेरंब कुलकर्णी ने कहा कि शिक्षक, विद्यार्थी और पालक के बीच संबंधों को मजबूत बनाना चाहिए ताकि विद्यार्थी संवेदनशील बनें, उन्हें दुख व वेदना का अहसास हो और वे प्रेमपूर्ण हों। यदि शिक्षक समाजोन्मुख विद्यार्थी बनाएं, तो वह भविष्य में एक अच्छा पालक बनेगा और स्कूल, संस्था व शिक्षक से स्थायी संबंध बनाए रखेगा।
तीनों सत्रों में चर्चकों के रूप में खुशाल कापसे, राजेंद्र डेकाटे, धनंजय पकड़े ने श्रोताओं के प्रश्न वक्ताओं तक पहुंचाकर सार्थक चर्चा करवाई। परिषद के सत्रों का संचालन क्रमशः आनंद महल्ले, रूपाली मोरे, रेखा दंडिगे-घिया और शुभदा फडणवीस ने किया।
परिषद के समारोप सत्र की अध्यक्षता नामदार पंकज भोयर ने की और प्रमुख अतिथि के रूप में कृष्णा इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस, कराड के प्रमुख सलाहकार डॉ. प्रकाश मिश्रा उपस्थित थे।
समारोपीय सत्र में बोलते हुए नामदार पंकज भोयर ने कहा कि जिस दिन शिक्षक मन से काम करेंगे, उस दिन शिक्षा क्षेत्र में अवश्य बदलाव आएगा। शिक्षा क्षेत्र में काम कर रहे लोगों ने यदि अपनी जिम्मेदारी ईमानदारी से निभाई, तो संकट में आई जिला परिषद की स्कूलें फिर से नई ऊर्जा के साथ खड़ी हो जाएंगी और निजी स्कूलों से मुकाबला कर सकेंगी।
इस परिषद के सफल आयोजन के लिए प्रशांत वराडे, रवि देशमुख, निलेश खांडेकर, उल्हास मोगलेवार, अनिल इंदाने आदि ने अथक प्रयास किए। इस परिषद में संपूर्ण महाराष्ट्र से 500 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया।