Loading...

आज मुर्शिदाबाद


सुना था 
धर्म मानुष बनाता है 
किंतु आज दिखा 
यह अमानुष ही नहीं,
पिशाच बनाता है।

रोते बिलखते बच्चे 
आँसुओं में डूबे परिजन 
मिटते सिंदूर और 
अस्पष्ट भविष्य 
अमावस सी काली,

रक्तरंजित धरा पर
धू धू फैला हाहाकार 
आज धरम नहीं 
मानवता की है दरकार,

न पूछो 
कौन सही, कौन ग़लत
पूछ लो उन विधवाओं से
दुधमुँहे बच्चों से,
आज कोई भाषण 
नहीं प्रयोजन,

धराशायी है 
आज मानवता
सदमें में है
ईश्वर-अल्लाह-जीसस 
कुछ नहीं इनका अस्तित्त्व 
अगर रोक न पाएँ
यह नग्न पाशविक नृत्य

भले थे हम 
प्रस्तर युग में
तब -
क्योंकि 
तब खोखला 
धरम नहीं था।

- डॉ. शिवनारायण आचार्य 'शिव'
  नागपुर, महाराष्ट्र 
काव्य 4018337594507445535
मुख्यपृष्ठ item

ADS

Popular Posts

Random Posts

3/random/post-list

Flickr Photo

3/Sports/post-list