राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज : आध्यात्म, सामाजिक सुधारक और देशभक्ति का संगम
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महाराष्ट्र संतों की भूमि है। विदर्भ में भी संतों की महान परंपरा रही है। विदर्भ के संतों की विशेषता यह थी कि वे व्यक्ति के आध्यात्मिक उत्थान पर जोर देते थे। वे व्यक्ति और समाज दोनों को अभिन्न मानते थे। दरअसल, हम जिस समाज में रहते हैं। 20वीं सदी में विदर्भ के संतों ने हमें सिखाया कि उस समाज के प्रति हमारा कुछ दायित्व है। उन्होंने आत्म-सुधार के साथ-साथ सामाजिक उत्थान पर भी जोर दिया। तुकड़ोजी महाराज इस परंपरा में एक युगप्रवर्तक संत हैं।
राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज का जन्म 30 अप्रैल, 1909 को अमरावती जिले के यावली गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम बंदोपंत इंगले और माता का नाम मंजुला था। वह ब्रह्मभट्ट वंश के थे। उन्हें भट कहा जाता था, जो भट शब्द का अपभ्रंश है। 11 मई 1909 को उनका नामकरण संस्कार किया गया और माढ़न के बुद्धिमान प्रज्ञाचक्षु संत श्री गुलाबराव महाराज और अकोट के श्री हरि बुवा ने शिशु का नाम 'माणिक' रखा। दोनों ने बच्चे को आशीर्वाद दिया और तुरंत चले गये। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा चांदुर बाजार में प्राप्त की। श्री संत अडकोजी महाराज उनके गुरु हैं। उन्होंने अपने गुरु से योगाभ्यास, ध्यान, साधना और भजन- कीर्तन की शिक्षा प्राप्त की। तुकड़ोजी महाराज स्वयं कहते थे, 'गुरु ही मेरा सबकुछ है'। तुकड़ोजी महाराज का दृढ़ विश्वास था कि गुरु आध्यात्मिक जीवन का स्रोत है। इसलिए, वे गुरु को न केवल एक शिक्षक के रूप में, बल्कि जीवन के मार्गदर्शक के रूप में भी पूजते थे।
बचपन से ही उनमें आध्यात्मिक जीवन के प्रति रुचि थी। उन्होंने विभिन्न संतों की उपस्थिति में कीर्तन, भजन और ध्यान का अभ्यास किया और आत्म- साक्षात्कार की ओर कदम बढ़ाये। महाराज ने समाज में अंधविश्वास, नशाखोरी और छुआछूत के खिलाफ आवाज उठाई। उनके कीर्तन से समाज में जागरूकता पैदा हुई। उन्होंने ग्राम सुधार के लिए एक पुस्तक 'ग्रामगीता' लिखी, जिसमें उन्होंने स्वच्छता, सहयोग, स्वावलंबन और कर्तव्य पर जोर दिया। यह पुस्तक आज भी अनेक ग्रामीण विकास कार्यक्रमों का आधार है।
- राष्ट्रसंतों की साहित्यिक संपदा अपार है : आदरणीय राष्ट्रीय संत तुकड़ोजी महाराज एक क्रांतिकारी लेखक थे। उन्होंने मराठी और हिंदी दोनों में साहित्य लिखा। उनमें पद्य के साथ-साथ गद्य भी है। उनकी कविता में विभिन्न विधाएँ जैसे अभंग, भजन, श्लोक, पोवाडे, ओवी, बरखा, ग़ज़ल, कव्वाली शामिल हैं, और उनके गद्य में विभिन्न विषयों पर लेख शामिल हैं। उनके भाषणों को भी संकलित, संपादित और उपलब्ध कराया गया है।
- मराठी काव्य साहित्य : भजन 1160, अभंग 2109, श्लोक 676, ओवस 5149, पूवदेस 10, मंगलाष्टक 11,
- हिंदी पद्य साहित्य : 2369 भजन, 1746 बरखा, 8 प्रार्थनाष्टक, 5 मंगलाष्टक, इसके अलावा 13 आरती, 4 स्वागत गीत, 818 सुविचार, श्री गुरुदेव महिमामृत की 32 पंक्तियाँ और साथ ही लगभग 615 मराठी हिंदी भाषण और लेख महाराज द्वारा लिखे गए हैं और श्री गुरुदेव और सेवा मंडल द्वारा प्रकाशित किए गए हैं। वास्तविकता यह है कि कुछ साहित्य अप्रकाशित सामग्री के कारण अभी तक प्रकाश में नहीं आ पाया है। यह विशाल साहित्य पूज्य महाराज की लेखनी और वाणी के माध्यम से प्रकट हुआ। इससे पता चलता है कि उनमें अद्वितीय बुद्धि और प्रतिभा थी।
1941 में महाराज ने व्यक्तिगत सत्याग्रह किया तथा 1941 के ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन के जनांदोलन में भाग लिया। उन्होंने उस समय ब्रिटिश शासकों द्वारा अपनाए गए अमानवीय दमनकारी उपायों का कड़ा विरोध किया। 1942 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और नागपुर तथा रायपुर सेंट्रल जेलों में कैद कर दिया गया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद संत तुकड़ोजी ने ग्रामीण पुनर्निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने 'अखिल भारतीय श्री गुरुदेव सेवा मंडल' की स्थापना की तथा एकीकृत ग्रामीण विकास के लिए कई कार्यक्रम विकसित किए। उनका कार्य इतना प्रभावशाली था कि भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें 'राष्ट्रसंत' की उपाधि प्रदान की।
उन्होंने 3 जुलाई 1949 को पंढरपुर में एक संत सम्मेलन आयोजित किया। उन्होंने विश्व धर्म परिषद और विश्व शांति के लिए सियाम, बर्मा और जापान का दौरा किया। वहां, सभी धर्मों और सभी का भगवान एक है, जैसा कि खंजरी पर एक भजन में कहा गया है (हर देश में तू हर भेष में तू! तेरे नाम अनेक तू एक है)
11 अक्टूबर 1968 को तुकड़ोजी महाराज भौतिक रूप में इस संसार से चले गए, लेकिन उनके विचारों का प्रकाश आज भी हमारे जीवन को प्रकाशित कर रहा है। उन्होंने आत्मनिर्भरता और सेवापूर्ण जीवन का जो संदेश दिया, वह आज भी उतना ही जीवंत है, जितना उस समय था। तुकड़ोजी महाराज कहते हैं - 'जीवन की सच्ची पूर्णता सेवा में निहित है'। आइए, हम इस अमूल्य शिक्षा को अपने जीवन का आदर्श वाक्य बनाएं और उनके सपने को साकार करें। (यह उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी)
शिवाजी कॉलोनी, हुडकेश्वर रोड
नागपुर, महाराष्ट्र