बेचारी औरत..
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रात के 10:30 बज रहे थे और देवांश फोन पर किसी को लगातार समझा रहा था कि हम आपके साथ हैं। आपको चिंता करने की जरूरत नहीं, कोई भी तकलीफ हो तो हमें कहिए। आप हमारे घर की मेंबर जैसी हैं, रोइए मत बस एक फोन कीजिए मैं हमेशा आपके साथ हूं।
रूपाली जो देवांश की पत्नी थी उसने पूछा इतनी रात को कौन है और क्यों रो रहा था? मनोज ने जवाब दिया - हमारे यहां से माल लेकर जाती हैं, मेरी कस्टमर है पूनम, उसका पति उसे बहुत तंग करता है। कोई काम नहीं करता, सारा खर्च पूनम को ही उठाना पड़ता है। निकम्मा और अय्याश आदमी है। पूनम बेचारी मेहनत करके अपने पति को भी पाल रही है और अपना घर भी चला रही है। रूपाली ने पूछा क्या आप उसके पति से मिले हैं, मनोज ने कहा - हां कई बार, अपनी पत्नी के साथ आया था माल लेने के लिए, रूपाली ने कहा तो क्या वह पत्नी को छोड़कर चला गया? मनोज - नहीं सारा माल कार में रखवाया था। फिर रूपाली ने पूछा कि क्या किसी और ने उसके पति की बुराई की ? मनोज- नहीं पूनम ने ही बताया था कि उसका पति कोई काम नहीं करता। एकदम अय्याश किस्म का आदमी है, घर की कोई भी जिम्मेदारी वह नहीं उठाता, सारा कुछ पूनम को ही करना पड़ता है उसी की कमाई से घर चल रहा है।
यह सब सुनकर रूपाली को थोड़ा सा अजीब लगा उसने मनोज को समझाया कोई भी अच्छे घर की औरत किसी अनजान या पहली बार मिले हुए परपुरुष के सामने अपने घर और पति की बुराई नहीं करेगी। आप थोड़ा सा ध्यान रखिएगा कि अपना माल बेचने के चक्कर में कहीं और कोई गलती मत कर बैठना। पूनम जैसी औरतों की तरफदारी करने की जरूरत नहीं है पर जैसे कि यह कहावत मनोज के घर पर ही चरितार्थ हो रही थी विनाश काले विपरीत बुद्धि। वह धीरे- धीरे पूनम को दुख से बाहर लाने के चक्कर में रूपाली के जैसी नेल पेंट, रूपाली जो लिपस्टिक लगाती थी वह, उसके कपड़े पहनने का स्टाइल जिसकी पूनम ने तारीफ की थी और कहा था कि सर मैंने अपनी जिंदगी में ऐसा कुछ नहीं किया। मनोज ने उसकी हर इच्छा पूरी की और वह सारा कुछ उसको ले जाकर देने लगा। रूपाली रोज- रोज देवांश को समझाती रही लेकिन पूनम खुद को बेचारी बता कर अपने काम करवाती रही। धीरे- धीरे उसने घर में आना- जाना शुरू कर दिया। बच्चों से भी बेतकल्लुफ होने लगी। मनोज के साथ दो- दो घंटे बैठकर बिजनेस डिस्कस करती और रूपाली उन्हें चाय नाश्ता परोसती रहती।
पूनम की उलझने सुलझाने के चक्कर में देवांश धीरे- धीरे अपने घर और बच्चों से दूर होने लगा। घर में सबको पाई- पाई का मोहताज कर दिया, घर की ज़रूरतें पूरा करने के लिए सारा जेवर, घर, दुकान गिरवी रख दिया गया था, यहां तक कि जब बच्चों की फीस देने की बारी आती तब भी उसे सोचना पड़ता है कि मैं क्या सामान गिरवी रखूं और फीस दूं। कमाई का कुछ भी आता- पिता नहीं था जिसने भी देवांश को समझाना चाहा वह उसका दुश्मन हो गया। इस बीच- बीच पूनम के पति से भी मिलने का मौका मिला। अच्छा खासा इंसान जो मेरे प्रौढ़ पति देवांश जो 58 साल के हैं उनसे दिखने में भी कई गुना अच्छा था परंतु कहते हैं ना कि प्रौढ़ अवस्था का प्यार जो किसी जवान लड़की से हो जाए वह आपकी सालों की गृहस्थी उजाड़ देता है। यही बात आज रूपाली के घर पर साबित हो रही थी। रूपाली ने पूनम का सोशल मीडिया भी देखा पर उसने कहीं भी अपने पति की फोटो नहीं डाली थी धीरे- धीरे समझ आने लग गया कि वह किसी दुख या देवांश के प्यार में हमारे घर तक नहीं आई थी, सिर्फ और सिर्फ पैसे के लालच में घुसी थी।
इससे पहले भी वह दो घर बर्बाद कर चुकी थी, रूपाली ने पूरी कोशिश की परंतु देवांश का व्यवहार दिन पर दिन रुखा होता गया। खाने के समय पर वह थाली परोसती तो खाने में गलतियां निकालना शुरू कर देता था, रूपाली साथ में बैठकर खाना खाती थी लेकिन अब जैसे ही वह निवाला तोड़ती, वह उसे चार चीज लाने के लिए कह देता कुछ ना कुछ करके उसे खाने पर से उठा देता था। जिनको महसूस करने के बाद रूपाली ने उसके साथ खाना खाना छोड़ दिया, दूरियां और बढ़ने लगी अब देवांश रोज रात में एक घंटा खाना खाता था अपने फोन के साथ बैठकर। धीरे- धीरे उसके देखने का अंदाज, बोलने की टोन और नफरत से भरे हाव- भाव रूपाली की बर्दाश्त से बाहर हो गए। उसने हर तरह से कोशिश की किंतु कहते हैं ना कि परनारी पर लोलुप पुरुष और दौलत के लिए बिछी हुई स्त्री किसी भी हद तक जा सकते हैं। रुपाली के साथ भी यही हुआ। रूपाली ने तलाक ले लिया और बच्चों को लेकर अलग हो गई।
देवांश की आंखों पर पराई औरत की हवस का पर्दा पड़ा था। आज वह अपने बच्चों को छोड़कर पूनम ओर उसके बेटे को संभाल रहा है और अपना घर टूटने का सारा दोष रूपाली के सिर पर डाल कर अपने मन के अहम को संतुष्ट कर रहा है। रूपाली आज भी मन में यही सवाल लिए हुए जिंदगी काट रही है कि किस प्रकार एक बेचारी औरत ने एक हंसती खेलती गृहस्थी को तबाह कर दिया पर यहां पर बेचारी औरत है कौन? शायद देवांश को ठोकर खाने के बाद ही यह समझ आएगा। मैं अपने सभी भाइयों से प्रार्थना करुंगी कि अपने घर की निजी बातें बता कर हमदर्दी बटोरती औरतों से सावधान रहे यह किसी की सगी नहीं होती जो अपने जीवनसाथी पर कीचड़ उछाल सकती हैं वह किसी और का भला कैसे कर सकती हैं, कृपया अपनी आंखें और दिमाग हमेशा खुले रखें, अपने घर में सुखी रहें।
- डॉ. रुपिंदर छतवाल
नागपुर, महाराष्ट्र