श्री परशुराम शोभायात्रा - 4 मई को एक लघु महाकुंभ का होगा आयोजन
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नागपुर (जितेन्द्र शर्मा)। अपने अजर, अमर एवं अविनाशी त्रिगुणात्मक स्वरूप को दैदीप्यमान करते भगवान परशुरामजी निर्विवाद रूप से ब्राह्मण एकता के सूत्रधार बने हैं। ब्राह्मणों को एकत्रित करना बारिश में पतंग उड़ानें जैसा कठिन कार्य है, लेकिन परशुराम सर्व भाषीय ब्राह्मण संघ ने इन सभी चुनौतियों को अंगीकार करते हुए अपने आराध्य के प्रति पूर्ण निष्ठावान रहते हुए लगभग ३० वर्ष पूर्व ब्राह्मण परिवारों को जोड़ने का संकल्प लिया था। इसके लिए अक्षय तृतीया पर ‘परशुराम जन्मोत्सव’ कार्यक्रम आयोजित करने का अनूठा प्रण लिया एवं अपने समर्पित कार्यकर्ताओं के सार्थक पुरुषार्थ से इसे एक आदर्श एवं सफलतम आयोजन सिद्ध करने का मापदंड स्थापित किया है।
परशुराम जन्मोत्सव अंतर्गत सभी भाषीय एवं प्रांतीय ब्राह्मण संगठनो को साथ लेकर शोभायात्रा का प्रारंभ किया गया। अपने शिशुत्व काल के आरंभिक चरण को आगे बढ़ाते हुए शोभायात्रा की यौवनावस्था पूर्णिमा के चाँद की तरह समग्र रूप से प्रकाशमान होती हुई संपूर्ण समाज को आलोकित कर रही है। ब्राह्मण समाज का एकत्रित समुदाय, श्री परशुरामजी का दिव्य रथ, मां श्री रेणुका माता, माहूरगढ़ से प्रज्वलित अखण्ड ज्योत के साथ लोकनृत्य, भजनों की प्रस्तुति एवं प्रेरक- सामयिक प्रसंगों के साथ' 'पुरुषार्थ एवं कृपा' का अद्वितीय पंचामृत योग श्री परशुराम शोभायात्रा के माध्यम से ब्राह्मण समाज के लिए प्रेरणादायक सिद्ध हुआ है।
भारत के नाभि केन्द्र, नागपुर की इस शोभायात्रा के माध्यम से ब्राह्मण परिवारों एवं संगठनों का एकत्रीकरण संपूर्ण मध्य भारत में अनुकरणीय सिद्ध हुआ है। इसको देखकर अनेक तहसील एवं जिला क्षेत्रों में इसी प्रकार ब्राह्मण एकता की पदछाप स्थापित हुई है, जो हमें श्रीमद्भगवद्गीता के ‘स्वधर्म’ सिद्धांत को प्राप्त करने जैसा है। स्वधर्म को कहीं खोजने नहीं जाना पड़ता, जिस समाज में हमनें जन्म लिया है, उसकी सेवा करने का धर्म हमारे आरंभकर्ताओं एवं निर्वाहकरताओ को प्राप्त हुआ है।
श्री परशुराम शोभायात्रा इसे केवल अपनी संगठनात्मक शक्ति प्रदर्शन तक ही सीमित नहीं रखकर अपनी कल्पनाओं से इसे और अधिक व्यापक रूप प्रदान किया गया है। धर्म, समाज की आवश्यकता एवं अपने पूर्वजों के बलिदान से जोड़ने का अदभुत त्रिवेणी संगम बनाकर इसके पंखों को अधिक सदृढ़ रूप प्रदान किया गया है। परशुराम शोभायात्रा एक ‘लघु महाकुंभ’ का स्वरूप धारण कर चुकी है।
यह दृष्टि, यह आकांक्षा, यह महान भावना के साथ जब काम किया जाता है तो साधनों की व्यवस्था परमेश्वर स्वयं करवा देते हैं। बाह्य कर्म की सहायता के लिए आर्थिक साधनरूपी करण की पूर्ति स्वतः सिद्ध हो जाती है। युवा पीढ़ी से मैं आवाहन करता हूं कि वे स्वयंस्फूर्त होकर स्वधर्म रूपी इस महान कार्य में बढ़कर आगे आए, अपने गिलहरी प्रयासों से इस यज्ञ में आहूति प्रदान करें, यह पुनीत कार्य आपके चहुंमुखी विकास को गति प्रदान करेगा ऐसा मुझे पूर्ण विश्वास है क्योंकि परमपिता परशुरामजी तो स्वयं इस रथ के सारथी बने हुए हैं। समाज के सभी से मेरा पुनः विनम्र आग्रह है कि वे सभी अपना परोक्ष - अपरोक्ष सहयोग प्रदान कर इस पवित्र " महाकुंभ "( श्री परशुराम शोभायात्रा) में डुबकी लगाकर स्वयं को कृतार्थ करेगें जिससे हम अपनी संख्याबल प्रदर्शित करने का आवश्यक समीकरण भी प्राप्त कर सकेंगे।