न्यायधीश को न्याय और समानता की रक्षा करनी चाहिए: शशि दीप मुंबई
https://www.zeromilepress.com/2025/03/blog-post_944.html
नागपुर/मुंबई। गत दिनों इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्र ने एक अजीबोगरीब फैसला सुनाया।जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्र ने फैसले में कहा है कि किसी नाबालिग लड़की के निजी अंग पकड़ना, उसके पायजामे की डोरी तोड़ना और उसे घसीटने की कोशिश करना दुष्कर्म या दुष्कर्म के प्रयास का मामला नहीं बनता। जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्र के इस विवादित आदेश की चर्चा पूरे देश में हो रही है। देश भर में उस पर आई प्रतिक्रियाएं आना स्वाभाविक है। देश की ख्यातिमान समाजसेवी, पत्रकार द्विभाषी लेखिका श्रीमती शशि दीप मुंबई ने इस विषय पर देश भर की विभिन्न क्षेत्रों में निवासरत महिला विभूतियों के विचार जानने चाहे।
श्रीमती शशि दीप मुंबई ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि "लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ पत्रकारिता से जुड़े होने के नाते इस वक्तव्य को सुनकर मैं अत्यंत हैरान हूं और ऐसे में व्यक्तिगत तौर चुप बैठना कायरता होगी। स्वयं कानून के रक्षक के मुँह से ऐसा वक्तव्य निकलना अत्यंत निंदनीय है जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्र जी को न्याय और समानता की रक्षा करनी चाहिए, न कि अपराधियों को बचाने या उनके अपराधों को बढावा देने का प्रयास करना चाहिए। ऐसे वक्तव्य से समाज में गलत संदेश जाता है और उनकी स्वयं की मानसिकता भी उजागर हो गयी है। कानून के रक्षक को अपने पद की गरिमा और जिम्मेदारी को समझना चाहिए और न्याय की रक्षा करनी चाहिए।
कल्पना रॉय होम मेकर/ राजनीतिक समीक्षक अहमदाबाद, गुजरात ने कहा कि "कानून नागरिकों की सुरक्षा के लिए होता हैं न कि अपराधियों की सुरक्षा के लिए, ऐसे लोगों के कारण ही २-३ साल के बच्चों को गुड टच बैड टच सिखाना पड़ रहा हैं, ऐसे जज ने तो सम्पूर्ण समाज को शर्मिंदा कर दिया है।"
शोमा सरकार होम मेकर/समीक्षक भोपाल ने कहा कि "मैं एक साधारण नागरिक हूं जिसे कानून की बहुत विस्तार से जानकारी नहीं है। लेकिन इस तरह की टिप्पणी सुनकर लगा कि क्या आरोपी ने किसी तरह से कोई प्रलोभन दिया या राजनीतिक दबाव बनाया? क्या इतनी ओछी मानसिकता हो सकती है?"
मंजू शर्मा रिटायर्ड (दिल्ली प्रशासन)/आध्यात्मिक लेखिका दिल्ली ने कहा कि "भगवान बचाये आज की न्याय व्यवस्था से। पूरी बिकी हुई लाचार कानून व्यवस्था पर रोना आता है। आज जो कुछ भी समाज में घटित हो रहा है, उसके लिए समाज ही ज़िम्मेदार है।"
श्रीमती मेधा मोदी अधिवक्ता विचारक मुंबई ने कहा कि न्यायाधीशों को इस तरह की अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल करने से बचना चाहिए जिसे सुनने में हम भारतीयों को शर्म आती है। य़ह संभावित अपराधियों को इस तरह के मानदंडों के तहत खुद को ढालने और भी जघन्य अपराध करने के लिए प्रेरित करता है।"
आरती चव्हाण इंटीरियर डिजाइनर मुंबई ने न्यायलय की इस टिप्पणी पर खेद व्यक्त करते हुए कहा कि यदि यही जवाब है तो बता दें कि बलात्कार केवल शारीरिक संबंध तक ही सीमित नहीं है, बिना अनुमति के गलत तरीके से छूना भी बलात्कार का प्रयास है। न्यायधीश राम मनोहर नारायण मिश्र को कठोर सजा होनी चाहिए।"
कनक लता राय साहित्यकार बोकारो (झारखंड) ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि "यह एक विक्षिप्त व्यक्ति का वक्तव्य या मानसिक दिवालियापन है। यह वाक्य किसी सभ्य समाज के स्त्री हो या पुरुष उसके मन में वितृष्णा पैदा करने वाला है। सर्वोच्च न्यायालय और सरकार ऐसे वक्तव्य समाज में अश्लीलता और व्यभिचार को बढ़ावा देंगे। मैं ऐसे वक्तव्य का पुरजोर विरोध करती हूँ और इसके लिए सार्वजनिक माफी की मांग करती हूँ।"
नीना गोयल फाउंडर, हमारा मिशन डिग्नीटी दिल्ली ने कहा कि "इस तरह के शब्दों का प्रयोग बेहद निंदनीय है, हमारे देश में परंपरा या संस्कृति के विनाश का परिचायक है। मान सम्मान का आरंभ सबसे पहले शब्दों से ही किया जाता है।"
डॉ सुंदरी ठाकुर फाउंडर नारी सम्मान संघटना मुंबई ने कहा कि "जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्र के ये वक्तव्य अत्यंत निंदनीय है। जब वे जस्टिस की पोस्ट में रहते हुए ऐसी घिनौनी सोच रखते हैं तो न्याय क्या करेंगे? अफसोस हमारे देश की न्याय प्रणाली इस हद तक अपमानजनक हो सकती है।"
युवा अधिवक्ता श्रीमती पुष्पा चंदेरिया भोपाल (म. प्र.) ने कहा कि "यह बहुत ही शर्म की बात है कि पुरुष प्रधान समाज आज भी ऐसी सोच रखता है महिलाओं के लिए। इस निर्णय से राम मनोहर नारायण मिश्रा ने सारी महिलाओं को शर्मिंदा किया है और असुरक्षित महसूस कराया है।"
डॉ भाग्यश्री कापसे डिप्टी कमिश्नर BMC मुंबई ने न्यायधीश के इस आदेश पर कहा कि "यह एक असंवेदनशील वक्तव्य! महिला संगठनों को महिला आयोग में इस वक्तव्य के खिलाफ शिकायत दर्ज करानी चाहिए।"
युवा उद्यमी श्रीमती तोशिबा खान अहमदाबाद गुजरात ने कहा कि न्यायपालिका अधिकारी का ऐसा बयान न केवल आपत्तिजनक है बल्कि खतरनाक भी है। ऐसे बयान यौन हिंसा को सामान्य बनाने वाले हानिकारक दृष्टिकोण को बढ़ावा देता है। भारत जैसे देश में, जहाँ महिलाओं की सुरक्षा पहले से ही जहाँ हर 16 मिनट में एक बलात्कार के चौंकाने वाले आँकड़े हैं।
मुम्बई से नारी शक्ति ज्योति अग्रवाल ने कहा कि "एक महिला और Maa2Mom की संस्थापक होने के नाते, मैं इस फैसले से बेहद निराश हूँ। यह महिलाओं की गरिमा और सुरक्षा के खिलाफ है। यौन उत्पीड़न का कोई भी रूप अस्वीकार्य है, और ऐसे फैसले समाज में गलत संदेश भेजते हैं। हमें न्याय प्रणाली से अधिक संवेदनशीलता और कठोरता की उम्मीद है ताकि महिलाओं को उनका उचित अधिकार और सुरक्षा मिल सके।"