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गिरावट ही सफलता का पैमाना क्यों?


वर्तमान समय में लोकप्रियता का मापदंड बदल चुका है। पहले जहां ज्ञान, नैतिकता और सकारात्मकता को सफलता की कसौटी माना जाता था, वहीं आज शोर, नकारात्मकता और सनसनी सफलता की सीढ़ियाँ बन गई हैं। सोशल मीडिया पर जिन व्यक्तियों को सबसे अधिक प्रसिद्धि मिल रही है, उनमें से अधिकांश का शिक्षा, संस्कार या भविष्य की पीढ़ी को प्रेरित करने से कोई संबंध नहीं है।

अगर हम देखें, तो आज का परिदृश्य यही दिखाता है कि जो जितना अधिक गिर सकता है, वह उतना ही ऊँचा उठ सकता है। यानी, संस्कारहीनता, विवादास्पद विषयवस्तु (कंटेंट) और नैतिक पतन सफलता के मानक बन गए हैं। यह एक चिंताजनक स्थिति है क्योंकि सकारात्मकता और ज्ञान की जगह नकारात्मकता और अनैतिकता को अधिक सराहा जा रहा है। 

यदि आप अपने आस-पास ध्यान से नजर डालें, तो सहज ही यह समझ में आ जाएगा कि आज ‘गंवारपन’ किसी न किसी रूप में एक नया फैशन बनता जा रहा है। यहाँ ‘गंवार’ शब्द का अर्थ ग्रामीणता से नहीं और न ही शिक्षा की कमी से है, बल्कि यह उस प्रवृत्ति को दर्शाता है जहाँ लोग भद्देपन, अभद्र भाषा और असभ्य व्यवहार को आधुनिकता और प्रसिद्धि का पर्याय मानने लगे हैं। प्रदर्शन के नाम पर हर कोई समाज व राष्ट्र के दर्शन को निम्न से निम्न स्तर पर गिरा रहा है। 

आज के समय में यह धारणा बनती जा रही है कि जो जितना अधिक असभ्य, अशिष्ट हो सकता है, जितनी अधिक अभद्र भाषा और फूहड़ता को अपना सकता है, वह उतना ही अधिक आधुनिक समझा जाता है। सोशल मीडिया और मनोरंजन की दुनिया में, यदि कोई व्यक्ति गालियों की भरमार, अभद्र शब्दों का प्रयोग और संवेदनहीनता को अपनी शैली बना ले, तो उसे न केवल स्वीकार्यता मिलती है, बल्कि वह लोकप्रियता की ऊँचाइयों तक भी पहुँच सकता है।

विडंबना यह है कि जहाँ पहले सभ्यता, शालीनता और मर्यादित भाषा को एक शिक्षित और परिपक्व व्यक्तित्व की पहचान माना जाता था, वहीं आज उसका स्थान असभ्य भाषा, अनियंत्रित आचरण और दिखावटी अभद्रता ने ले लिया है। यह न केवल हमारी संस्कृति और मूल्यों पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि हमारा समाज किस दिशा में आगे बढ़ रहा है।

अब यह समाज के हर व्यक्ति की जिम्मेदारी बनती है कि वह इस प्रवृत्ति को समझे और यह तय करे कि हमें वास्तव में सभ्यता, संस्कृति और विचारशीलता की ओर बढ़ना है या केवल दिखावटी लोकप्रियता के लिए मूल्यों को ताक पर रख देना है।

- प्रा. रवि शुक्ला
  अबु धाबी, यूएई

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