ऑथर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया का अयोध्या अधिवेशन संपन्न
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नागपुर/अयोध्या। ऑथर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया का 48 वा अधिवेशन, भारत की आदर्श सनातन भूमि और श्री राम की जन्म भूमि के पावन स्थल पर भारत विभिन्न अंचलों से पधारे 157 साहित्यकारों की उपस्थिति में असम से केरल तक, हरियाणा से गोवा तक राम कथा की व्यापकता केंद्रीय विषय पर चिंतन मंथन 22, 23 मार्च 2025 को राजा जगदंबिका प्रताप नारायण सिंह सभागृह, साकेत महाविद्यालय, रामपथ अयोध्या के प्रांगण में संपन्न हुआ।
उद्घाटन सत्र का उद्घाटन करते हुए अयोध्या के लोकप्रिय महापौर डॉ गिरीश त्रिपाठी ने कहा, श्री राम की जन्म भूमि के साथ ,जैन संप्रदाय के महामुनि और बुद्ध संप्रदाय के महात्मा बुद्ध की भूमि भी रही है । हमें गर्व है भारत के दक्षिण से उत्तर, पूर्व से पश्चिम तक रचना धर्मी जो समाज को दिशा देते हैं यहां उपस्थित हैं । हम उनका स्वागत करते हैं। शुरुआत में संस्था का परिचय महासचिव डॉ शिव शंकर अवस्थी ने संस्था की गतिविधियों के साथ, संस्था के लक्ष्य को प्रस्तुत किया। उनका कथन था संस्था के अध्यक्ष स्वर्गीय डॉ श्याम सिंह शशि की इच्छा थी के 48 वां अधिवेशन अयोध्या में हो।
कार्यक्रम के अतिथि संस्कृत भाषा विज्ञ और राम कथा के मर्मज्ञ श्रीमान धनपति त्रिपाठी ने कहा राम कथा का प्रामाणिक ग्रंथ वाल्मीकि रामायण है। जो श्रुति आधारित लिखा गया। जिसमें राम कथा के साथ लोकतंत्र की भावना समाई हुई है। अतिथियों का परिचय महाविद्यालय के अंग्रेजी विभाग अध्यक्ष एवं स्थानीय आयोजक जन्म जय तिवारी ने कराया।
अध्यापक अरुण कुमार भगत, बनारस ने कहा रामायण केवल धार्मिक ग्रंथ ही नहीं मानव को प्रेरणा देने वाला ग्रंथ है। कार्यक्रम में उपस्थित सदस्यों की 17 पुस्तकों और तीन पत्रिकाओं का लोकार्पण किया गया। जिसमें ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की त्रैमासिक पत्रिका और 48 में अधिवेशन हेतु प्राप्त 32 परपत्रों से आच्छादित डायमंड बुक्स दिल्ली द्वारा प्रकाशित ग्रंथ का भी विमोचन हुआ। इसमें केरला, चेन्नई, गोवा, मुंबई, दिल्ली, आगरा ,वाराणसी, नागपुर के लेखकों की नवीन कृतियां थी।
कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्था की वरिष्ठ सदस्या व हैदराबाद चैप्टर की संयोजिका डॉ अहिल्या मिश्रा ने की। उन्होंने कहा हम रचनाकारों को अयोध्या की राम कथा की व्यापकता को देश की विभिन्न भाषाओं और अंचलों तक प्रसारित करने का हमें आज सौभाग्य मिला है। कार्यक्रम की पुस्तक लोकार्पण का संचालन नरेंद्र परिहार नागपुर संयोजक ने किया और पूर्व संचालन और आभार डॉ शिव शंकर अवस्थी ने किया।
रामायण की प्रासंगिकता विषय के प्रथम सत्र की अध्यक्षता करते हुए डॉ अहिल्या मिश्रा ने कहा रामायण भारतीय संस्कृति का यथार्थवाद और जन मानस का महाकाव्य है। प्रथम वक्ता डॉ सुषमा सिंह का मानना है कि राम कथा कल, आज और भविष्य में भी प्रासंगिक रहेगी। दक्षिण की सदस्यता डॉ पी बी रमादेवी ने माना की राम कथा भारत के मन मानस में व्याप्त है। डॉ पार्वती देवी का कथन था राम तो विश्व व्यापी हैं और कई देशों में मानस पढ़ाई जाती है।
बनारस की सदस्या डॉ अर्चना शर्मा ने कहा राम कथा अनेक भाषाओं में लिखी गई। इसे अनेक जातियों और लोगों ने आत्मसात कर इसका पालन किया और कर रहे हैं। राम को आप ऋषि के रूप में देखती हैं और राम के वचन या राम की बोल और चरित्र एक ही दिखते हैं। अयोध्या के न्यूरो सर्जन डॉक्टर शर्मा का कथन था की रामायण में सीता, उर्मिला के बारे में तो बहुत कहा गया है। और बहनों मांडवी, सुकृति के त्याग की तो चर्चा भी नहीं होती। राम एक मानव राजा हैं , भगवान नहीं। अंतिम वक्ता के रूप में छिंदवाड़ा के परशराम डेहरिया का मानना था कि राम कथा में भाई बहनों के बीच अटूट प्रेम की प्रमाणिकता के कई प्रसंग हैं । इस सत्र का संचालन और आभार बनारस के संयोजक डॉ अशोक ज्योति ने माना।
दूसरे सत्र का प्रपत्र विषय था ‘राम कथा की मलयालम साहित्य में प्रासंगिकता’। इसकी अध्यक्षता करते हुए नरेंद्र परिहार ने राम कथा के राम मिथक की परिभाषा और सांस्कृतिक मूल्यों की उपयोगिता बताते हुए दक्षिण से उत्तर तक राम कथा की प्रासंगिकता और लोक युक्ति, लोक भावना प्रस्तुत की। प्रथम वक्ता के रूप में केरल के संयोजक डॉ वर्गिस ने 1400 ई से 1907 तक की सांस्कृतिक और मलयालम मिश्रित भाषा में नाटकों का वर्णन कर राम कथा की लौकिक प्रासंगिकता को व्यक्त किया। आगरा की श्रुति सिन्हा ने संस्कृत, पालि, प्राकृत भाषा में छठवीं शताब्दी से विवाह से राम के राज्याभिषेक तक सुखांत वर्णन है। इसमें दुखांत प्रकरण नहीं है । 5386 श्लोक रामायण मंजरी का उल्लेख भी किया। राधे श्याम बंधु ने छायावाद के बाद आधुनिक गीत काव्य की समीक्षात्मक प्रस्तुति कर रामचरित मानस को यथार्थवादी नवगीत धर्म ग्रंथ माना। के एस साली सूबेदार मेजर ने राम कथा के लोकप्रिय संवाद और प्रकरणों को 16वीं शताब्दी में लिखित तुलसीदास के द्वारा रचित मानस को मुख्य माना। कार्यक्रम का संचालन व आभार गोवा की संयोजिका किरण पोपकर ने माना ।
तीसरे सत्र में प्रपत्र का विषय था" राम कथा में जीवन मूल्यों की प्रासंगिकता" इस सत्र की अध्यक्षता करते हुए डॉ सलमा जमाल ने कहा रामायण में वर्णित हर चरित्र अगर घर-घर में स्वीकार हो जाए तो सच्चा राम राज्य आ जाएगा। अशोक अश्रु ने कहा राम कथा के हर प्रसंग में जीवन मूल्य स्थापित होते हैं। वह हमारी संस्कृति की अमूल्य धरोहर हैं। डॉ कृष्ण वाल्के ने श्री राम को विष्णु का अवतार माना और विश्व की रामायण में इस उल्लेख है कहा। मीणा कौशल का कथन था कि राम कथा और राष्ट्रीय एकात्मकता हमारी संस्कृति का मूल है। क्योंकि जन्म से अंतिम विदाई तक राम का नाम व्याप्त है डॉ पूर्णिमा श्रीनिवास ने कंब रामायण के कुंभकरण का उल्लेख कर समझाया उन्होंने विभीषण की राम से रक्षा करवाने हेतु राम के समीप भेजा और स्वयं नीति प्रज्ञ और लंका अधिपति के प्रति कर्तव्य निष्ठा का प्रमाण देने हेतु कर्तव्य नीति की नींव रखी। सत्र का संचालन और आभार युवराज सिंह ने माना।
काव्य गोष्ठी चतुर्थ सत्र में काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए डॉ उषा दुबे ने इसे सफल निरूपित किया। चित्रा शीर्ष सा, उषा कामत, कंचन बोरकर ,दीपा मिरंगीकर ने चंपा फूल की खुशबू के साथ, आर श्रीदेवी के बोल .. मौन पड़े हैं सत्ता के गलियारे, रक्षा करो उनकी न सहना अत्याचार। डी सुमन, राजेंद्र मिलन के राम मर्यादा गीत के साथ, सुधा काशिव रंग है तरंग है, नूतन अग्रवाल ,नारी शक्ति के पश्चात अरुण कुमार पासवान के बोल.. जो नर में नर के बीच व्याप्त दूरी है, इतना वर दीजिए द्वेष, घृणा से मुक्त हो। डॉ बालकृष्ण महाजन के व्यंग, अजय पांडे, कुमारी किरण, पूर्णिमा केरकर, झरने जैसा बचपन, शुभदा च्यारी, अजीत राजन, दुर्ग विजय सिंह दीप, रमां वर्मा श्याम, सुमित्रा कुट्टी, प्रभात शर्मा, यशो यश का मुक्तक था.. किसी कुर्सी के लिए करते हैं हम मारा मारियां, यार अच्छे मिले यह है दुश्वारियां।
लक्ष्मी यादव, ओपी शर्मा, जे वी एस राणा के देशभक्ति गीत के बाद बाबा कानपुरी का हास्य गीत जिसने महफिल लूट ली परिभाषा ही बदल गई है, अब तो बेइमानों की, वे कट्टर ईमानदार अपने को बतलाते हैं। पुष्पन, कुंतला दत्त, देवीदास इंदा पवार के नजरों से नजर के बाद, टीकाराम साहू आजाद का व्यंग्य बाण, अजीत जयराज की मलयालम, शिल्पी भटनागर ,पुष्पा पाल ,कुंडला गुवाहाटी, रमां रश्मि, सौरभ देव, डॉ ज्योति कुलकर्णी, अजीतन मैनौथ, मलयालम, जे पी शर्मा के गीत, विजय कुमार, आशा रिकाजजू, के चेलम तमिल, श्रीमती आर पार्वती, मधु अवस्थी, प्रकाश काशिव, चित्रा चिंचघरे, सुनीता मुल्क कलवार, नरेंद्र नायते, मंजू लंगोटे, ज्योति गजभिए, प्रभा शर्मा, प्रदीप गौतम आदि 57 कवियों ने ब्रजभाषा, तमिल, मलयालम, अवध, हिंदी संस्कृत में काव्य पाठ किया। दिल्ली की रेखा व्यास के बोल.. मन की प्रजा को दिवाली की आस रे, सूनी मन की अयोध्या सरयू की धार रे। कवि गोष्ठी का सु संचालन डॉ आशा मिश्रा ने किया, आभार नरेंद्र परिहार में माना।
दूसरे दिन 24 मार्च 25 के पांचवें सत्र में ‘विश्व व्यापी राम’ विषय की अध्यक्षता करते हुए अरुण कुमार भगत ने कहा प्रभु राम भारतीय राष्ट्रीयता के प्रतीक हैं। सत्य पर विजय पर्व के प्रतीक हैं। श्री राम ऊर्जा के स्रोत है, और आज यहां उनके स्मरण में लघु भारत उपस्थित है । लक्ष्मण डेहरिया का प्रपत्र पढ़ने टीकाकरण साहू ने लोक भावना को केंद्र में रख राम भक्त रूप सामंजस्य, लोक भावना के साथ राम के विभिन्न रूप दिखाए। डॉ रेखा कक्कड़ ने कहा तुलसी ने भारतीय जनमानस में व्याप्त निराशा से ग्रस्त लोगों को उससे निकलने को प्रेरित किया। श्रीमती सुमन सावंत ने कहा राम ने राज्य की इच्छा पुनर्जन्म की इच्छा नहीं रखी आज राम के इन्हीं गुणों की भारतीय सनातन संस्कृति को जरूरत है। डॉ प्रज्ञा शर्मा ने बताया राम की दृष्टि में सत्य की ,धैर्य की, प्रेम की भावना के साथ, पिता माता की आज्ञा सर्वोपरि है। इस सत्र का संचालन आभार संदीप शर्मा ने माना।
छठवें सत्र में ‘राम कथा और स्थानीयता’ विषय की अध्यक्षता करते हुए डॉ हरि सिंह पाल ने कहा राम साकार भी हैं, निराकार भी हैं । गुरु गोविंद सिंह जी ने भी राम कथा 350 पद में समय की मांग पर लिखी । नेहा भंडारकर ने नागपुर के पास रामटेक, गढ़ मंदिर और गांव तथा रामगिरी से जुड़ी लोक कथाओं के प्रमाण दिए। सीजी प्रसन्न कुमारी ने रामायण के विभीषण के साथ समझाया, लोक कथाओं में लक्ष्मण रेखा का उल्लेख नहीं है। वाल्मीकि का विभीषण बाद में लंकेश घोषित किया। जबकि तुलसी का विभीषण राज्य के पहले ही घोषित राजा किया गया था। हनुमान निष्काम भक्त दिखाए गए हैं। अयोध्या के जन्मजेय तिवारी का मानना था राम सबके राम है, रावण के भी राम है, सगुण निर्गुण मार्ग में भी राम की स्थापना है। सीता को रावण की बेटी दिखाई ऐसी आख्यिका है। इस सत्र का संचालन आभार नरेंद्र परिहार ने माना।
इसके उपरांत सदस्यों का खुला अधिवेशन हुआ। जिसमें अचानक संस्था के अध्यक्ष पदम श्री डॉ श्याम सिंह शशि के अकाल निधन होने के कारण कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में संस्था की उपाध्यक्ष डॉ सरोजिनी प्रीतम का प्रस्ताव नरेंद्र परिहार ने रखा और अनुमोदन युवराज सिंह के साथ सभा के सभी सदस्यों ने तालिया के साथ समर्थन दिया। इसके साथ सदस्यों ने डॉ. शिव शंकर अवस्थी महासचिव, नरेंद्र परिहार नागपुर ,किरण पोप गोवा, डॉ अहिल्या मिश्रा हैदराबाद, डॉ उषा दुबे जबलपुर, डॉ अशोक ज्योति वाराणसी, डॉ वर्गीश केरल, युवराज सिंह आगरा, चेल्लम चेन्नई आदि संयोजको ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। और उनकी उपस्थिति में कई प्रस्ताव आए।
1. जे बी एस राणा, प्रपत्र व कवि गोष्ठी का समय सत्र बढ़ाया जाए। 2. डॉ. रेखा व्यास प्रपत्र खुले सत्र में रखे जाएं। 3. श्रीमती मंजू लंगोटे प्रपत्र 7 मिनट और कविता को 3 मिनट दिए जाएं। 4. प्रदीप गौतम राजेंद्र अवस्थी पुरस्कार का निर्णय कब लागू होगा बताया जाए। 5. संदीप शर्मा प्रपत्र यूनिकोड में ही भविष्य में भेजे जाएं। सर्वप्रथम 47 चेन्नई कन्वेंशन की रिपोर्ट के साथ आर्थिक लेखा-जोखा संस्था के महासचिव डॉ शिव शंकर अवस्थी जी ने रखा, इसे ध्वनि मत से पारित किया गया।
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अंतिम सत्र समापन समारोह गरिमामय रूप से हुआ इसमें उपस्थित अतिथि और संस्था के महासचिव डॉ शिव शंकर अवस्थी जी ने अयोध्या कन्वेंशन को सफल निरूपित किया । इसके साथ शीघ्र ही 49 में अधिवेशन की घोषणा का मत व्यक्त किया गया और अयोध्या कन्वेंशन में कुछ कमियां रह गई हो तो उन्हें सदस्यों द्वारा संस्था को लिखित रूप से भेजने का उल्लेख किया गया।