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काश, उपहार संग सीख भी ले पाते, तो समाज में सच्चे आदर्श नजर आते।


आजकल देखने में आता है कि जब भी कोई राजनीतिक व्यक्तित्व बड़े नेताओं से मुलाकात करता है, तो उपहार स्वरूप भगवान श्रीराम, छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा या श्रीमद्भगवद्गीता भेंट करता है। यह परंपरा केवल एक औपचारिकता बनकर रह गई है, जिसमें न तो देने वाले को उस उपहार की वास्तविक महत्ता का आभास होता है और न ही लेने वाला उसकी गहराई को समझने का प्रयास करता है। 

प्रायः ये भेंट केवल एक फोटो का हिस्सा बनकर रह जाती हैं, जहाँ नेता इस तरह तस्वीर खिंचवाते हैं मानो वे प्रभु श्रीराम पर उपकार कर रहे हों, बजाय इसके कि वे उनके आदर्शों को आत्मसात करें। यदि ये प्रतिष्ठित व्यक्तित्व वास्तव में इन महान विभूतियों के जीवन से चार महत्वपूर्ण सीख भी ले लेते, तो समाज और राष्ट्र के उत्थान में उनका योगदान कहीं अधिक सार्थक होता। 

भगवान श्रीराम का आदर्श नेतृत्व, छत्रपति शिवाजी महाराज की वीरता और न्यायप्रियता तथा गीता के कर्मयोग का संदेश केवल दिखावे के लिए नहीं, बल्कि आत्मसात करने के लिए हैं। काश, इन उपहारों को देने से पहले उनके मूल्यों और संदेशों को अपनाने का संकल्प भी लिया जाता, तो यह परंपरा मात्र औपचारिकता नहीं, बल्कि समाज सुधार का एक महत्वपूर्ण साधन बन सकती थी।

- प्रा. रवि शुक्ला 
  अबु धाबी
समाचार 2902953057903058238
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