ये दिन..
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क्या आए,
भरी दोपहर
अँधेरा छाए,
जो थे दिल के
इतने क़रीब
आज वही बने
अपने रक़ीब ।
जब से तुमने
होश सम्भाला
यह देश हमारा
है तुम्हारा
साँस ली तुमने
इसी हवा में,
पिया पानी
इसी ज़मीं का,
पाला पोसा
इसी ज़मीं ने
दिया प्यार
जी भर के इसने,
माथे पे बिठाया
इसी ज़मीं ने।
पर तुमने
ये क्या कर डाला ,
धुआँ फैलाया
इसी हवा में,
जहर घोला
इसी पानी में,
जो करते रक्षा
इस ज़मीं की
ख़ून बहाया
उन्हीं वीरों का।
होश में आओ
ओ मेरे भाई
आँखें खोलो
ओ मेरे भाई,
सोच पाते
अगर तुम काश,
इसी हवा में
लोगे तुम सांस,
यही पानी
तुम पियोगे,
ज़हर घोल कर
क्या पाओगे?
कभी जुबां पर
कभी रंग पर
कभी धर्म पर
भ्रम फैलाकर
वस्र हरण
माता का करोगे !!
- डॉ. शिव नारायण आचार्य 'शिव'
नागपुर, महाराष्ट्र