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वसंतराव साठे की 100वीं जयंती (5 मार्च) पर विशेष


मेरी स्कूल और कॉलेज की यादों में जिस तरह हम कुछ घटनाओं को याद रखते हैं, उसी तरह कुछ लोग भी हमारे मन में अंकित रहते हैं।  उनमें से एक प्रमुख व्यक्तित्व हैं स्वर्गीय. वसंतराव उर्फ ​​बापूसाहेब साठे। इस दौरान विविध सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये गये।  मुझे संगीत समारोह, संगीत महोत्सव और नाटक देखना बहुत पसंद था। वह एक दृश्य व्यक्तित्व थे जो ऐसे सभी कार्यक्रमों में दिखाई देता था!  लगभग छह फुट लंबे, गोरे कोंकण रंग, तीखी नीली आंखों वाले और सभी के मित्र, बापूसाहेब साठे कई कार्यक्रमों में भाग लेते थे। उस समय के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में 'नागरिक संवाद' नामक कार्यक्रम भी था, जिसमें दो पक्ष किसी विशिष्ट विषय पर बातचीत करते थे।  

एक पक्ष में बोलता है, दूसरा विपक्ष में बोलता है। प्रत्येक पक्ष में तीन या चार वक्ता थे। आज की तरह उस समय लोगों के समूह एक ही समय में बहस और प्रतिवाद नहीं करते थे। यह एक अनुशासित कार्यक्रम हुआ करता था। यह भाषा में अपना पक्ष प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने की एक रोचक प्रतियोगिता थी। कुछ मण्डलियों को आयोजकों द्वारा विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था। इनमें श्री चंद्रशेखर धर्माधिकारी, श्री ए. बी. बर्धन, श्री चंद्रशेखर माडखोलकर, डॉ. आर. डी. लेले जैसे लोकप्रिय वक्ताओं की सभाओं में बोलने के लिए बापूसाहेब को आमंत्रित किया जाता था। बापू साहब के भाषण उनकी अध्ययनशीलता, वार्तालाप कौशल्य, और आकर्षक व्यक्तित्व के संयोजन के कारण रंगीन होते थे, और शायद उनके कानूनी पेशे के कारण अपना पक्ष प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने की उनकी क्षमता के कारण भी।


बापूसाहेब इन सभी गुणों को अपने हृदय में लेकर राजनीति में आये। वह स्वतंत्र विदर्भ आंदोलन के समर्थक थे। बाद में वह कांग्रेस में शामिल हो गये। कांग्रेस में शामिल होने के बाद उनकी नेतृत्व क्षमता निखर कर सामने आई और उन्हें सक्रिय राजनीति में प्रवेश करने का अवसर मिला। इसके बाद उन्होंने 1972 में अकोला से, फिर 1980, 1984 और 1989 में वर्धा से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीता। अपनी विभिन्न खूबियों के कारण वे वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं के ध्यान में आये और उन्हें केन्द्रीय मंत्रिमंडल में जगह दी गयी।  गांधी परिवार के साथ उनके घनिष्ठ संबंध थे।  केंद्रीय मंत्री रहते हुए उन्होंने रसायन एवं उर्वरक, इस्पात एवं कोयला खान तथा ऊर्जा जैसे विभिन्न विभागों को सफलतापूर्वक संभाला। उनका करियर विशेष रूप से उल्लेखनीय रहा जब वे सूचना एवं प्रसारण मंत्री थे, क्योंकि उनकी पहल के कारण एशियाई खेलों के दौरान भारत में रंगीन टेलीविजन की शुरुआत हुई। लोकसभा में उनका कार्यकाल 1972 से 1991 तक रहा। इस कारण वे नागपुर छोड़कर दिल्ली चले गये।

मैं अपने पिता वामनराव चोरघड़े के कारण उनसे व्यक्तिगत रूप से मिला था। चूंकि उनके पिता कांग्रेस में थे, इसलिए उस समय उनके कई कांग्रेस नेताओं से घनिष्ठ संबंध थे। बाद में, जब मेरी मित्रता उनके दामाद डॉ. उदय बोधनकर से हुई, तो मैंने उनसे व्यक्तिगत रूप से श्रीमती सुनीति के पिता के रूप में मुलाकात की। 1991- 92 के दौरान नागपुर में बाल रोग विशेषज्ञों का अखिल भारतीय सम्मेलन आयोजित किया गया। इस अवसर पर मुझे दिल्ली में उनके घर जाने का अवसर मिला और आपकी भार्या श्रीमती जयश्रीताई से भी मिला।  

बापूसाहेब का जन्म 5 मार्च 1924 को नासिक में हुआ था। उनकी शिक्षा नासिक के भोंसला मिलिट्री स्कूल में हुई। बाद में उन्होंने नागपुर के मॉरिस कॉलेज से अपनी कॉलेज की शिक्षा पूरी की। उन्होंने अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में एम.ए. की डिग्री प्राप्त की और फिर एल.एल.बी. परिक्षा पास की  उन्होंने कुछ समय तक वकालत की और बाद में खुद को राजनीति के लिए समर्पित कर दिया। 
ऐसे बहुमुखी व्यक्तित्व ने 23 सितम्बर, 2011 को 86 वर्ष की आयु में दिल्ली स्थित अपने निवास पर अंतिम सांस ली। उनकी जन्म शताब्दी के अवसर पर उन्हें श्रद्धांजलि। 

 - डॉ. श्रीकांत चोरघड़े, 
    धरमपेठ, नागपुर 

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