नर नर नेक हैं..
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नागपुर, महाराष्ट्र
नेकी करना और नेक होना इन दोनों में उतना ही अंतर है जितना किसी की प्रशंसा करने और उसके तारीफ़े काबिल होने में है। जैसे नोटा का बटन दबाने मात्र से उम्मीदवार अयोग्य नहीं होता वैसे ही नेकी करके व्यक्ति नेक नहीं हो जाता। बदलते समय के साथ नेकी की सीरत भी अफवाहों जैसी हो गई है। यह उड़ना जानती है और कुछ हद तक उड़ाना भी। मुझे तो तलाश उस व्यक्ति की है जिसने इस उक्ति को सूक्ति बनाया कि नेकी करके दरिया में डाली जाती है। कतई नहीं। दो बातें इसकी गवाही देंगी। पहली यह कि क्या नेकी कोई दरिया में डालने के लिए करता है। दूसरी यह की सालों से मिसाल दी जा रही है, पुण्य कमाओं पाप बहाओ। दरिया में डाल देने के बाद तो वह शायद ही नेकी हो। या रहे। उसे अगर पुण्य फल में रूपांतरित करना है तो बहुत जरूरी है की वह प्रदर्शित हो। बताई जाए और जताई जा सके तो बिलकुल जताई जाए।
नेकी की गाड़ी यदि प्रदर्शन के स्टेशन से ना गुजरे तो दुर्घटना होने का खतरा बना रहता है। देख लेने या दिखा देने का फायदा यह है की विश्वास बना रहता है। जान माल की सुरक्षा के लिए जरूरी है की नेकी को राह दिखे ना दिखे उसका प्रदर्शन दिखाते रहें। दूसरी बात वही की हम जो कुछ भी बहा ले रहे है वह तो पाप है। वह भी हमारे अपने। नेकी तो उस दान की तरह है जिसकी नजर शिलालेख पर होती है। इस नेकी ने अपना चोला बड़ी चतुराई से बदला है। प्राचीनकाल में यह वरदान हुआ करती थी। आधुनिक युग में बेदाग कमीज़ और तकनीकी युग में एक ऐसी सोशल मीडिया पोस्ट जो आपको बहुत लाइक करने के लिए बहुतों को प्रेरित करती है। गोया,इसकी लत लगने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
मेरे एक परिचित थे। थे का तात्पर्य यह नहीं की वे चल बसे। जीवित वे अब भी है और अच्छे भले नेक भी है। पहले थोड़े कम भले माने जाते थे किन्तु इधर कुछ दिनों से अधिक नेक हो गए हैं। इस परिवर्तित नेकी के चलते उनकी मुझसे पहचान कुछ कम सी हो गई है। संभवतः मैं उन्हें अ नेक लगती रही हो। खैर, जब वे थोड़े कम नेक थे तब भी वे सभी से और मुझसे भी यह कहते थे की – दान से पुण्य मिलता है। मनुष्य को पुण्य के लिए दान करना चाहिए। दान की महिमा निराली होती है। दान करते ही मनुष्य को जीवन का लक्ष्य मिल जाता है। लोग विधाता को भूल जाते हैं किन्तु दाता को कभी भी नहीं भूलते।
उनकी इन बातों को सुनकर मैं हतप्रभ सी हाथ बांध लेती। मेरी ओर से हाथ जोड़ने की गुंजाइश कम ही रहती थी। हाथ जोड़ने की स्थिति में बोध के पथभ्रष्ट होने की संभावना बनी रहती है। मेरे हाथ बचाव के लिए जुडते थे। वे समझते की मैं सहमत हूँ। वे हमेशा खुद से सहमत होते और औरों को भी सहमत ही मानते। नेकमंद लोग शायद ऐसे ही होते हैं। गोया इस दुनिया में सहमति भी उन्हीं का पक्ष रखती पाई जाती है। उनके जीवन का लक्ष्य जगजाहिर था। वे चाहते तो थे की लोग उनकी कल्पना करते यह कल्पित करें कि साक्षात समझदारी उनके आगे दंडवत होती है। जिस तरह सरकार और बहुमत में अघोषित समझौता हुआ है ठीक उसी तरह उनमे और चतुराई में एक अलिखित संविधान था। वे बड़ी चतुराई से खुद को समझदार दर्शाते।
नेकी के अनेक अवसर उन्होने समय समय पर हथियाए थे। इन्हीं अवसरों में से कुछ प्रमुख किस्सों की कहानी कहें तो साधारण से साधारण बात भी असाधारण लगने लगती है। जैसे की किसी व्यक्ति द्वारा किसी पते का पूछा जाना और इनके द्वारा पता बताना पथ प्रदर्शन की श्रेणी में आने लगा। इस तरह का पथ प्रदर्शन जो नेत्रहीन को भी संजय बना दें। वे अद्भुत हैं। उनका प्यासे को पानी पिलाना मात्र पानी पिलाना नहीं है जीवनदान देना है,जीवनदान। वे पानी नहीं पिलाते। जल अर्पित करते हैं। उनका चढ़ाया जल पीकर भले भलों का भला हो गया। अब ऐसे महात्मा दरिया में अपना महात्म्य डालने लगेंगे तो हल्के हो जाएंगे। हल्के होते ही वे तो डूब जाएंगे। विरोधाभास ही तो सत्य है।
नेकी के बाद से परिचित में एक परिवर्तन और नजर आता था। जब से वे नेक हुए हैं तब से उनकी मुद्राएँ और भावभंगिमाएँ किसी चित्रकार के बनाएँ चित्र की तरह सोद्देश्य होती जा रही है। वे जिद के इतने पक्के की बस गनीमत ही समझो की तारामंडल में सूर्य का स्थान बना हुआ है। इनकी प्रतिभा के आगे तो सूर्य भी आवेदन दे देता की प्रभु आप हो तो मेरी कितनी आवश्यकता? सूर्य सा तेज ही नहीं तो तारे सी शीतलता भी उनके व्यक्तित्व में चार चाँद सी चमकती थी।
मेरे ऐसे नेकगामी परिचित जब अपने अनुभव बताते तो अक्सर इतिहास को गवाही देने का पूरा मौका देते। वे बीती बाते बिसारते नहीं थे। बिखेरते थे। बिखराव से उपलब्धता उन्हें वैसे ही हासिल होती जैसे भाग्य से सफलता। ऐसे मेरे नेकदिल परिचित जब भी नेकी करते उसका वर्णन किसी कथावाचक की तरह करने से नहीं चूकते। जिस तरह सत्य नारायण की कथा सत्य के सत्व के लिए की जाती है उसी तरह उनकी नेकी भी किसी ना किसी कथा के लिए होती। किसी दिन नेकी ना हो तो वे मात्र नेक कथा करके भी काम चलवा लेते। ऐसे सज्जन भला दरिया में क्या डालेंगे!
वे प्रेरित करते हैं।नेकी उनके पास जाकर इतनी नेक हो जाती है की वे नेकी के ब्रांड एम्बेसेडर की लोकप्रियता पाते। वैसे मुझे कई बार संदेह होता की कोई व्यक्ति नेकी की नाक के नीचे इतनी बदी कैसे कर सकता है की लाभ को भी प्रसाद कहे ! परिचित सज्जन विशेष थे ही। पूर्ण भले व्यक्ति से उठकर सम्पूर्ण भले व्यक्ति बनें थे।
उनका सामाजिक रुतबा वे बनाते थे। संभवतः एक बार में पूरा बन नहीं पाता था इसलिए हर बार बनाते रहते थे। वे अपनी ही गलतियों को सुधारकर सहनशील बन बैठे थे। वे इतिहास के जानकार नहीं थे लेकिन इतिहासकार थे। समय समय पर वे असमय मुद्दे उठाते रहते । वैसे भी, हमारी सामाजिक संरचना इसकी खुली छूट देती है की जिसे समझ ना पाओ उसे या तो बिरले कह दो या मूर्ख। समाज सिर्फ यह देखता है की सिक्का कितना उछला। उछलकर गिरा कहाँ,यह कोई नहीं देखता। नेक व्यक्ति के लिए कही गई बातों का पूरा पूरा लाभ परिचित नेक जी को भी मिलता था। स्थापित की खूबी ही यही है की वह सत्य की भांति नजर आता है।
मेरे परिचित नेकमना जी का विश्वास बड़ी बातों में था। वे बड़ी-बड़ी बाते करते थे और छोटे लोगो के बीच बड़े कहलाते थे। वे छोटों को छोड़ते नहीं थे। उन्हें वे अपना आधार समझते। जनाधार के लिए भी यही गुण प्रधान गुण माना जाता है। नेकी की दरिया में दरियाई घोडा बनकर बहुतों ने जब मोक्ष का मार्ग लिया तब नेक जी को लगा चलो यह भी चलाकर देख लेते हैं,दरिया के बाहर नहीं तो भीतर ही सही। आखिर किसे फुर्सत है यह देखने की कि नेकी की जमीन पर कितनों के पैर टिके,कितनों के जमें और कितनों के फिसल गए।