साहित्य सोद्देश्य होना चाहिए : डॉ उपाध्याय
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लोहिया अध्ययन केंद्र ने किया डॉ गोविंद प्रसाद उपाध्याय का सत्कार
नागपुर। साहित्य मनोरंजन की चीज नहीं है। साहित्य सोद्देश्य होना चाहिए। लिखते समय आपकी कविता और कहानी की उम्र कितनी है इसका ध्यान रखना चाहिए। शाश्वत लिखें ताकि प्रासंगिकता बनी रहे। यह विचार सुप्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य और साहित्यकार डॉ गोविंद प्रसाद उपाध्याय ने व्यक्त किए।
लोहिया अध्ययन केंद्र की ओर से डॉ गोविंद प्रसाद उपाध्याय की साहित्यिक उपलब्धियों के लिए 'डॉ गोविंद प्रसाद उपाध्याय का सत्कार और साहित्य संवाद' कार्यक्रम का आयोजन केंद्र में किया गया। इस अवसर पर वे बोल रहे थे। केंद्र के महासचिव सुनील पाटील, विश्वस्त संतोष कुमार दुबे ने शॉल-श्रीफल और पुस्तक देकर डॉ उपाध्याय का सत्कार किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि डॉ शशिकांत शर्मा ने की।
डॉ उपाध्याय ने अपने रचनाकर्म पर प्रकाश डालते हुए अपनी कविताओं का पाठ भी किया। उन्होंने बताया कि अपने लेखन की शुरुआत नर्मदा जी पर लिखी कविता से की जिसकी पंक्तियां हैं-'तेरी चंचल लहरों में दिव्य छवि दिखावत है'। आरंभ में उन्होंने छंद लिखे। बाद में कहानी लेखन में प्रवेश किया। उन्हें हिंदी के शरदचंद्र के रूप में प्रसिद्ध साहित्यकार द्विजेंद्रनाथ निर्गुण का सान्निध्य प्राप्त हुआ। छिंदवाड़ा के प्रसिद्ध साहित्यकार दादा धरनीधर का उन पर काफी प्रभाव पड़ा।
डॉ उपाध्याय की काव्य पंक्तियों 'कब तक पलोगे इन ठूंठों की छांव में, मोती की पायल है ऊंटों के पांव में' और 'नैनों से बारिश होती है, दिल में आग जला करती है' ने समां बांध दिया।
डॉ उपाध्याय ने नए रचनाकारों को सलाह देते हुए कहा कि लिखने के बाद अपनी रचना दूसरों को दिखाएं और संशोधन करें। रचना को मांजे, क्योंकि एक लाइन पूरी कविता का महत्व कम कर देता है। आप क्या कहना चाहते हैं यह पहले तय होना चाहिए।
साहित्य संवाद सत्र में डॉ उपाध्याय ने सवालों के जवाब भी दिए। उन्होंने कहा कि विसंगतिपूर्ण व्यवस्था का विरोध होना ही चाहिए। हमें अपना काम करते रहना चाहिए। प्रभाव की चिंता किए बगैर हमें निरंतर लिखना चाहिए।
संवाद में भाग लेते हुए रातुम नागपुर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग अध्यक्ष डॉ मनोज पांडेय ने कहा कि सृजनकर्ता के भाव के साथ ही जो रचना को पढ़ता है उसका भाव भी विरेचित होता है।
अध्यक्षीय वक्तव्य में डॉ शशिकांत शर्मा ने कहा कि रचनाकार जो बात कह नहीं पाते, उसे शब्दों में पिरोते हैं। उन्होंने कहा कि प्रेरणास्रोत डॉ उपाध्याय का सदैव मार्गदर्शन मिलता रहा है।
इस अवसर पर अर्चना साहित्यिक संस्था की ओर से अध्यक्ष डॉ शशिकांत शर्मा, सचिव शशि भार्गव 'प्रज्ञा' तथा कोषाध्यक्ष डॉ मधुकर वाघमारे, ज्येष्ठ नागरिक मित्र मंडल के अध्यक्ष कृष्ण कुमार भार्गव और सुनील मिश्रा ने शॉल-श्रीफल तथा पुष्पगुच्छ देकर डॉ उपाध्याय का सत्कार किया।
आरंभ में सरस्वती वंदना वरिष्ठ कवयित्री शशि भार्गव 'प्रज्ञा' ने प्रस्तुत की। कार्यक्रम का संचालन व्यंग्यकार टीकाराम साहू 'आजाद' ने किया। आभार वरिष्ठ कवि अतुल त्रिवेदी ने माना। कार्यक्रम में डॉ राजेंद्र पटोरिया, अनिल त्रिपाठी, तेजवीर सिंह, सत्येंद्र प्रसाद सिंह, अजय पांडे, नरेंद्र परिहार, डॉ प्रेम जोगी, डॉ कल्पेश उपाध्याय, डॉ विजय कुमार श्रीवास्तव, पारसनाथ शर्मा, आशीष धकाते, चंचल सिंह हंसपाल, राजेश सुपटकर, शरद भट्ट, रमेश मौनदेकर सहित बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे।