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लता जी जीते जी अमर हो गयी


लता जी की 3री पुण्यतिथि पर विशेष आलेख

‘लता के कंठ से गीत अमर हो गए’
पिछले 7 से 8 दशकों की बात की जाए तो पार्श्वगायन में सिर्फ एक नाम उभर कर सामने आता है, तो हमारी आँखे खुद श्रद्धा से नतमस्तक हो जाती है।
लता मंगेशकर आज उस मुकाम पे पहुँच चुकी है कि वो किसी तार्रुफ़ की मोहताज नही रह गयी है। लताजी के गीतों के द्वारा लताजी हमारे दिलों पर राज करती आई हैं और आते युगों युगों तक राज करती रहेंगी। हमारी सुबह और शाम उनके गीतों से,हमारे दुख दर्द गम खुशी सब मे लताजी के गीत शामिल हैं।हमे यह गर्व है कि हम लताजी के युग मे जीवित है व हमने लताजी के गीतों को, लताजी के जीवनकाल को हमारे इर्द गिर्द महसूस किया है।लताजी को जीतेजी देखा है।हम उस ईश्वर के हमेशा शुक्रगुजार रहेंगे कि हम लताजी के जीवनकाल को देख रहे हैं।लताजी पर हर लेखक (संगीत समीक्षक ) ने अपनी कलम चलाई है, या ऐसा कोई संगीत समीक्षक नही होगा लताजी की प्रतिभा को महसूस कर लिखा न हो।
हम इंदौरवासियों के लिए ये और गौरव और खुशी की बात है कि लताजी की जन्मस्थली इंदौर है और इस हमारे अभिमान को कोई हमसे छीन नही सकता है।
लताजी ने वैसे तो गायन का प्रथम पाठ तो अपने पिता दीनानाथ मंगेशकर से ही सीखा,लेकिन 1945 में उस्ताद अमानत अली भिंडी बाजार वाले से विधिवत शिक्षा ली।लताजी ने सर्वप्रथम बसन्त जोगलेकर की फिल्म "आपकी सेवा में पहला गाना गाया। वह पहला गीत था " पाँ लागू कर जोरी के "गाना बहुत चला। इस गीत को सुनकर स्व. गुलाम हैदर ने अपनी फिल्म "मजबूर" में गाने का मौका दिया। वैसे आपको बता दु कि संगीतकार नौशाद अली ने लताजी को सर्वप्रथम पारश्रमिक 60 रुपये गाने पर दिए थे। लताजी को शोहरत के पूर्व फिल्म" महल" की रिकॉर्ड पर HMV कंपनी ने गानो पर मधुबाला का जिक्र था,बाद में जब शोहरत मिली तब रिकॉर्ड पर लताजी का नाम चढ़ा।
लताजी ने कई गीतों को उपशास्त्रीय गायन में इस कदर गाया है कि उनकी शास्त्रीय गायिकी की पकड़ का अंदाजा हो जाता है। कई रागदारिया हमे यह सोचने पर मजबूर कर देती है कि कुदरत का करिश्मा उनकी गायन शैली है। ऐसा लगता हैं कि सरस्वती स्वयं लताजी के रूप में अवतरित हुई है।
कई शास्त्रीय गायकों द्वारा लताजी के लिए जो सम्बोधन किये गए है उससे यह साबित हो जाता है कि संगीत पर पकड़ रागदारियो की समझ व स्वरों का खेल मुरकीया, ताने,आलाप लताजी हँसते हँसते कर जाती हैं।
मरहूम उस्ताद अल्लारखां (तबला नवाज) कहते हैं-" आनेवाले हजार सालो में भी दूसरी लता नही होगी"
मरहूम उस्ताद सज्जाद हुसैन (ख्यात संगीतकार व मेंडोलिन वादक) कहते हैं कि लता मंगेशकर
मरहूम उस्ताद सज्जाद हुसैन (ख्यात संगीत निर्देशक व मेंडोलिन वादक) कहते हैं कि लता मंगेशकर में निस्वानीयत और औरतपना हैं।खुदा को लता बनाने के बाद दूसरी गायिकाएँ बनाने की जरूरत ही क्या थी।मैंने तो उनकी जोड़ की दूसरी गायिका ही नही देखी।

लीजेंड अभिनेता दिलीप कुमार कहते है कि उनकी आवाज खुदा की देन है।
उस्ताद अमजद अली खां (सरोदवादक ) कहते हैं " Lata's Voice unique favour by Mother Saraswati "

पु. ल. देशपांडे कहते हैं -"लता के साम्राज्य में सूर्य कभी अस्त नही होता।"
संगीतकार नौशाद अली कहते हैं "लता के गले रूपी सरोवर से चाहे वो निकलवा सकते हो।

संगीतकार मदन मोहन कहते है "किसी ज्योतिष ने मुझे मेरे भूत, वर्तमान, भविष्य में बताया,लेकिन ये नही बताया कि मेरे संगीत को लता नामक दिव्य आवाज सुरों में ढालेगी।

उस्ताद बड़े गुलाम अली खां कहते है "कि कमबख्त कभी बेसुरी ही नही होती है, यह लड़की 3 मिनट में वो सब गा जाती है जो मैं बरसो के रियाज के बाद भी गा नही पाता" वाकई वो उस्तादों की उस्ताद हैं।

उस्ताद अमीर खां कहते है कि "लता मंगेशकर ने हम शास्त्रीय गायक और गायिकाओं को पहचान दी है।

स्वर्गीय ख्यात गायक कुमार गन्धर्व कहते हैं "लता के स्वरों में कोमलता और मुग्धता है। लता के गानो की विशेषता है ,उनका नादमय उच्चार लता का एक गाना उनकी सम्पूर्ण कलाकॄति होती है। स्वरालय शब्दार्थ का वहाँ त्रिवेणी संगम होता है। लता चित्रपट के संगीत क्षेत्र की अनाभिषिक साम्राज्ञी है। लता जैसा कलाकार शताब्दियों में केवल एक बार ही पैदा होता है। तानपुरे से निकलने वाले गांधार को शुद्ध रूप से सुनना हो तो उनका कोई भी गीत सुन लीजिए।

मरहूम जुल्फिकार अली भुट्टो (पूर्व प्रधानमंत्री पाकिस्तान) कहते है " चाहे कश्मीर रख लो लेकिन लता मंगेशकर हमे दे दो।"

संगीतकार हेमंतकुमार कहते हैं मैं लता जी के बारे में क्या कहूं साक्षात सरस्वती है।

हर संगीत जानकर ने अलग अलग समय अपने ढंग से लताजी के लिए भिन्न भिन्न अभिव्यक्तियां की है। कहने का सार है कि लताजी को जो जैसा तोल सकता था ,अपने शब्दों में बांध सकता था, उसने अपना श्रेष्ठ प्रयास किया। लता संगीत की वो शीतल धारा है जो न रुके बहती रहेगी। आप उसके गीतों की धारा में चाहे जितना उतर जाओ, समा जाओ, सतह पर आ जाओ पुनः समा जाओ आपकी न तो चाह खत्म होगी ,न थकान महसूस होगी और न ताजगी खत्म होगी।

लता को शास्त्रीय रागों की समझ उनको पेश करने का अंदाज ईश्वरीय देन के रूप में मिला है।
फिल्म "सुवर्ण सुंदरी" का गीत "कुहू कुहू बोले कोयलिया" इस गीत को लता ने मोहम्मद रफी के साथ गाया था। इस गीत में 4 रागों का मिलाप हैं सोहनी, जौनपुरी, यमन व बहार। लता के स्वर का कमाल देखिये कि मन बरबस कह उठता है वाह क्या बात हैं।

ऐसा ही एक और गीत जो 4 रागों के मिलाप से बना है जिसे संगीत दिया था अनिल बिस्वास ने फिल्म हैं हमदर्द सन 1953 में बना गीत "रितु आये रितु जाए सखी री "।इस गीत में लता का साथ मन्नाडे ने दिया है। इस गीत में जोगिया, मल्हार, सारंग और बहार रागों का मिश्रण है। पहला अंतरा सारंग में,दूसरा अंतरा मल्हार में, तीसरा अंतरा जोगिया में व चौथा बहार में दिया है।लता की गायन शैली का यह उत्कृष्ट बिंदु है।

चर्चा जब शास्त्रीय रागों के समावेश वाले गीतों की चल रही हो तो अनारकली फ़िल्म सन 1953 में संगीतकार सी. रामचंद्र का गीत " ये जिंदगी उसी की है, जो किसी का हो गया"मुझे ऐसा लगता है कि लता ने जब जो गीत गाया उसके मूड,उसके बोल, उसके राग, व फिर संगीतकार क्या चाहता है व किस पर फिल्माया गया है, सिचुएशन कैसी है तभी तो ये गीत आज भी अमर है।गीत में अण्णा ने राग भीमपलासी , किरवानी और काफी राग को एक साथ पेश किया है। और इस गीत में कोमल धैवत का प्रयोग कर लता क्या खूब गाती हैं।
सन 1966 में फिल्म "आये दिन बहार के" संगीत लक्ष्मी प्यारे का में "सुनो सजना पपीहे ने " क्या मीठा गीत हैं।इसमे लक्ष्मी प्यारे ने बांसुरी और सन्तूर का क्या खूब इस्तेमाल किया है।

प्यारेलाल के लिए लता कहती हैं कि किसी भी गीत के पहले की चन्द मिनिट की धुन इतनी जल्दी बना लेता हैं और इतनी संगीत की गहरी समझ है, कभी मौका मिला तो प्यारेलाल के लिए लिखूंगी। वाकई गीत भी लाजवाब है और लता क्यो लता हैं इसे उसके गीत हमे बेहतर समझा जाते हैं। गीत के पूर्व का आलाप और फिर कोयल और पपीहे की आवाज गीत में चार चांद लगाती हैं।

अब मैं लताजी के उपशास्त्रीय गीतों को विभिन्न संगीतकारो की जादूगरी से सजे अनमोल हीरे आपकी नजर कर रहा हूं। अपनी धड़कनों को संभालिये और अपने शरीर के रोये रोये को लता की नादमय ब्रम्ह आवाज में लीन कर लीजिए।

1 आज मेरे नसीब ने फिल्म हलचल सन 1951 संगीतकार सज्जाद हुसैन राग गोरख कल्याण
2 हाये रे वो दिन क्यू फिल्म अनुराधा 1960 संगीतकार प. रविशंकर राग जगसम्मोहिनी
3 मेरी वीणा तुम बिन फिल्म देख कबीरा रोया 1957 संगीतकार मदन मोहन राग अहीर भैरव
4 जो तुम तोड़ो पिया फिल्म झनक झनक पायल बाजे 1955 संगीतकार वसन्त देसाई राग भैरवी
5 जा जा रे जा बालमवा फिल्म बसन्त बहार 1956 संगीतकार शंकर जयकिशन राग भैरवी
6 जाओ रे जोगी तुम जाओ रे फिल्म आम्रपाली 1966 संगीतकार शंकर जयकिशन राग भैरवी
7 जीवन डोर तुम्ही संग फिल्म सती सावित्री 1964 संगीतकार लक्ष्मी प्यारे राग यमन
8 लागे न मोरा जिया फिल्म घूंघट 1960 संगीतकार रवि राग शिवरंजनी
9 घूंघट नही खोलूंगी फिल्म मदर इंडिया 1957 संगीतकार नौशाद राग पीलू
10 ओ निर्दयी प्रीतम फिल्म 1961 संगीतकार सी. रामचन्द्र राग भीमपलासी
11 ऐ री मैं तो प्रेम दीवानी फिल्म नवबहार 1952 संगीतकार रोशन नागरथ राग भीमपलासी
12 ये नीर कहाँ से बरसे फिल्म प्रेमपर्वत 1973 संगीतकार जयदेव राग तिलक कामोद
13 राधा ना बोले फिल्म आजाद 1955 संगीतकार सी. रामचंद्र राग बागेश्री
14 ना जिया लगे ना फिल्म आनन्द 1970 संगीतकार सलिल चौधरी राग गारा 15 जा रे जा बालमा फिल्म सौतेला भाई 1962 संगीतकार अनिल विश्वास राग अड़ाना
16 मनमोहना बड़े झूठे फिल्म सीमा 1955 संगीतकार शंकर जयकिशन राग जयजेवन्ती
17 ज्योति कलश छलके फिल्म भाभी की चूड़ियां 1961 संगीतकार सुधीर फड़के राग देशकर
18 झन झन पायल बाजे फिल्म बुजदिल 1951 एस. डी. बर्मन राग नटबिहाग
19 पड़े बरखा बहार फिल्म दूज का चांद 1964 संगीतकार रोशन राग गौड़ सारंग
20 बय्या ना धरो फिल्म दस्तक 1970 संगीतकार मदन मोहन राग चारुकेशी

कई फिल्में तो संगीतप्रधान फिल्मे ही बनी और उसमें संगीतकार ने अपने संगीत की समझ लता के द्वारा ही हमे दी । इतने सुमधुर गीत शास्त्रीय बंदिशें और गीत संगीत में तानो का महत्व, साँसों का रुकाव व स्वर का आलाप साथ ही धीरे धीरे उठाव,मुरकीया यह कला लताजी के गीतों में साफ साफ महसूस की जा सकती है।
लता मंगेशकर की सौम्यता के दर्शन व शास्त्रीयता की सोच के लिए एक किस्सा आपकी नजर हैं। कलकत्ता में एक शो के दौरान उस्ताद बड़े गुलाम अली खां व लता मंगेशकर को आमंत्रित किया गया। जैसेही गायन की शुरुआत पूर्व सरस्वती वंदना के लिए लता ने मंच पर आकर आलाप लेकर एक मराठी गीत को गुनगुना कर बैठ गई, क्योकि उस्ताद बड़े गुलाम अली खां का गायन होना था लेकिन लताजी के बैठने व बड़े गुलाम अली खां के गायन के प्रारंभ के पूर्व पूरे सभागार में "वी वांट लता" की आवाज आने लगी।

और जोर पकड़ने लगी।आयोजक स्तब्ध, लताजी स्तब्ध, सभी असमंजस में कि स्तिथि कैसे सम्भाले ? खां साहब गायन नही कर पा रहे थे। ड्रेसिंग रूम में लताजी आयोजको पर बेहद खफा हो रही थी कि आपको आपने खां साहब के साथ मुझे क्यू मंच पर बैठाया,उनका अपमान मेरे बर्दाश्त के बाहर है।लताजी ने आयोजको को खूब खरी खोटी सुनाई और जितना भी कोस सकती थी उतना भला बुरा कहा।जब श्रोता शांत नही हुए तो उस्ताद जी ने लता को मंच पर बुलाया और अपने समीप बैठाया तब श्रोता वर्ग शान्त हुआ।और उस्तादजी का गायन प्रारम्भ हुआ।लताजी कह रही थी कि मैं उस्तादजी के पास करीब बैठी थी तो स्वयं को ग्लानि से धरती में समाने जैसा महसूस कर रही थी, नजरें थी कि ऊपर उठ नही रही थी और बदन पूरा थरथरा रहा था। अब आप ही बताइए कि लताजी का शास्त्रीय गायकों व उनकी गायकी के लिए कितना सम्मान हैं।

ऐसे ही एक बार मदन मोहन के संगीत में "चाचा जिंदाबाद" का गीत "प्रीतम दरस दिखाओ" के दौरान किस्सा हुआ। मदन मोहन चाहते थे कि गीत लताजी व अमीर खां साहब (इंदौर की शान) साथ गाये।जब ये बात मदन मोहन ने लताजी को बताई तो लताजी घबराकर मदन मोहन को बोली- मदन भईया (लताजी मदन मोहन को भाई का दर्जा देती थी) कहाँ खां साहब और कहाँ मैं इसलिए खां साहब के साथ मुझे मत गवाओ। बाद में यह गीत मन्नाडे और लता के युगल स्वरों में रिकॉर्ड हुआ।किंतु असंतोषी और विघ्नसंतोषी व कई आलोचकों ने खां साहब को जाकर बोला कि लताजी अपने आप को इतना बड़ा सिंगर मानती है कि आपके साथ गाने से मना कर दिया।कहने का तातपर्य यह है कि उनकी शास्त्रीय समझ को लेकर भी कई गैर समझ हुई।

लताजी के गीतों में जब शास्त्रीय संगतकार अपनी उत्कृष्ट बंदिश द्वारा मौजूदगी दर्शा सकते है, तो लताजी के गायन पक्ष के लिए या यूं कहिये कि कोई भी विपरीत ख्याल मन मे आ ही नही सकता।
उस्ताद बिस्मिल्लाह खां, उस्ताद अमजद अली खां, उस्ताद विलायत खां, पण्डित रामनारायण, पण्डित हरिप्रसाद चौरसिया, पण्डित शिवकुमार शर्मा, पण्डित रविशंकर जैसे संगीतज्ञ लताजी के गायन में संगत कर सकते हैं तो उस स्वर साम्राज्ञी ,स्वर कोकिला ,सरस्वती पुत्री के गीतों में सिर्फ लीन होने को मन करता है।
लताजी के स्वर को पाकर उस गोल्डन एरा युग के संगीतकार जिनमे अनिल विश्वास, सज्जाद हुसैन, एस, डी, बर्मन, मदनमोहन, सी, रामचंद्र, वसन्त देसाई,सलिल चौधरी, जयदेव, रवि,खय्याम, हेमंतकुमार, रविंद्र जैन, हुस्नलाल भगतराम, शंकर जयकिशन, कल्याणजी आनन्दजी, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल जैसे हर किसी ने अपने गीतों से सर्वश्रेष्ठ गाने देकर गीतों को अमरता दी, ऐसे कंठ के लिए पूरा विश्व विस्मित है।

लताजी ने सबसे अधिक गीत लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के साथ 695 से अधिक शंकर जयकिशन के साथ 453 , आऱ, डी, बर्मन के साथ 331, कल्याणजी आनन्दजी के साथ 302, सी, रामचंद्र के साथ 298, चित्रगुप्त के साथ 240, मदनमोहन के साथ 210, एस, डी, बर्मन के साथ 182, नौशाद के साथ 161, रोशन के साथ 146, हेमंतकुमार के साथ 139, राजेश रोशन के साथ 132, सलिल चौधरी के साथ 128 गीत गाये।

खेमचन्द प्रकाश की फिल्म महल का गीत "आयेगा आनेवाला " की रेकॉर्डिंग में 5 दिन तक रिहर्सल चली तब गीत पूरा हुआ।
कई कई बार लताजी ने रात 2 बजे तक भी रेकॉर्डिंग की। ऐसा नही की लताजी को प्रतिस्पर्धा नही मिली।उस समय नूरजहां, सुरैया, गीता दत्त, सुमन कल्याणपुर, शमशाद बेगम, मुबारक बेगम, वाणी जयराम, सुलोचना कदम, कमल बारौठ, कृष्णा कल्ले जैसी गायिकाओं से लताजी को कड़ी प्रतिस्पर्धा मिली।

लताजी पर कई आरोप प्रत्यारोप भी लगे,उनपर मोनोपॉली का आरोप भी लगा लेकिन आज इतने वर्षों बाद यह बगैर कहे सुने सर्वविदित हैं कि वे क्यो सर्वश्रेष्ठ हैं।. मन्दिरो में भजन चल रहे हो तो लताजी के भजनों से ही शुरुआत होती है।देशभक्ति के गीत बज रहे हो तो लताजी के ऐ मेरे वतन के लोगो से ही शुरुआत होती है।
लताजी के एक एक गीत पर विवेचना की जाए तो हर गीत पर एक अध्याय लिखा जा सकता है।

ज्ञान विज्ञान बहुत आगे निकल गया हैं । मनुष्य ने नित नई आवश्यकता की पूर्ति हेतु अपने सुख के लिए अनेक उपलब्धियां हासिल की है।वो विज्ञान के दाता भी लताजी के कंठ को देखने की जिज्ञासा रखते हैं और चाहते हैं कि वे उस कंठ का अध्धयन कर सके कि ऐसी क्या विशेषता जो किसी और में नही। उस दिव्य पिता परमेश्वर द्वारा एक ही सृष्टि की रचना की गई, एक ही मनुष्य की रचना की गई और एक ही एक लता मंगेशकर की रचना की गई।

इंदौर का नाम लताजी से जुड़ने से भी इंदौरवासियों को गौरान्वित होने का मौका मिला है। इंदौर धन्य हैं , सिख मोहल्ला धन्य है, वह गली धन्य है जहाँ लताजी का जन्म हुआ है। हर इन्दौरवासी को लताजी से जुड़ने का सौभाग्य मिला अतः हर इंदौरवासियों को फक्र होना स्वाभाविक भी है कि लताजी उनकी हैं।

अंत सिर्फ इन शब्दों में करूँगा कि मनुष्य और ईश्वर को आपस मे जोड़ने वाले तार माध्यम का नाम ही लता मंगेशकर है। और इस सृष्टि की अदभुत किवदंती की सुरमई आवाज में जयदेव के संगीत में "अल्लाह तेरो नाम ईश्वर तेरो नाम" सुनिये और ब्रह्म में लीन हो जाइए।


- डॉ. विवेक गावड़े, इंदौर (मध्य प्रदेश)
   कला समीक्षक, लेखक, कवि, संगीत संग्रहकर्ता,
म्यूजिक थेरेपिस्ट, वर्ल्ड पार्लियामेंट मेंबर
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