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मां, मातृभाषा, मातृभूमि का कोई विकल्प नहीं : किशन शर्मा


नागपुर। मातृभाषा सिखायी नहीं जाती, वह मनुष्य को जन्मत: प्राप्त होती है। वह हमारी धमनियों में बहती है, हमारे सांसों में बसती है। मां, मातृभाषा और मातृभूमि का कोई विकल्प नहीं होता।आज आवश्यकता है कि हम अपनी मातृभाषा के प्रति निष्ठावान बनें। यह बात आकाशवाणी के लोकप्रिय उद्घोषक किशन शर्मा ने कही। वे हिन्दी विभाग, राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय एवं शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, विदर्भ प्रांत के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस कार्यक्रम में बोल रहे थे। 


श्री शर्मा ने चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा कि मातृभाषा का संबंध मां से है पर आज की माताएं अपने बच्चों से अपनी भाषा में बात करने में झिझकती हैं। दैनिक जीवन और व्यवहार में मातृभाषा का प्रयोग करके ही हम उसके प्रति अपना कर्तव्य निभा सकते हैं। उन्होंने जीवन में मातृभाषा के महत्व को रेखांकित किया। आकाशवाणी के अपने निजी अनुभवों के साथ ही मोहम्मद रफी, मन्नाडे, किशोर कुमार, मुकेश कुमार, राज कपूर, हरिवंश राय बच्चन, गीतकार नरेंद्र आदि विख्यात कलाकारों से जुड़े रोचक संस्मरण सुनाते हुए भाषा के प्रति इनके लगाव पर प्रकाश डाला।

प्रास्ताविक उद्बोधन में हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. मनोज पाण्डेय ने कहा कि मातृभाषा न केवल संवाद का माध्यम होती है, बल्कि संस्कृति की संवाहिका होती है। संस्कृति से समाज में जीवन-मूल्यों का संरक्षण होता है। भाषाई वैविध्य सामाजिक समृद्धि के लिए आवश्यक होता है। हमारी विविधायामी संस्कृति का संरक्षण भाषाओं के द्वारा ही संभव है। उन्होंने कहा कि आज भारत ही नहीं, विश्व स्तर पर मातृभाषाओं के संरक्षण और विकास की आवश्यकता महसूस की जा रही है। जिस तरह से मातृभाषाएं लुप्त हो रही हैं, वह चिन्ता का विषय है। इसीलिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति में मातृभाषा को बढ़ावा देने पर जोर दिया जा रहा है। 

स्वागत उद्बोधन देते हुए डॉ. लखेश्वर चन्द्रवंशी ने कहा कि भारत एक बहुभाषी राष्ट्र है। इसलिए प्रत्येक भाषा में अन्य बोलियों के शब्द स्वाभाविक रूप से आते हैं। वास्तव में, जब हम अपनी मातृभाषा में पारंगत होते हैं तो हम अन्य भाषाएँ आसानी से सीख सकते हैं। कार्यक्रम का संचालन करते हुए डॉ. सुमित सिंह ने कहा कि मातृभाषा व्यक्ति के विचार की भाषा होती है। मातृभाषा को संरक्षित करके ही भारतीय भाषाओं का संवर्धन हो सकता है। मातृभाषा के अभाव में समाज निर्जीव हो जाता है। इस अवसर पर न्यास द्वारा प्रस्तावित 'एक राष्ट्र, एक नाम : भारत' संबंधी संकल्प अभियान पर हस्ताक्षर किए गए। कार्यक्रम में डॉ. कुंजनलाल लिल्हारे, प्रा. दामोदर द्विवेदी सहित विभाग के अनेक शोधार्थी, विद्यार्थी उपस्थित थे।
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