आरिणी प्रेमोत्सव स्नेहानंद के साथ संपन्न
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नागपुर/भोपाल। शाहपुरा लेक के नैसर्गिक रमणीय वातावरण में आरिणी चैरिटेबल फाउंडेशन द्वारा आरिणी प्रेमोत्सव का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का आरंभ सामूहिक सरस्वती वंदना से हुई। स्वागत वक्तव्य संस्था अध्यक्ष डॉ मीनू पांडेय नयन द्वारा दिया गया। कार्यक्रम का सरस संचालन कीर्ति श्रीवास्तव द्वारा किया गया और आभार व्यक्त किया मधूलिका सक्सेना मधुआलोक ने। इस समारोह में सभी ने लाल रंग के परिधान धारण किये थे और सभी ने कानों में हृदय की आकृति वाले लाल कुंडल धारण किये थे। वसंत के इस पावन माह में जब चारों ओर हरियाली छाई हुई है और प्रकृति की रमणीयता स्वयं ही सृजनात्मकता को बड़ा देती है तो ऐसे में कवि हृदय से नेह की कूक अपने आप ही निकल उठती है और यह हूक और कूक जब शब्दों का आकार ले लेती है तो बनती है श्रृंगार की कविता, यह मिलन भी हो सकता है और विछोह भी। और जब स्नेहिल भावनाओं का आवेग मन को झंकृत कर देता है तो याद आ जाती है मनमीत की मोहक मुस्कान और सम्मोहित करता संपूर्ण व्यक्तित्व।
ऐसे में प्रतीत होता है, कि नदियाँ, वृक्ष, पशु पक्षी सभी अपने अपने प्रियवर के संग आत्मिक आनंद की अनुभूति कर रहे हैं। ऐसी ही अनुभूति हम सभी को हुई, जब इस कविता रूपी नदी में हमने डुबकी लगायी। इस प्रेमोत्सव की अध्यक्षता की डाॅ रंजना शर्मा ने, मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहीं सुनीता शर्मा सिद्धि और विशिष्ट अतिथि थीं कमल चंद्रा। कार्यक्रम दो सत्रों में संपन्न हुआ। प्रथम सत्र में काव्यगोष्ठी का आयोजन किया गया और स्वल्पाहार के बाद द्वितीय सत्र में विभिन्न प्रेम गीतों पर सभी साहित्यकार बहनों ने रील बनाई। लेखिकाओं की कलम से सृजित इस अनुरागोत्सव की बानगी देखिए :
पुष्प हैं सुरभित, कलिकाएं ले रहीं अंगड़ाई।
झूल रहे हैं अलि डाल पर, यौवन ने छिटकी तन्हाई।।
- कमल चंद्रा
जब भी अधरों पर नाम आएगा तेरा
वह फूलों से सारा चमन खिल उठेगा
प्रेम की डगर में चलना तो सीखो
हर जगह रंगों का निखार मिलेगा
- सुनीता शर्मा सिद्धि
मैं हूँ सखी रंजना व्यस्त से
व्यस्ततम रहती हूँ रात-दिन
हँसना - हँसाना प्रयास रहता है
प्यार सभी का मिलता रहता है
आपके संग रह, बहुत इतरा गई
तभी, शाहपुरा लेक तक आ गई
- डॉ. रंजना शर्मा
प्रेम पत्र लिखने का मन था,
लिखूँ भला क्या समझ न आया,
- वर्षा श्रीवास्तव
मैं इश्क में हूं या इश्क मुझ में है,
जरा बता न ऐ ज़िन्दगी
- निरुपमा खरे
ओस की बून्द हूँ
छू लो पिया तर जाउंगी
लहर हूँ, पानी की
छू लो पिया
कालिंदी कहलाऊंगी।
- सुसंस्कृति सिंह
प्रेम एक शब्द जो दिल में उतर जाये।
एक अहसास जो धडक़न में समा जाये।
- कीर्ति श्रीवास्तव
श्याम सुन्दर सबेरे सबेरे, हमको मन में बसाया करो न।
भूल जाते हैं मुरली को सुन कर,
रोज इसको बजाया करो न।
- डॉ. मीनू पांडेय ‘नयन’
दिल्लगी नहीं, दिल की लगी है ये, जरा समझा करो।
जज़्बातों का हुजूम है ये, जरा समझा करो।
- कुमकुम सिंह
स्वागत में ऋतुराज खड़ा, घरती पर आये श्याम।
मौसम है ये मिलन का, खुद से वादे निभाने का।
लो आया वसंत...
- जया आर्य
धूप पसर गई बहकी सी, और चुनरिया पीली सी।
पैंया पैंया चली जा रही, नगर डगर को ढकती सी।
- मधूलिका सक्सेना
देखती हूँ जिधर मेरे हमसफर, तुम ही तुम नजर आते हो।
जीवन में आशा के दीप जलाते हो।
- शेफालिका श्रीवास्तव
राजपूत सुरेशवा के साथ भागी, पंडित परिवार की ललितवा।
जब वापस लौटी प्रेम करके, तो सभी ने उससे दूरियाँ बना ली।
- प्रतिभा श्रीवास्तव