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बेंगलुरू के माउंट कार्मेल कॉलेज में आयोजित हुई अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी


नागपुर/बेंगलुरू। ‘परंपरा कभी स्थिर नहीं रहती। वह निरंतर परिवर्तित होती है और उसके साथ ही ज्ञान का भी विस्तार होता है। भारत की ज्ञान परंपरा के स्त्रोत भारतीय भाषाओं में बिखरे हुए हैं। उन सभी को समाज तक पहुंचाने के लिए जरूरी है कि वह हमारी शिक्षा का हिस्सा बने।‘ये विचार माउंट कार्मेल कॉलेज, बेंगलुरू के अभिज्ञान भारतीय परंपरा केंद्र; अरुंधती ज्ञान परंपरा केंद्र, पीजीडीएवी कॉलेज (सांध्य), दिल्ली विश्वविद्यालय तथा दिल्ली हिन्दी साहित्य सम्मेलन के संयुक्त तत्वावधान में ‘हिंदी भाषा कौशल, भाषाई दक्षता और भारतीय ज्ञान परंपरा’ विषय पर आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रो. सुधीर प्रताप सिंह ने कहे। उन्होंने यह भी कहा कि हमें अपनी ज्ञान परंपरा को अपनी भाषाओं के द्वारा निरंतर विकसित करना चाहिए। 


इस अवसर पर बीज वक्ता के रूप में अपने विचार रखते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के पीजीडीएवी कॉलेज (सांध्य) के प्रो. हरीश अरोड़ा ने कहा कि भारत ने सदियों से अपने ज्ञान को श्रुति परंपरा के माध्यम से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाया। इसी कारण आज भी हमारी ज्ञान परंपरा विश्व के सबसे प्राचीन जीवित ज्ञान परंपरा के रूप में स्थापित है। उन्होंने यह भी कहा कि हमें अपने इस ज्ञान को भारत के प्रत्येक भाषा में अनुवाद के माध्यम से पहुंचाना होगा। तभी इस ज्ञान को संरक्षित और विकसित किया जा सकता है।


संगोष्ठी के आरंभ में माउंट कार्मेल संस्थान की सिस्टर अल्बिना तथा प्राचार्या डॉ जॉर्ज लेखा ने उद्घाटन सत्र में अतिथियों का औपचारिक अभिनंदन किया। कॉलेज के हिन्दी विभाग की अध्यक्ष डॉ. कोयल विश्वास ने आमंत्रित सभी वक्ताओं और अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि इस संगोष्ठी का उद्देश्य दक्षिण और उत्तर के दो शिक्षण संस्थानों तथा एक साहित्यिक संस्था के समन्वय द्वारा भारतीय ज्ञान के सूत्रों को जोड़ना है। उद्घाटन सत्र में प्रो. टी.जी. प्रभाशंकर प्रेमी ने भी विशिष्ट अतिथि के रूप में अपने विचार रखते हुए सभी भारतीय भाषाओं में ज्ञान की खोज पर बल दिया। 


इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. जय प्रकाश कर्दम ने भारतीय साहित्य में बिखरे हुई ज्ञान की प्राचीन विरासत को संरक्षित करने के लिए सरकार की पहल की सराहना की। उन्होंने कहा कि जरूरत है कि हम सभी को इस दिशा में अपना सहयोग देना चाहिए।
इस अवसर पर दिल्ली हिन्दी साहित्य सम्मेलन की उपाध्यक्ष डॉ. वीणा गौतम, प्रो. आशा रानी, वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. जय प्रकाश कर्दम, डॉ जयराम रायपुरा, डॉ विनय यादव, प्रो मैथिली पी राव, प्रो प्रभु उपासे आदि उपस्थित रहे।

यह संगोष्ठी दो दिन तक विभिन्न सत्रों में चली। एक सत्र की अध्यक्ष प्रो. आशा रानी ने विभिन्न प्रपत्र वाचकों के पत्रों को सुनने के पश्चात पंजाबी भाषा में समाहित भारतीय ज्ञान परंपरा के महत्वपूर्ण सूत्रों पर विचार किया। प्रो. विनय यादव तथा प्रो. मैथिली ने भाषायी सम्प्रेषण और भाषा कौशल के विभिन्न पहलुओं को रेखांकित करते हुए भारतीय ज्ञान की परंपरा में इसकी आवश्यकता पर बल दिया। विदेश से प्रसिद्ध हास्य एवं व्यंग्य के लेखक डॉ हरीश नवल ने अंतरराष्ट्रीय अतिथि के रूप में ऑनलाइन अपने विचार व्यक्त किये। 

इस संगोष्ठी के संरक्षक प्राचार्या डॉ जॉर्ज लेखा ने उद्घाटन सत्र में अतिथियों का औपचारिक अभिनंदन भी किया। हिन्दी के लिए निरंतर प्रयासरत, माउंट कार्मेल कॉलेज के हिन्दी विभाग की अध्यक्ष एवं संगोष्ठी के संयोजक डॉ कोयल बिस्वास ने कार्यक्रम का संचालन किया। देश भर से बहु संख्या में प्रतिभागियों ने इस संगोष्ठी में भाग लिया।  अलग अलग सत्रों में हिन्दी भाषा कौशल, भाषाई दक्षता एवं भारतीय ज्ञान परंपरा पर ज्ञान मंथन हुआ। हिंदी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के तहत आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम ने भारतीय कला, संस्कृति और परंपरा को जीवंत किया।

संगोष्ठी के दूसरे दिन भव्य काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें सुप्रसिद्ध कवयित्री, रंगकर्मी एवं लेखिका, राष्ट्रपति सम्मान से सम्मानित डॉ मंजरी पांडे उपस्थित रही। इस अवसर पर वरिष्ठ कवि जयप्रकाश कर्दम, हरीश अरोड़ा, इसपाक आली, वीणा गौतम, आशा रानी, धन्यकुमार बिराजदार ने अपनी कविताओं और गीत से श्रोताओं को मंत्र मुग्ध किया। संगोष्ठी के समापन सत्र के मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित डॉ इसपाक अली जी ने संगोष्ठी की सफलता के लिए कॉलेज को बधाई दी। इस अवसर पर पीजीडीएवी कॉलेज (सांध्य) के प्राचार्य डॉ आर के गुप्ता ने भाषा और उसके महत्व पर अपना ओजपूर्ण संदेश देकर संगोष्ठी की गरिमा बढ़ाई।

संगोष्ठी का औपचारिक धन्यवाद ज्ञापन हिन्दी विभाग की डॉ वानिश्री बुग्गी ने किया तथा संगोष्ठी के सह संयोजक डॉ राठोड पुण्डलिक ने संगोष्ठी रिपोर्ट को व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत किया। हिन्दी विभाग के अन्य सदस्यों में डॉ अनुपमा, डॉ प्रियंका, श्री कौशल कुमार पटेल तथा श्रीमती अतिरा ने आयोजन को सफल बनाने में अपना योगदान दिया। विद्यार्थी मंडली के अध्यक्ष कुमारी विधि एवं भाग्यश्री के कुशल नेतृत्व ने आयोजन को सफल बनाया।
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