बच्चों, किशोरों और युवाओं की ऑनलाइन आदतों पर ध्यान देना जरूरी
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बच्चों और किशोरों में स्मार्ट फोन की लत इस कदर बढ़ती जा रही है की ‘मोबाइल नशा मुक्ति केंद्र’ तक खोलना पड़ रहा है। प्रयागराज के कॉल्विन अस्पताल के मोबाइल मुक्ति केंद्र में सुधार के लिए आने वालों में 50 प्रतिशत किशोर और शेष में बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक शामिल हैं। बता दें कि इंटरनेट की लत से ग्रस्त बच्चों -किशोरों की काउंसलिंग के लिए बंगलुरू स्थित निमहांस (राष्ट्रीय मानसिक जांच एवं तंत्रिका विज्ञान संस्थान) देश का पहला क्लीनिक हैं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार दिल्ली के एम्स, पुणे और यूपी के तीन जिलों तथा अमृतसर में भी मोबाइल नशा मुक्ति केंद्र प्रारंभ हुए हैं। शहरों में जहां स्मार्ट फोन नशा मुक्ति केंद्र के रूप में डी-एडिक्शन सेंटर खुल रहे हैं, वहीं गांवों और कस्बों में भी इसकी आवश्यकता तेजी से महसूस की जा रही है। इस समस्या की विकरालता को देखते हुए विशेषज्ञों का तो यहां तक मानना है कि प्रत्येक जिले में इंटरनेट नशा मुक्ति केंद्र खोले जाने की आवश्यकता है।
बच्चे मोबाइल की लत का इतना शिकार हो चुके हैं कि उन्हें टोकने पर वे रूठकर खाना पीना तक छोड़ देते हैं और अतिरेक में आत्मघाती कदम तक उठाने से नहीं चूक रहे हैं। मोबाइल के अत्यधिक उपयोग से मेघावी बच्चों की पढ़ाई तक बाधित हो रही हैं। उनके परीक्षा परिणाम भी बिगड़ रहे हैं। मोबाइल से दूर रखने पर बच्चे अवसाद में आ रहे हैं और हिंसक होते जा रहे हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार इन घटनाओं में ऑनलाइन गेम, सोशल मीडिया एवं इंटरनेट पर घंटों उलझे रहने से बच्चों, किशोरों और युवाओं में हिंसक व्यवहार पनपता जा रहा है। एक अध्ययन के अनुसार सोशल मीडिया पर सक्रिय 10 में से 3 बच्चे अवसाद, भय, चिंता के साथ चिड़चिड़ेपन के शिकार होते हैं। किसी का मन पढ़ाई में नहीं लगता, तो कुछ को बिना फोन के भोजन तक करने की इच्छा नहीं होती।
निम्हांस के अनुसार देश में 25 प्रतिशत बच्चे मोबाइल का उपयोग करते हैं इनमें से 30 प्रतिशत मनोरोग से पीड़ित हैं। इसी के साथ लड़कियां साइबर बुलिंग का शिकार होकर अवसाद में जा रही है। एम्स, नई दिल्ली के एक अध्ययन के अनुसार यहां हर माह 15 से 16 बच्चे काउंसिलिंग के लिए आते हैं, जिनमें 90 प्रतिशत तक मध्यम या अति गंभीर स्थिति वाले होते हैं अर्थात् लक्षण बीमारी के तीसरे या चौथे चरण जैसे दिखाई देते हैं। ऑनलाइन लत के लक्षण क्या हैं? इनको समझना भी जरूरी हो गया है।
यदि कोई मोबाइल स्क्रीन के सामने लंबे समय तक चिपका रहता है तो यह एक बड़ा लक्षण मानना चाहिए। पढ़ाई या किसी काम में मन नहीं लगना, कार्यक्षमता का घटना, चिड़चिड़ापन, नींद नहीं आना, संयम और धैर्य खोना, बात - बात पर गुस्सा आना आदि इस लत के चिंताजनक लक्षण माने जाते हैं, जिनके नजर आने पर तुरंत सचेत होकर इलाज कराने की जरूरत है। इनमें अवसाद, चिंता के अतिरिक्त उच्च रक्तचाप, एनीमिया, मोटापा, मधुमेह जैसे रोग होने की संभावना प्रबल होती है।
दिल्ली एम्स में हुए एक सर्वेक्षण के अनुसार 13.4 प्रतिशत युवा मोबाइल की लत के इस कदर शिकार हो गए हैं कि उनके आपसी रिश्ते भी खतरे में आ गए हैं। स्मार्ट फोन उनके जीवन में उत्कर्ष और प्रगति का माध्यम होने के बजाए उनके बिखराव एवं पतन का कारण बन रहा है। अधिकांश मामले उचित परामर्श ( काउंसिलिंग ) के आधार पर ठीक हो जाते हैं। अभिभावकों की जागरूकता के साथ उन्हें खुद की इंटरनेट की समझ भी विकसित करनी होगी। स्मार्ट फोन के बढ़ते उपयोग और इससे जुड़ी समस्याओं को लेकर व्यापक स्तर पर जागरूकता समय की मांग है
नागपुर, महाराष्ट्र