वंदे मातरम..
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विश्व का द्वितीय सबसे लोकप्रिय राष्ट्र गीत ‘जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ जननी, मां की तरह ही जन्मभूमि का भी हर देशवासी के जीवन मे अत्यंत महत्व होतो है। उसे स्वर्ग से भी महान कहा गया है। अतः हर हाल मे अपनी मातृभूमि, उसकी, नदियां, पर्वत, वन संवत्सर कण कण की रक्षा करना हर देश वासी का धर्म होता है। किसी भी निश्चित भू प्रदेश पर स्थायी रूप से निवास करने वाले निवासियो मे अपनी मातृभूमि के प्रति प्रेम, आदर, सम्मान की भावना, आत्म बलिदान की भावना ही राष्ट्र निर्मिति का मूल आधार है। राष्ट्रीयता की यह प्रबल भावना ही किसी भी राष्ट्र को दीर्घ काल तक जीवित रख सकती है।अतः आदिकाल से लेकर आधुनिक काल तक के समस्त ऋषि मुनियों, साहित्यिकारों, लेखको, कवियों ने इस राष्ट्रीय भावना को बनाए रखने का,इसे जीवित रखने का निरंतर प्रयास किया है।
हमारा देश समय समय पर अनेक आक्रांताओं के आक्रमण का शिकार हुआ है, हमने सदियों गुलामी के दंश को झेला,यातनाएं सही,फिर भी यदि देश जिंदा है तो केवल इसलिए कि हमारी राष्टीयता की भावना जीवित है। अंग्रेजो के शासन काल मे भी हमारे देश मे विपुल प्रमाण में राष्ट्रीय भावना से प्रेरित साहित्यि की रचना हुई। इनमें श्री बंकिम चट्टोपाध्याय का गीत,
‘वंदे मातरम’ सुजलाम, सुफलाम, मलयज शीतलाम, सश्य श्यामलाम्,मातरम्। शुभ्रज्योत्सना पुलकित यामिनीम्, फुल्लकुसुमितद्रुमदल शोभिनीम्, सुवासिनीं, सुमधुर, भाषिणीम् सुखदां वरदां मातरम्।
वंदे मातरम्
(वंदेमातरम गीत में कुल पांच पद थे किंतु अगले तीन पद बाद में स्वीकृत नही किए गए, कारण इसमें की गई देवी वंदना सबको स्वीकार नहीं थी।यद्यपि संसार के कई देशों मे मातृभूमि की कल्पना मां के रूप में की गई है, जैसे, ब्रिटेन की ब्रिटानिया,अमेरिका की कोलंबिया, फ्रांस की मारिया, एवं स्वीडन की मदर स्वेया एवं राष्ट्र राज्यो की कल्पना के साथ इन्हे माता के रूप मे मान्यता भी प्राप्त हुई। अस्तू।)
जो मातृभूमि की वंदना स्वरूप लिखा गया था, अत्यंत प्रसिद्ध हुआ। वे प्रखर राष्ट्रवादी लेखक थे। अतः जब अंग्रेजों ने अपनी रानी की शान में ‘God save the Queen’ गाना अनिवार्य कर दिया तो राष्ट्र प्रेमी बंकिमचंद् को यह बात रास न आई,अंदर ही अंदर चुभती रही और इसी चुभन का परिणाम रहा यह अमर गीत, ‘वंदे मातरम!’ यद्यपि इस गीत की रचना हुई थी 1876 में,किंतु उसका प्रकाशन उनकी अमर कृति ‘आनंद मठ’ में सन् 1882 में हुआ। (यह गीत बहुत ही प्रसिद्ध हुआ, इसने जन जन मे राष्ट्रीयता की भावना जागृत की, यह गीत भारतीय नवयुवक की प्रेरणा बना व देश गुलामी की निद्रा से जागा।)
आनंद मठ में इस गीत के प्रकाशन के पश्चात मानव जीवन की तरह ही गीत ने भी अपने जीवन मे कि उतार चढाव देखे, वास्तव मे अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध मठ के एक साधु भावानंद ने इस गीत को आनंद मठ में गाया। गीत में इस बात पर जोर दिया गया है कि अंधेरे व दर्द से भरी अपनी मां, मातृभूमि की हमें रक्षा करना है। अब यदि अंग्रेजों को यह गीत पसंद ना आए तो माना जा सकता है,किंतु मुस्लिमों को भी नही भाया। उनका मत था कि आनंद मठ उपन्यास वस्तुतः मुस्लिम राजाओं के खिलाफ तपस्वियों के विद्रोह की घटना पर आधारित है और उपन्यास में यह दिखाया गया है कि कैसे हिंदुओं ने मुसलमान शासकों को हराया।
इसमे बंगाल के मुस्लिम राजाओं की आलोचना की गई है। अतः पंडित नेहरू इस गीत को राष्ट्र गीत के रूप में स्वीकार नहीं करना चाहते थे। पश्चात इस गीत की कुछ पंक्तिया को रविंद्रनाथ टैगोर ने हटाने की स्वीकृति दी। विशेष रूप से वे पंक्तियां जिनमें देवी वंदना की गइ थी।
अतः स्वतंत्रता आंदोलन में इस गीत का बहुत प्रयोग किया गया। सर्व प्रथम 1896 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में इस गीत को गाया गया। इसकी धुन रविंद्रनाथ टैगोर ने तैयार की थी, गाया भी स्वयं उन्होंने था। पुनः कलकत्ता में ही 1901 में चरणदास ने एवं 1905 में सरला देवी ने कांग्रेस के बनारस अधिवेशन के समय इस गीत को गाया। यहां से वंदेमातरम गीत बहुत प्रसिद्ध हुआ। इस गीत को सुनकर राष्ट्र नींद से जागा, किंतु पुनः 1923 में कांग्रेस के अधिवेशन में गीत का विरोध आरंभ हुआ। अतः पंडित नेहरू, सुभाष चंद्र बोस, आजाद व आचार्य नरेन्द्र देव इन चार लोगों की कमेटी ने गीत पर विचार कर 1937 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस रिपोर्ट के अनुसार वंदे मातरम जो पांच पद का लंबा गीत था उसके केवल दो पदों को ही प्रासंगिक माना गया।
इसके पश्चात संविधान सभा की पहली बैठक 14 अगस्त सन् 1947 को वंदे मातरम गीत से आरंभ हुई तो पंद्रह अगस्त 1947 को ऑल इंडिया रेडियो पर वंदे मातरम का लाईव प्रसारण किया गया एवं भातर के स्वतंत्रता संग्राम में इस गीत की भूमिका को देखते हुए डा. राजेन्द्र प्रसाद ने 24 जनवरी 1950 को संविधान में निर्णय लिया कि वंदे मातरम गीत के दो पदों को जनगणमन राष्ट्र गान की तरह मान्यता दी जानी चाहिए तथा बांग्ला भाषा हटाकर ‘वंदे मातरम’ को देव नागरी लिपि में करना चाहिए।
बंकिमचंद के वंदेमातरम गीत ने स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, देश के कोटि कोटि लोगों की प्रेरणा बना, लोगों को दासता की निद्रा से जाग्रत किया, राष्ट्रभक्ति की लहर जगाई एवं वही गीत दुनिया का सबसे लंबा गीत बना। सन् 2002 के बी.बी.सी. के सर्वेक्षण के अनुसार विश्व के 7000 गीतों का चयन किया गया, 155 देशों के लोगों ने सर्वेक्षण में अबतक के ‘दस’ सबसे लोकप्रिय गीतों का चयन किया और अत्यंत प्रसन्नता की बात यह कि वंदेमातरम शीर्ष दस गीतों में दूसरा रहा। इस तरह हमारा वंदे मातरम गीत केवल अपने देश में ही नही पूरे विश्व में प्रसिद्ध हुआ। वस्तुतः यह हर भारतीय के लिए गौरव की बात है।
नागपुर, महाराष्ट्र
9423066820