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सुराबर्डी में सखियों के समूह ने की शिवतत्व की आराधना


नागपुर। सारी मायावी पर्तों को चीरकर देखे तो मनुष्य अपने अंतस में शिवतत्व का दर्शन कर सकता है। बस जरूरत है चिन्तन के तल पर गहरे उतरने की- परम तत्व के साक्षात् की। सुराबर्डी आश्रम में निर्मित कृत्रिम गुफा (जो वास्तविक लगती है) में प्रवेश पूर्व कुछ सीढ़ियाँ (आत्मबोध की) चढ़नी तो पड़ती है, तब जाकर गहन एकान्त में बारह ज्योतिर्लिंगों और नौ देवियों के दर्शन सुलभ हो पाते हैं। इस व्यवस्था के पीछे दिव्य दर्शन का आलोक है। बेशक अणु अणु में ईश्वर है पर मनुष्य को उसे साकार देखे बिना करार कहाँ आता है। मानव निर्मित ईश्वर की सारी संरचनाएं श्रेष्ठतम कल्पना की उपज होती हैं।

परिवेश में वृहदारण्यक उपनिषद में वर्णित,वेदान्त दर्शन का आधार वाक्य स्मरण आना स्वाभाविक है-"अहं ब्रह्मास्मि"-'सकल ब्रह्माण्ड का स्वामी ईश्वर- हम और चराचर जगत उसका ही सृजन। सर्वत्र अभेद। पेड़ पौधे, धूप छाँह,जलधारा, हवा, निर्झर, घास फूल, आकाश तितली और मिट्टी। फर्क और तर्क बुद्धि करती है, द्वैत उपजाती है, कलात्मक सृजन के लिए। गुफा के उर्ध्वभाग में चट्टानों पर शिवजी नंदी गणेशजी की प्रतिमाएं जलधाराओं की रूनझुन और ठंडी हवाओं के स्पर्श से अनामिक शान्ति का आभास कराती हैं।

22 जनवरी 25- कोमल धूप से आंख- मिचौली खेलते हुये उस नयनरम्य वातावरण में सखियों ने स्वयं को स्थित कर लिया। मौन में शब्द अधिक मुखर होते हैं। हम अपने ज्यादा ही निकट होते हैं। इस सुखद यात्रा की संयोजिका श्रीमती रूबी दास अरु की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने अपने प्रेमिल व्यवहार एवं कुशल प्रबंधन से सबके मन को रेशम से बाँधे रखा। पुष्पा पांडे ने हौजी खिलाने की जिम्मेदारी ली।अपनी मधुर वाणी से दिल जीत लिया। संतोष बुधराजा हर अवसर के अनुकूल प्रस्तुति देने में अत्यन्त कुशल हैं। उनका ‘रसगुल्ला लोकगीत और अभिनय’ छाया रहा दिलों पर। 

धृति बेडेकर ने ‘दमादम मस्त कलंदर’ गाकर रूना लैला की याद ताज़ा कर दी। हेमलता मिश्र का नृत्य लाजवाब रहा।पूनम मिश्रा ने काव्यात्मक प्रस्तुति के माध्यम से बुढ़ापे को दूर रखने का उपाय बताया। आध्यात्मिक परिसर में भजन न हो ऐसा कैसे हो सकता है। निर्मला पांडे के मधुर भजन ने मन मोह लिया। महाराष्ट्र की लोकप्रिय विधा ‘उखाणा’ में सारी सखियों ने सहभागिता दर्ज की। खाना न हो तो पिकनिक का स्वाद कहाँ।बस फिर क्या था -झुणका, भाकर ठेचा, भरीत, टमाटर मिर्ची की चटनी- देशी गंध देशी स्वाद। उबले बेर ने पाँच दशक पूर्व के पल लौटाए। चाय से दोपहर आबाद हुई।

13 सखियों के समूह ने इस सफर को यादगार बना दिया। क्यों न हम आपस में एक दूजे का धन्यवाद करें। इस अवसर पर सर्व श्रीमती रूबी दास, इन्दिरा किसलय, संतोष बुधराजा, देवयानी बैनर्जी, धृति बेडेकर, निर्मला पांडे, पूनम मिश्रा, माधुरी राऊलकर, गायत्रीजी, सुनीताजी, पुष्पा पांडे, हेमलता मिश्र मानवी एवं प्रभा मेहता उपस्थित थी।
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