EVM का काला जादू
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महाराष्ट्र चुनावों के बाद राजनीति के मैदान में जैसे ही हार का सायरन बजा, नेताजी ह.म. लुटे ने तुरंत प्रेस कॉन्फ्रेंस बुला ली। मंच पर आते ही उन्होंने ऐसा दुखी चेहरा बनाया जैसे उनकी जीत का जलेबी किसी ने कड़वी कर दी हो।
"देखिए, ये चुनाव हार नहीं है, ये लोकतंत्र की हार है।" उन्होंने तैश में कहा। "EVM में गड़बड़ी हुई है। ये मशीनें हमारा वोट खा गईं। भाजपा का वोट बढ़ा गई।"
पीछे से एक रिपोर्टर ने धीरे से पूछा, "नेताजी लुटे साहब, अगर EVM गड़बड़ी कर रही थी, तो आपके गढ़ वाले इलाके में तो आप ही जीते हैं?"
नेताजी लुटे मुस्कुराए, "देखिए, गड़बड़ी सिर्फ उन्हीं सीटों पर होती है जहां हम हारते हैं। जहां हम जीतते हैं, वहां मशीन ठीक काम करती है। ये मशीनें भी हमारे खिलाफ साजिश का हिस्सा हैं।"
तभी एक युवा तड़फदार पार्टी कार्यकर्ता ने कहा, "नेताजी, EVM के बजाए जरा वोटरों को समझाने पर व पार्टी कार्यकर्ताओं पर मेहनत करते तो शायद बात बन जाती। यहा तो पार्टी नेताओं ने ही अकेला छोड़ दिया।"
नेताजी ह.म. लुटे गुस्से में बोले, "आपको राजनीति का क्या पता? ये सब तकनीक का खेल है। हमें वोट चाहिए थे, लेकिन मशीनें विपक्ष की तरफ वोट छाप रही थीं।"
मंच के नीचे खड़े समर्थकों में कानाफूसी शुरू हो गई, "शायद अगली बार नेताजी को EVM की जगह मैन्युअल गिनती वाली जनसभा करनी चाहिए। कम से कम जनता के मूड का अंदाजा तो लग जाएगा।"
प्रेस कॉन्फ्रेंस खत्म हुई, नेताजी ह.म. लुटे मंच से उतरे और गाड़ी में बैठते ही बोले, "जल्दी चलो, कहीं ये रिपोर्टर लोग फिर से सवाल न पूछ लें। अगली बार EVM के खिलाफ एक मोर्चा निकालते हैं। जीत नहीं पाए, तो EVM पर दोष डालते रहेंगे। इससे बेहतर बहाना और क्या हो सकता है!"
युवा कार्यकर्ता अनशन पर बैठ पार्टी नेताओं के गैर जिम्मेदाराना रवैए को बताने का प्रयास कर रहा था तो दूसरी तरफ नेता आत्म चिंतन के बगैर चुनाव आयोग पर आरोप करने में व्यस्त है। चुनाव आयोग भी सभी को इससे पहले ही ईवीएम को झुटलाने का अवसर दे चुकी है। लेकिन अब होता क्या जब चिड़िया चुग गई खेत...!
वरिष्ठ पत्रकार