खिड़की के उस पार
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ज़मीं और आसमान के संगम,
उंचे वृक्ष,
आसमान पे
पाखियों की ऊंची उड़ान,
विधाता के अद्भुत रुप
मेरे अस्तित्व से
एक रूप हो जाते हैं ,
यह प्रेम, मोह, माया,
भूख, प्यास,
उंच, नीच,
द्वंद्व, विद्वेष
सब भूल जाता हूँ,
जब देखता हूँ मैं
मेरे खिड़की के उस पार।
एक अजीब शांति पसरती है
मन के कोने कोने में,
एक हो जाता हूँ
जूही की सुगंध की तरह
अदृश्य हवा में।
- डॉ. शिवनारायण आचार्य ‘शिव’
नागपुर, महाराष्ट्र