राणी की वाव
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अगर आप सौ रुपये का नोट देखें, तो नोट पर एक तस्वीर नजर आएगी, जिसमें 'रानी की वाव' लिखा है। हाल ही मुझे इस जगह जाने का मौका मिला।
आज से करीब हजार बरस पहले रानी उदयमति ने अपने दिवंगत पति राजा भूदेव (प्रथम) की याद में एक वाव या बावड़ी बनवाया था। राजा भूदेव चालुक्य वंश के राजा थे। यह वाव जल संचयन का एक सीढ़ीदार कुंड है। यह सात मंजिल गहरा है। इस वाव की रचना कोई मंदिर से मिलती है, फर्क यह है कि यह मंदिर उल्टा है, यानी इसका शिखर नीचे है और इसका आधार उपर है। यह केवल कुआं नहीं बल्कि यह एक सांस्कृतिक धरोहर है। यह गुजरात के पाटण शहर में स्थित है। पाटण शहर एक वैभवशाली शहर था। सन 1200 में कुतुबुद्दीन ऐबक और 1298 में अलाउद्दीन खिलजी ने इस पर आक्रमण कर उसे लुटा।
यह वाव 27 मीटर गहरा है, जो कोई सात मंजले इमारत सा है। इस वाव में कोई 500 बड़ी और करीब 5000 छोटी मूर्तीयां हैं। यहां की वास्तुकला, मूर्तीयां, कारीगरी और नक्काशी उस समय के गौरव को बयान करती है। हिंदु देवी देवता, यक्ष, अप्सरा और अवतारों को पत्थर पर इस तरह सजीवता से नकाशा गया है कि मानों वे अभी हलचल कर बोल उठेंगी। उन प्रतिमाओं में हमने गौतम बुद्ध की सौम्य मूरत भी देखी।
भगवान विष्णु के सभी अवतार दिखे जैसे राम, श्री कृष्ण, परशुराम, बुद्ध, वराह, वामन और घुड़सवारी करते कल्की अवतार। कुर्म, नृसिंह और मत्स्य अवतार की मूर्तीयां समय के साथ नष्ट हो गईं हैं। श्री विष्णु के अनंत शय्या के तीन मूर्तीयां हैं जो स्वर्ग लोक, भूलोक और पाताल लोक में विराजमान हैं। यह तीन लोक अलग अलग मंजिलों में हैं।
मुझे जिस मूरत ने बहुत आकर्षित किया वह है विष कन्या। विषकन्या जहरीले सर्प के अलावा बिच्छू से आमंडित है। शायद उन दिनों में विष कन्या का राजनिती में इस्तेमाल किया जाता होगा। अप्सराएं, सोलह श्रृंगार करती नृत्यांगनाएं , कमल पुष्प के आधार स्तंभ, किचक द्वारा छतों को सम्हालती मूर्तीयां और यक्ष की मूर्तीयां बहुत सजीव हैं।
एक और सजीव मूरत भगवान विष्णु की कल्की अवतार की है जो अश्व पर सवार हैं। यह मान्यता है कि अधर्म को मिटाने और धर्म की स्थापना करने श्री विष्णु का इस धरती पर बार बार अवतरण होता है।
यह वाव सरस्वती नदी के तट पर बनाया गया था। सरस्वती नदी में आए बाढ़ के कारण बनाने के करीब तीन सौ बरस बाद यह वाव पूरी तरह जमीन के नीचे दब गया था। और कई सदी यह वाव जमीन में रेत और मिट्टी से दफन रहा। बाद में किसान उस जगह खेती करने लगे। किसी को मालूम ही न था कि यहां कोई इतना विशाल विरासत छिपा है। पुरातत्व विभाग ने यहां 1958 साल में उत्खनन चालू किया। जैसे जैसे वे खोदते गए, एक वैभवशाली सभ्यता उजागर होती गई। जमीन के धरातल की मूर्तीयां काफी हद तक आद्रता के कारण खराब हो गई हैं। लेकिन जमीन के करीब दस फूट नीचे से जितनी भी मूर्तीयां हैं वे अब भी जस की तस हैं।
जब यह आविष्कार हुआ तब से पुरातत्व विभाग इसकी देख रेख कर रही है और अब यह एक महत्वपूर्ण यूनेस्को विश्व धरोहर है। यह गुजरात के पाटन शहर के पास स्थित है। गुजरात की प्रसिद्ध पाटन साड़ी के डिजाइन इसी बाव के दीवारों के शिल्पों से लिए गए हैं। करीबी हवाईअड्डा अहमदाबाद है जो 112 किलोमीटर दूर है। रोड से कोई ढाई घंटे में यहां पहुंच सकते हैं। रोड बहुत अच्छे हैं।
आप कभी गुजरात जाएं तो रानी का वाव देखना न भूलें।
- डॉ शिवनारायण आचार्य
नागपुर, महाराष्ट्र