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भारतीय संस्कृति में नववर्ष यानि आशा का नया संचरण : शंकर जाम्भुळकर


नागपुर। विदर्भ हिन्दी साहित्य सम्मेलन के उपक्रम अभिनंदन मंच के अंतर्गत 'भारतीय संस्कृति में नववर्ष का महत्व' विषय पर परिचर्चा ‌आयोजित‌ की गई। कार्यक्रम की अध्यक्षता एन.आई.टी  सेक्शन पूर्व अधिकारी शंकर जाम्भुलकर ने की। उन्होंने कहा कि, भारतीय संस्कृति में नववर्ष का बड़ा महत्व है, अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार हम जनवरी में नववर्ष मनाते हैं परंतु भारतीय संस्कृति तो हिंदू पंचांग के अनुसार गुड़ी पाड़वा को नववर्ष, अनेकों वर्षों से मनाती चली आ रही है। चैत्र माह की पहली तिथि को नवरात्रि का शुभारंभ हो जाता है और इस माह में ही हल्की ठंडी और हल्की गर्मी की वजह से मनमोहक वातावरण बन जाता है। जो सभी  जीव जंतुओं को भाता है और सजीवों में आशा का संचरण करता है। इस अद्भुत और मनभावन वातावरण को ही भारतीय संस्कृति में नववर्ष कहते हैं। 

अतिथियों का स्वागत विजय तिवारी ने किया। कार्यक्रम का संचालन डा.कृष्ण कुमार द्विवेदी ने किया। सर्वप्रथम लक्ष्मी नारायण केशकर ने नववर्ष के संदर्भ में अपने विचार रखे। विवेक चौरसिया ने नववर्ष को परिभाषित किया। विजय तिवारी ने नई योजनाएं नए समर्पण, नई निष्ठा और नई कर्मठता के साथ कार्य करने पर बल दिया। लक्ष्मीकांत कोठारी की योग जिज्ञासाओं को प्रमुख अतिथि ने तर्क पूर्ण उत्तर देकर शांत किया। दीपक पु.भावे, लक्ष्मीकांत कोठारी, गणेश सिंह ठाकुर, सम्बलकर बंसोड, सुभाष उपाध्याय, हेमंत पांडेय, हरविंदर गांधी, नवनीत श्रीवास्तव, पंकज गुप्ता की उपस्थिति रही।
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