हिन्दी महिला समिति का ‘रिश्ते प्रकृति का एक मूक उपहार’ पर परिचर्चा संपन्न
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नागपुर। हिन्दी महिला समिति द्वारा एक परिचर्चा आयोजित की गई। रिश्ते प्रकृति का एक मूक उपहार इस विषय पर समिति की सभी बहनों ने बढ चढ कर हिस्सा लिया। समिति की उपाध्यक्ष रेखा पांडेय ने समिति की अध्यक्ष रति चौबे की अध्यक्षता में इस परिचर्चा का संचालन किया। इस परिचर्चा में सर्वप्रथम रेखा पांडेय ने कहा कि प्रकृति हमें हमारे सभी खून के रिश्ते बिना कुछ बोले ही दे देती है। जब हमें कुछ भी नहीं समझता तब ही हमें माता पिता यह रिश्ता मिलता है इसी तरह हमें भाई बहन, दादा- दादी नाना- नानी यह रिश्ते मिल जाते हैं। ये सभी रिश्ते हमारे लिए प्रकृति का ही उपहार ही है। रेखा पांडेय,
गीतू के अनुसार प्रकृति हमें दिल खोलकर देती है और मूकता से ही देती है । खेतों में एक बीज का दाना हजार गुना बढ़ाकर देती है, मुफ्त की हवा और प्रकाश भी हमें मिलता है। गीतू शर्मा,
रति जी का कहना है रिश्ते मूक होते हैं, उन्हें पढ़ना हर कोई के बस में नहीं कोई विरला ही पढ़ सकता है। वह प्रकृति की देन.है प्रकृति मौनता में सब बयां कर.देती है बोलती नही ना लिखती.. महसूस करवाती है।
समझने वाला हो चाहिये, रति चौबे,
भगवती जी कहती हैं कि रिश्ते प्रकृति की देन है, जो हमारे भाग्य से कभी सुखद और कभी दुखद रिश्तों में भी ढल जाते हैं । हमारे सुख और दुख, गम या खुशी में वही सब लोग काम आते हैं, इसलिए इन सभी से मिलकर मुकाबला करना होता है। भगवती पंत,
ममता का कहना है कि प्रकृति दोनों हाथों लुटाती हुं। उसी अनमोल खजाने में से निकला एक मोती रिश्ता है। कुछ रिश्ते जन्म के साथ ही तय हो जाते हैं और कुछ विवाह के बाद मिलते हैं। ये रिश्ते विशाल वट वृक्ष का रूप लेकर इसकी छाया में सभी सुरक्षित महसूस करते हैं। ममता विश्वकर्मा,
अमिता जी का कहना है कि मानव का जन्म ही रिश्ते में बंध कर होता है।रिश्तों की वजह से ही जीवन में गति आती है, रिश्तों के उपहार से मनुष्य सामाजिक व्यवस्था को मजबूत बनाता है। अमिता शाह,
निशा जी बता रही है कि रिश्ते हमारे धरा पर आने से पहले ही प्रारंभ हो जाता है। प्रकृति और मनुष्य के बीच गहरा रिश्ता है, दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। प्रकृति हमारी बहुत बड़ी गुरु है। निशा चतुर्वेदी,
रश्मि के अनुसार प्रकृति सब की है,सबको समान रूप से प्यार करती है। प्रकृति रिश्तों का उपहार देकर भी बदले में कुछ भी पाने की लालसा नहीं करती। रश्मि मिश्रा,
अपराजिता जी का मानना है कि मां और प्रकृति एक रूप हैं, दोनों ही निस्वार्थ भाव से सन्तानों की मदद करती हैं। अपराजिता,
मंजू जी कहती हैं कि रिश्ते तभी तक टिकते हैं जब तक दिल से नहीं निभायें जायें । स्वार्थ वश बने रिश्ते ज्यादा समय तक नहीं टिकते।मंजू पंत,
मधुबाला जी कह रही हैं कि जिस तरह प्रकृति ने जीने के लिए श्वांस लेने के लिए हवा,पानी आदि दिया है उसी प्रकार से जिंदगी जीने के लिए रिश्ते भी दिये हैं। मधुबाला श्रीवास्तव,
गार्गी जी के मतानुसार रिश्ते दो प्रकार के होते हैं एक जो कि जन्मजात होते हैं, दूसरे रिश्ते स्वयं बनाते हैं। गार्गी जोशी,
हेमलता जी कविता के माध्यम से अपनी बात समझाना चाहते हैं। सृजन और ध्वसं के मनु प्रवाहों में अजेय सृष्टि अद्विता प्रकृति अविनाशी स्वयं-सिद्ध हो जाती, विध्वंस और पुनः निर्माण के सिद्धांत के साथ प्रकृति के न्याय के साथ सृष्टि के ममत्व के साथ। हेमलता मिश्र,
डा. कविता परिहार जी कह रही हैं कि उन्हे जीवन में 2 बार हमें रिश्ते मिलते हैं, एक पहले हमें जन्मजात ही रिश्ते मिलते है जैसे माता पिता भाई बहन, दादा दादी, नाना नानी, इसके अलावा शादी के बाद सास ससुर आदि रिश्ते हमें मिलते हैं। डा.कविता परिहार,
सुषमा जी अपने विचार कविता में बता रही हैं, आई थी ज़िंदगी, कल रात मेरे पास.. कह गई हौले से, कान में कुछ फुसफुसाकर.. उन रिश्तों को, संभाले रखना, जिनके बिना, गुज़ारा नहीं होता.. सुषमा अग्रवाल इन सभी के विचारों को सभी ने बहुत सराहा, अंत में आभार कार्यध्यक्ष चित्रा तुर ने किया।