हनुमान चालीसा जीवन जीने की कला सिखाती है : डॉ प्रभात पांडेय
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नागपुर/भोपाल। रामायण केंद्र द्वारा श्रीमद्विधेशवरी मंदिर अपूर्व एन्क्लेव अयोध्या बाए पास रोड भोपाल में रामायण संवाद श्रंखला के अंतर्गत मंगलवार दिनांक 5 नवंबर 2024 को हनुमान चालीसा में जीवन प्रबन्धन के सूत्र विषय पर संवाद का आयोजन किया गया जिसके मुख्य वक्ता आचार्य पं योगेन्द्र शास्त्री थे संवाद समारोह की अध्यक्षता विख्यात शिक्षाविद एवं मानस मर्मज्ञ डॉ प्रभात पांडेय ने की संवाद का संचालन पं कमलेश जोशी ने किया इस संवाद समारोह का आयोजन श्री राजीव रंजन खरे द्वारा किया गया इस अवसर पर आचार्य योगेन्द्र शास्त्री ने हनुमान चालीसा में जीवन प्रबन्धन के सूत्रों की व्याख्या की उन्होंने बताया हनुमान चालीसा की शुरुआत गुरु की महत्ता से होती है
श्रीगुरु चरन सरोज रज।
निज मनु मुकुरु सुधारि।।
अर्थात – अपने गुरु के चरणों की धूल से अपने मन के दर्पण को साफ करता हूं- गुरु का महत्व चालीसा की पहले दोहे की पहली लाइन में लिखा गया है। जीवन में गुरु नहीं है तो आपको कोई भी आगे नहीं बढ़ा सकता। गुरु ही आपको सही रास्ता दिखा सकते हैं। इसलिए तुलसीदास ने लिखा है कि गुरु के चरणों की धूल से मन के दर्पण को साफ करता हूं। आज के दौर में गुरु हमारा मेंटोर भी हो सकता है, बॉस भी। माता-पिता को पहला गुरु ही कहा गया है। समझने वाली बात ये है कि गुरु यानी अपने से बड़ों का सम्मान करना जरूरी है। अगर तरक्की की राह पर आगे बढ़ना है तो विनम्रता के साथ बड़ों का सम्मान करें। इसके साथ उन्होंने हनुमान चालीसा में संकल्प और विश्वास सेवा और समर्पण धैर्य और साहस ज्ञान और विवेक की व्याख्या हनुमान चालीसा की चोपाईयों के माध्यम से की।
संवाद समारोह की अध्यक्षता करते हुए मानस मर्मज्ञ डॉ प्रभात पांडेय ने बताया हनुमान चालीसा जीवन जीने की कला सिखाती है हनुमान चालीसा में कुल चालीस चौपाईयां है और ऐ सभी उसी क्रम में लिखी गई है जो एक मनुष्य की जिंदगी का क्रम होता है गोस्वामी तुलसीदास ने हनुमान चालीसा की रचना श्रीरामचरितमानस के पूर्व की थी क्योंकि वो श्री हनुमान को गुरु बनाकर भगवान श्री राम को पाना चाहते थे डॉ पांडेय ने हनुमान चालीसा की चोपाईयों की व्याख्या करते हुए बताया।
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा।।
अर्थात – हनुमान जी के शरीर का रंग सोने की तरह चमकीला है, सुवेष यानी अच्छे वस्त्र पहने हैं, कानों में कुंडल हैं और बाल संवरे हुए है। आज के दौर में व्यक्ति की तरक्की इस बात पर भी निर्भर करती है कि वह रहता और दिखता कैसे है। फर्स्ट इंप्रेशन अच्छा होना चाहिए। अगर कोई बहुत गुणवान भी हैं लेकिन अच्छे से नहीं रहते हैं तो ये बात व्यक्ति के करियर को प्रभावित कर सकती है। इसलिए, रहन-सहन और पहनावा हमेशा अच्छा रखें।
विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर।।
अर्थात – हनुमान जी विद्यावान हैं, गुणों की खान हैं, चतुर भी हैं। राम के काम को करने के लिए सदैव आतुर रहते हैं। आज के दौर में एक अच्छी डिग्री होना बहुत जरूरी है। लेकिन चालीसा कहती है सिर्फ डिग्री होने से व्यक्ति सफल नहीं होंगे। विद्या हासिल करने के साथ उसे अपने गुणों को भी बढ़ाना पड़ेगा, बुद्धि में चतुराई भी लानी होगी।
प्रभु चरित सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया।।
अर्थात – हनुमान जी राम चरित यानी राम की कथा सुनने में रसिक है, राम, लक्ष्मण और सीता तीनों ही हनुमान जी के मन में वास करते हैं। जो व्यक्ति की प्रायोरिटी है, जो काम है, उसे लेकर सिर्फ बोलने में नहीं, सुनने में भी व्यक्ति को रस आना चाहिए। अच्छा श्रोता होना बहुत जरूरी है। अगर किसी के पास सुनने की कला नहीं है तो वह कभी भी अच्छे लीडर नहीं बन सकते।
सूक्ष्म रुप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रुप धरि लंक जरावा।।
अर्थात – हनुमान जी ने अशोक वाटिका में सीता को अपने छोटे रुप में दर्शन दिए, और लंका जलाते समय हनुमान जी ने बड़ा स्वरुप धारण किया। व्यक्ति को कब, कहां, किस परिस्थिति में खुद का व्यवहार कैसा रखना है, ये कला हनुमानजी से सीखी जा सकती है। सीता जी से जब अशोक वाटिका में मिले तो उनके सामने छोटे वानर के आकार में मिले, वहीं जब लंका जलाई तो पर्वताकार रुप धर लिया। अक्सर लोग ये ही तय नहीं कर पाते हैं कि उन्हें कब किसके सामने कैसा दिखना है।
तुम्हरो मंत्र बिभीसन माना।
लंकेश्वर भए सब जग जाना।।
अर्थात – विभीषण ने हनुमान जी की सलाह मानी, और वे लंका के राजा बने ये सारी दुनिया जानती है। हनुमान जी सीता की खोज में लंका गए तो वहां विभीषण से मिले, विभीषण को राम भक्त के रुप में देख कर उन्हें राम से मिलने की सलाह दे दी। विभीषण ने भी उस सलाह को माना और रावण के मरने के बाद वे राम द्वारा लंका के राजा बनाए गए। किसको, कहां, क्या सलाह देनी चाहिए, इसकी समझ बहुत आवश्यक है। सही समय पर सही इंसान को दी गई सलाह सिर्फ उसका ही फायदा नहीं करती, आपको भी कहीं ना कहीं फायदा पहुंचाती है।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही।
जलधि लांघि गए अचरज नाहीं।।
अर्थात – हनुमान जी ने राम नाम की अंगुठी को अपने मुख में रखकर समुद्र को लांघ लिया, इसमें कोई अचरज नहीं है। अगर किसी व्यक्ति में खुद पर और अपने परमात्मा पर पूरा भरोसा है तो वह कोई भी मुश्किल से मुश्किल समय को आसानी से पूरा कर सकते हैं। आज के युवाओं में एक कमी ये भी है कि उनका भरोसा बहुत टूट जाता है। आत्मविश्वास की कमी भी बहुत है। प्रतिस्पर्धा के दौर में आत्मविश्वास की कमी होना खतरनाक है, इसलिए खुद पर पूरा भरोसा रखें।
इस प्रकार कोई भी व्यक्ति हनुमान चालीसा का अनुसरण कर सफलता पूर्वक जीवन प्रबन्धन कर सकता है।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए पं कमलेश जोशी ने बताया रामायण केंद्र की संवाद श्रंखला का उद्देश्य परिवार में संस्कार और संस्कृति की स्थापना करना है उन्होंने हनुमान चालीसा में उल्लेखित जीवन सूत्र को आत्मसात करते हुए इंसान अपने जीवन को और अधिक सफल और संतोष जनक बना सकते हैं अंत में आभार श्री राजीव रंजन खरे ने व्यक्त किया।