महाराष्ट्र चुनाव में समन्वय बनाने में जुटी आरएसएस और भाजपा
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आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) और भाजपा (भारतीय जनता पार्टी) के बीच समन्वय की कमजोरी हाल के वर्षों में राजनीतिक और संगठनात्मक दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गई है। यह कमी विशेष रूप से संगठन मंत्रियों के बीच समन्वय के अभाव के रूप में सामने आई है। जिसका असर हमने लोकसभा चुनाव 2024 में देख चुके है। भाजपा की सीटे बड़े पैमाने पर कम हुई। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को भी नुकसान की समीक्षा में इसका संज्ञान हुआ और भाजपा ने अपनी भूमिका को आर एस एस के प्रति समन्वय की भूमिका पर काम किया.. जिसका परिणाम हरियाणा चुनाव में देखने मिला। और अब महाराष्ट्र चुनाव में भी भाजपा - आर एस एस का समन्वय दिखाई दे रहा है।
भाजपा अध्यक्ष के चुनाव में भी अब शीघ्र ही चर्चा शुरू होगी। जिसमें भी आर एस एस की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। क्योंकि भाजपा के संगठन मंत्री के रूप में आर एस एस के पुर्णकालीन प्रचारकों को भेजा जाता है। जो पार्टी नेताओं में समन्वय की भूमिका निभाते है।
राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के साथ ही आरएसएस और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के बीच संगठन में व्यापक बदलाव पर सहमति बन गई है। फिलहाल विभिन्न राज्यों में तैनात सात संगठन मंत्रियों की पहचान की गई है, जिन्हें नए राज्यों का दायित्व सौंपा जाएगा। वहीं, बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्यों में एक संगठन मंत्री के मातहत उप संगठन मंत्री भी भेजे जा सकते है, ताकि कमजोर इलाकों में संगठन को मजबूत करने के लिए बेहतर समन्वय के साथ काम किया जा सके।
ध्यान देने की बात भाजपा के संगठन मंत्री आरएसएस के पूर्णकालिक प्रचारक होते हैं। आरएसएस की ओर से उन्हें भाजपा में काम करने के लिए भेजा जाता है। संगठन मंत्री को आरएसएस के स्वयंसेवकों और भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच सीधा संवाद स्थापित करने वाले अहम कड़ी के रूप में देखा जाता है। पिछले एक दशक में भाजपा के तेज गति से फैलाव और बाहरी नेताओं के शामिल होने से स्वयंसेवकों के साथ भाजपा के साथ संवाद कमजोर पड़ने की आशंका जताई जाती रही है। आरएसएस और भाजपा दोनों अब इस कमजोरी को दूर करने की कोशिश में जुट गए हैं। इसके लिए आरएसएस नए संगठन मंत्रियों को भाजपा में भेजने को भी सहमत हो गया है।
आरएसएस और भाजपा के बीच एक ऐतिहासिक संबंध है, जिसमें आरएसएस की विचारधारा भाजपा के राजनीतिक एजेंडे का मार्गदर्शन करती रही है। आरएसएस से निकले कई नेताओं ने भाजपा में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई हैं, जिससे भाजपा का चरित्र हिन्दुत्ववादी एजेंडे की दिशा में प्रभावित हुआ है। हालांकि, दोनों संगठनों के उद्देश्यों में हमेशा संतुलन बनाकर काम करने का प्रयास किया गया है, लेकिन राजनीतिक प्राथमिकताओं और संगठनात्मक ढांचे में भिन्नता के कारण अब समन्वय में कमी देखी जा रही थी।
लेकिन पिछले लोकसभा में भाजपा के प्रदर्शन से आरएसएस में भी नाराजी दिखीं थी। उसके बाद ही आरएसएस ने भी भाजपा पर फिर से समन्वय बनाने व संगठनात्मक बदलाव की प्रक्रिया को तेज करने का दबाव बनाया। जिसकी शुरुआत हरियाणा चुनाव से हुई। महाराष्ट्र चुनाव में भी समन्वय देखने मिल रहा है। आरएसएस के दिशानिर्देश पर ही संगठनात्मक कार्य शुरू है। भाजपा नेता भी विकास के साथ हिंदुत्व के एजेंडे पर खुलकर कार्य कर रहे है। जिसमें योगी आदित्यनाथ खुलकर बयान दे रहे है। भाषा, जाति, क्षेत्र में बटोगे तो कटोगे, एक रहोगे तो नेक रहोगे, जैसे नारों से मैदान में उतरे है। विपक्ष पर भी इसका प्रभाव देखा जा रहा है। पिछले लोकसभा चुनाव में जो नेरेटिव विपक्ष ने चलाए उसका प्रभाव भी योगी के नारे के सामने आपकी बार कम लग रहे है।
और यही कारण है की आरएसएस और भाजपा फिर सब समन्वय की राह पर चल पड़े है। वैसे भी आरएसएस और भाजपा के बीच समन्वय की कमजोरी संगठन मंत्रियों में समन्वय के अभाव से गहराई से जुड़ी हुई है। इसे हल करना दोनों संगठनों के लिए आवश्यक है, क्योंकि समन्वय की कमी न केवल उनके आंतरिक ढांचे को प्रभावित करती है, बल्कि उनके चुनावी और सामाजिक प्रभाव को भी कम कर सकती है।
समन्वय की कमी के कारण
संगठनात्मक विस्तार और विविधता : आरएसएस और भाजपा का संगठनात्मक ढांचा अब पहले से कहीं अधिक व्यापक और विविधतापूर्ण हो गया है। भाजपा का राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विस्तार हुआ है, जिसके कारण संगठन मंत्रियों के लिए समन्वय बनाए रखना चुनौतीपूर्ण हो गया है।
वैचारिक प्राथमिकताओं में असमानता : आरएसएस का उद्देश्य मूलतः सांस्कृतिक पुनरुत्थान और हिन्दू समाज की एकता पर केंद्रित है, जबकि भाजपा का लक्ष्य एक राजनीतिक पार्टी के रूप में चुनावों में जीत हासिल करना है। इस भिन्नता के कारण, कई बार संगठन मंत्रियों के बीच वैचारिक मतभेद उभरकर सामने आते हैं।
समन्वय की कमी के प्रभाव : आरएसएस और भाजपा के बीच समन्वय की कमी के कारण कई नीतिगत मुद्दों पर असंगति दिखाई देती है। इसका उदाहरण हालिया कृषि कानूनों के दौरान देखने को मिला। पिछले लोकसभा चुनाव में यह प्रखरता से देखने मिला।
चुनावी परिणामों पर प्रभाव : समन्वय की कमी का सीधा असर भाजपा के चुनावी परिणामों पर पड़ता है। चुनावों में संगठन का मजबूत नेटवर्क एक महत्वपूर्ण कारक होता है, और यदि इसमें समन्वय की कमी है, तो यह भाजपा के पक्ष में नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
नागपुर, महाराष्ट्र