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हमारी सांस्कृतिक विरासत की प्रतीक हैं भाषाएं : प्रो. सुधीर प्रताप सिंह


नागपुर। भाषा केवल अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं है वरन यह हमारी सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए भाषा की भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। बिना भाषा के ज्ञान का कोई भी आयाम पूर्ण नहीं हो सकता। यह बात भारतीय भाषा केन्द्र, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के प्रोफेसर एवं अध्यक्ष डॉ. सुधीर प्रताप सिंह ने कही। वे हिन्दी विभाग, राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित ‘विकसित भारत@2047: भारतीय भाषाओं की भूमिका’ विषय पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि भारत की सभी बोली-भाषाओं की जातीय चेतना के मूल में भारतीयता का भाव विद्यमान है।  


प्रो. सिंह ने कहा कि स्वतंत्रता के पश्चात भाषा के आधार पर प्रान्तों की रचना की गई, जिससे भाषाओं को राजनीतिक मुद्दा बना दिया गया। किन्तु भारतीय भाषाओं के मूल में राष्ट्रीय एकात्मता है। इसीलिए तमाम राजनीतिक स्वार्थों के बावजूद राष्ट्रीय एकता कायम है। भाषाओं के महत्व को स्वीकार करते हुए ही सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भारतीय भाषाओं में शिक्षा के लिए प्रावधान किए हैं। 

प्रास्ताविक रखते हुए हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. मनोज पाण्डेय ने कहा कि आज अनेक भारतीय भाषाएं लुप्त होती जा रही हैं। भाषा के लुप्त होने का मतलब है ज्ञान, अनुभव और संवेदना का लोप होना। भारतीय भाषाओं के संरक्षण और उन्नयन से ही भारतीयता के भाव को पोषित किया जा सकता है। भाषाएं हमारी अस्मिता की परिचायक हैं, लेकिन हमारी सीमा नहीं हैं। राष्ट्रीय एकात्मता भारतीय भाषाओं की ज़रुरी भूमिका है। 

धन्यवाद ज्ञापित करते हुए हिन्दी विभाग के सहयोगी प्राध्यापक डॉ. संतोष गिरहे ने कहा कि भारतीय भाषाओं के संरक्षण और संवर्धन के लिए मातृभाषा में शिक्षा पहली आवश्यकता है । कार्यक्रम का संचालन डॉ. लखेश्वर चंद्रवंशी ने किया। इस अवसर पर डॉ. सुमित सिंह, डॉ. एकादशी जैतवार, डॉ. कुंजन लिल्हारे, प्रा. जागृति सिंह, प्रा. दामोदर द्विवेदी, प्रा. विनय उपाध्याय, ज्ञानेश्वर भेलकर, आकांक्षा बांगर सहित अनेक शोधार्थी व विद्यार्थी उपस्थित थे। 
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