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कैसे हो तुम?




नासाज़ तबियत 
साज़ हो गई,  
जब पूछा तुमने,  
कैसे हो तुम!

वीरान थी 
इस बाग की गलियां,
फूल महक उठे, 
जब पूछा तुमने,  
कैसे हो तुम?

राह चले 
अकेले ही थे मगर, 
कारवां बन गया,  
जब पूछा तुमने, 
कैसे हो तुम? 

न गुजरेंगे 
इस राह फिर कभी 
न आएंगे 
इस महफिल में दुबारा, 
साथ हो लिए

बंधु मेरे, 
शुक़राना प्रिये, 
दिल बाग-बाग हुआ, 
जब पूछा तुमने
कैसे हो तुम? 

- डॉ. शिवनारायण आचार्य ‘शिव’
   नागपुर, महाराष्ट्र
काव्य 4592530638399084746
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