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हिन्दी महिला समिति ने ‘पुत्र और पुत्री के संस्कारों में भिन्नता आवश्यक’ विषय पर की परिचर्चा


नागपुर। प्रतिष्ठित संस्था हिन्दी महिला समिति के तत्वावधान में एक बेहद संवेदनशील विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया गया जिसका विषय था 'पुत्र और पुत्री के संस्कारों में भिन्नता आवश्यक’। कार्यक्रम की अध्यक्षता स्वयं समिति की अध्यक्षा श्रीमती रति चौबे जी ने किया। सचिव रश्मि मिश्रा के संयोजन व संचालन में  कार्यक्रम सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। 

उपर्युक्त परिचर्चा में सखियों ने अपने निम्नवत् विचार रखे - 

- गीतू शर्मा कहती हैं कि वैसे तो माता पिता के लिए बेटा-बेटी एक समान ही होते है  संस्कारों की जरूरत और अहमियत भी दोनो के लिए समान रूप से होती है परंतु बात यदि संस्कार देने की करी जाए तो इसमें भिन्नता वाजिब है, बेटी किसी के घर की बहु बनेगी और बेटा किसी के घर की लक्ष्मी अपने घर लायेगा, दोनों में से किसी एक में भी नैतिक, मौलिक, सामाजिक, पारिवारिक आदि संस्कारों की कमी हुई तो भावी जीवन में इसके दुष्परिणाम बेटा बेटी दोनों को ही भोगने होंगे और साथ ही माता पिता को भी। 

- अमिता शाह के अनुसार पुत्र व पुत्री के पालन में संस्कारों की भिन्नता अपने आप हो जाती है। पुत्री के प्रति नरम रवैया होता है। एक अंदरूनी भावना ये भी होती है कि कितने दिन रहेगी हमारे पास ! ये ब्याह कर पराए घर चली जाएगी तो जाने कैसा माहौल मिले। ये असुरक्षा अंजाने ही अधिक लगाव पैदा करती है। जब तक हमारे पास है इसे कोई कमी न हो। यही भावना होती है। इसके विपरीत बेटों के प्रति पिता सख्त रवैया अपनाते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि घर से बाहर की दुनिया सख्त है, बेदर्द है। उसका सामना करने के लिए मजबूत व्यक्तित्व का होना जरूरी है। 

- भगवती पंत के विचार कुछ इस प्रकार रहे कि प्रकृति ने मनुष्य की संरचना नारी व पुरुष दो वर्गों में की है। जहाँ पुरूष  को कठोर और शारीरिक  रूप से बल शाली माना जाता है वहाँ नारी में  कोमलता के साथ ही मानसिक बल अधिक पाया जाता है। जब घर में पुत्र व पुत्रियां हों तो माता पिता का यह प्रमुख कर्तव्य है कि वे दोनों को ही समान प्यार व दुलार से  रखें। परंतु नारी में दैवीय गुण होता है जबकि पुरुष में पौरुष गुण की प्रधानता होती है। 

कहा जाता है कि जब किसी पुरुष में  नारी के समान गुण आजाते हैं तो वह देवत्व की कोटि में जाता है; जबकि किसी नारी में पुरुष के समान गुण जाते तो वह आसुरी प्रवृत्ति की नारी मानी जाती है। जब ईश्वर ने ही इन्हें विपरीत लिंग व स्वभाव दिया है तो उसी के अनुसार उन्हें  संस्कार भी मिलने चाहिये। मेरे विचारों  में तो  संतान लड़का हो या लड़की दोनों पर ही प्यार समान रूप से लुटाया जाना चाहिए पर उनके भावी जीवन की सार्थकता के लिये  दोनों को ही  उनकी प्रकृति के अनुसार भी विशेष संस्कार देने आवश्यक है। 

- सुषमा अग्रवाल ने कहा कि ईश्वर ने जब सृष्टि की रचना की तो उन्होंने समस्त जीवित प्रजातियों में यहां तक कि वनस्पतियों में भी नर व मादा की निर्मिति की है। दोनों में मूलभूत रचनात्मक भिन्नता भी रखी है। दोनों में अलग-अलग हार्मोंस का निर्माण और स्त्राव होता है। तद्नुसार दोनों के स्वभाव व क्रिया-कलापों का भिन्न-भिन्न निर्धारण होता है।जिस दिन ये मूलभूत भिन्नता समाप्त हो गई समझिए सृष्टि पुनः रसातल में चली जाएगी! एक सीधा सा फंडा है कि जब ईश्वर ने उनमें भिन्नता रखी है तो हम क्यों तथाकथित समानता का ढोल लेकर पीट रहे हैं। बस इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो पुत्र और पुत्री में भिन्नता तो होती ही है और एक हद तक उसे मेंटेन भी रखना चाहिए।

- रश्मि मिश्रा के शब्दों में पुत्र व पुत्री के संस्कारों में भिन्नता अत्यंत आवश्यक है क्योंकि पुत्र परिवार का भावी मुखिया होता है उसे आर्थिक प्रबंधन भी करना होता है जिसके लिए उसे कठोरतापूर्वक संस्कारित करना आवश्यक है वहीं दूसरी ओर पुत्री विवाहोपरांत ससुराल जाएगी यह सोचकर कोमल रहना चाहिए परन्तु उसे भी परिवार की जिम्मेदारी उठानी होती है तो उसे भी कुछ कठोरतापूर्वक नियम-पालन के संस्कार देना आवश्यक है। आजकल विवाह-विच्छेद इसी लिए बढ़ गया है क्योंकि शायद हम पुत्रियों को ससुराल में रहने वाले संस्कार न देकर आत्मनिर्भर होने पर ज़्यादा जोर दे रहे हैं। जो कि सरासर गलत है। इसे बदलना होगा।

अंत में 
- अध्यक्षा रति चौबे ने विषय पर प्रकाश डालते हुए बताया कि पुत्र के लिए : पुत्र को अक्सर परिवार की आर्थिक जिम्मेदारी संभालने के लिए तैयार किया जाता है।सामाजिक जिम्मेदारी: पुत्र को समाज में परिवार का प्रतिनिधित्व करने के लिए तैयार किया जाता है।नेतृत्व क्षमता: पुत्र को नेतृत्व क्षमता विकसित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।

पुत्री के लिए घरेलू जिम्मेदारी : पुत्री को अक्सर घरेलू जिम्मेदारी संभालने के लिए तैयार किया जाता है। मातृत्व की तैयारी: पुत्री को मातृत्व की जिम्मेदारी के लिए तैयार किया जाता है। संवेदनशीलता: पुत्री को संवेदनशीलता और सहानुभूति विकसित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। लेकिन, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ये भिन्नताएं पुराने समय की हैं और आज के समय में इन्हें बदलने की जरूरत है। पुत्र और पुत्री दोनों को समान अवसर और संस्कार मिलने चाहिए। दोनों को समान शिक्षा मिलनी चाहिए। 

दोनों को आर्थिक स्वतंत्रता के लिए तैयार किया जाना चाहिए। दोनों को नेतृत्व क्षमता विकसित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ।दोनों को सामाजिक जिम्मेदारी के लिए तैयार किया जाना चाहिए।इस तरह, हम पुत्र और पुत्री दोनों को समान अवसर और संस्कार प्रदान कर सकते हैं और उन्हें अपने जीवन में सफल होने के लिए तैयार कर सकते हैं। आभार उपाध्यक्षा श्रीमती रेखा पाण्डेय ने मानते हुए कार्यक्रम का समापन किया
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