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चेन्नई कन्वेंशन में IRRO और AGI का स्वर्ण जयंती संयुक्त अधिवेशन संपन्न


नागपुर/चेन्नई। ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के स्वर्ण जयंती वर्ष के 47 वें अधिवेशन में इंडियन रेपो ग्राफिक राइटरस ऑर्गेनाइजेशन के संयुक्त तत्वाधान में चेन्नई में देश के 100 से अधिक दो दिन  वरिष्ठ साहित्यकार इकट्ठे हुए। उद्घाटन 19 अक्टूबर 2024 को सुबह 10:00 बजे पदम श्री डॉ श्याम सिंह शशि की अध्यक्षता में संपन्न हुआ , उन्होंने रोमन आदिवासियों की कार्य का उल्लेख करते हुए सभा के साहित्यकारों का उपस्थित पर आनंद व्यक्त किया और कहा संस्था के प्रतिनिधित्व के रूप में आपकी वजह से  संस्था दिन पर दिन प्रगति पथ पर है । 50 साल में 47 वा अधिवेशन पूर्ण करना ही संस्था की गौरव गाथा कहता है। इस अवसर पर चेन्नई के शिक्षाविद डॉ. C V चंद्रशेखरन ने मुख्य अतिथि के रूप में बधाई देते हुए हिंदी में कहा कादंबरी की संपादक महर्षि राजेंद्र अवस्थी जी की यह सोच आज वटवृक्ष जैसे बढ़कर विभिन्न भाषा भाषिक साहित्यकारों को सम्मिलित कर संपूर्ण भारत का प्रतिनिधित्व  करती है । उन्होंने आगे तमिल भाषा का 2000 साल के विकास को निरूपित करते हुए कहा कि आखिर बट ऑफ इंडिया अनुवादों को उत्साहित करें क्योंकि भाषा संस्कारों को स्थापित करती है तमिल के साहित्यकारों का साहित्य आज भी उपलब्ध है। 


विशिष्ट अतिथि तमिल भाषा के प्रख्यात विद्वान वि मालन नारायण ने अनुवाद की विषय को व्याख्यित करते हुए कहा की अनुवादक को दोनों भाषाओं के व्याकरण और शब्दों का वृहत ज्ञान होना चाहिए अन्यथा लेखक की लेखनी और अनुवाद में फर्क हो जाता है और कभी-कभी तो विवाद भी खड़ा हो जाता है। उन्होंने आगे महात्मा गांधी के शांति सत्याग्रह को टॉलेस्टॉय की थ्योरी से भी आगे रखा और कहा लिखा हुआ कभी खत्म नहीं होता बल्कि वह संस्कृति की प्रगति को और बदलाव को दिखाता है। इसके साथ ही संस्था के राष्ट्रीय कन्वीनर अजय अवस्थी ने कहा कि वह सभी साहित्यकारों की प्रकाशित कृतियां और अनुवाद को प्रगति देने हेतु देश की 114 यूनिवर्सिटी में लगाने का मदद करेंगे। उन्होंने आगे कहा लेखकों को बदलते सांस्कृतिक परिवेश और प्रकृति के साथ एलाइनमेंट करना चाहिए। 
कार्यक्रम की शुरुआत में  संस्था के महासचिव और IRRO के उपाध्यक्ष डॉ शिव शंकर अवस्थी ने दोनों संस्थाओं की गतिविधियों और कार्यक्रमों की रूपरेखा  प्रस्तुत की और संचालन किया। 


मंचासीन सभी विद्वानों का संस्था के अध्यक्ष डॉ. श्याम सिंह शशि द्वारा अंग वस्त्र और स्मृति चिन्ह प्रदान कर किया गया। इस अवसर पर मंच से डॉ. शिव शंकर अवस्थी द्वारा संस्था की पत्रिका इंडियन ऑथर्स  जर्नल और डॉ. शिव शंकर अवस्थी द्वारा लिखित मीडिया और भाषा, राधेश्याम बंधु का नवगीत का मानवतावाद, लता तेजेश्वर रेणुका का  जिजीविशा, परसराम डेहरिया का नीलम का पारस ,आचार्य कृष्णकांत चतुर्वेदी का भारतीय दर्शन की चिंतन धारा, प्रभा मेहता का वैष्णव जन तो,  जमीर अंसारी का सेतु, सहदेव कोहले का मशाल, डॉ . राजलक्ष्मी कृष्णन का उत्कृष्ट तमिल साहित्य और संस्कृति, प्रदीप गौतम सुमन का राष्ट्रीय आगम सोचे का अक्टूबर अंक, जय बहादुर सिंह राणा का सरहद की आवाज , अशोक कुमार जैन का हिंदी बोलचाल बोधिनी, संपादक किरण कोकर का गुमान तक राष्ट्रभाषा विद्यापीठ पत्रिका, नरेंद्र सिंह परिहार दीवान मेरा अंक का लोकार्पण हुआ।


दो दिवसीय कार्यक्रम चेन्नई के प्रतिष्ठि महाविद्यालय श्री शंकरलाल सुंदरबाई शसुन् जैन महिला महाविद्यालय में आयोजित हुआ । कॉलेज की हिंदी विभागअध्यक्ष डॉ. सरोज सिंह ने अंत में आभार प्रदर्शित करते हुए सभी साहित्यकारों का स्वागत कर 2005 से स्थापित कॉलेज द्वारा की गई गतिविधियों का मूल्यांकन प्रस्तुत करते हुए सभी विद्वानों का और विशेष कर ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और मंचपर उपस्थित नरेंद्र सिंह परिहार और चेन्नई के कन्वीनर अशोक जैन का धन्यवाद ज्ञापित किया और शेर कहा - कभी यह राह जिंदगी की इतनी आसान नहीं होती, गर न होता यह कारवां तो हमारी शान नहीं होती। 


संगोष्ठी - 

पुस्तकों ने क्रांति पैदा की - 
संगोष्ठी में IRRO संस्था की गतिविधियों और लेखक, प्रकाशक के साथ उनके अधिकारों पर डॉ. अहिल्या मिश्रा की अध्यक्षता करते हुए कहा लेखक श्रम करता है श्रम का मूल्य होता है वह उसे मिलना ही चाहिए। आज लेखक की मर्यादा खतरे में है।  लेखकों के अधिकारों के लिए संस्था प्रयत्नशील है।
वक्त के रूप में डॉक्टर अशोक पांडया ने कहा आज लेखक को कम आंका जाता है स्वतंत्र लेखन ही खत्म हो रहा है लेखकों को जीने के लिए रॉयल्टी की जरूरत तो है ही। संस्था के उपाध्यक्ष डॉ शिव शंकर अवस्थी ने 1455 में लिखी पहली पुस्तक का जिक्र किया और कहा पुस्तकों ने क्रांति लाडी के उपरांत प्रिंटिंग और 1990 में आई फोटोग्राफिक मशीन में तो माहौल ही बदल दिया लेखक और प्रकाशित को इकट्ठा किया तो विवाद भी खड़े हुए इनको सुलझाने के लिए संस्था सामने आई । उन्होंने आगे कहा लेखक के मूल लेखन को टोडा मरोड़ा नहीं जा सकता आज प्रकाशक नाम बदलकर जो उसके छाप रहे हैं उन्हें चैलेंज कर सकते हैं। उन्होंने कहा सभ्यता सुरक्षित रखती है पहले भी उसके पीछे लेखक का आगे भी उसके साथ लेकर ही होगा परंतु लेखन और अनुवाद के साथ न्याय होना चाहिए इसलिए अधिकारों का ज्ञान देने के लिए संस्था है। 
कार्यक्रम का सफल संचालन डॉ. मुकेश अग्रवाल और आभार डॉ. श्याम सिंह शशि ने माना।


बहुभाषिकता और राष्ट्रीय एकता अनुवाद पर निर्भर है - 

संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए वर्गीश ने कहा मल्टी लैंग्वेज भारतीय जनता के खिलाफ नहीं हो सकती नागालैंड में 16 भाषाओं का प्रचलन है हर पर्वत अपनी एक अलग भाषा रखता है हमें किसी भी भाषा को सर पास नहीं करना चाहिए। 
प्रथम वक्ता के रूप में लता तेजेश्वर रेणुका ने कहा भाषा संवाद का माध्यम है। ध्वनि और स्वर के मिलन से जो तरंग उत्पन्न होती है यही भाषा है और जो अक्षर के माध्यम से व्यक्त होती है। भाषा सीखना भी कला है। रामा देवी ने कहा भारतीय संस्कृति में विविधता है व्यक्ति को बहुभाषी होना चाहिए इससे संस्कृति को बढ़ावा मिलेगा। सूबेदार मेजर सलीक के एस ने बाई लैंग्वेज , ट्राई लैंग्वेज , मल्टी लैंग्वेज का अर्थ समझाते हुए बताया कैसे भाषा देश के विकास और यूनिटी के लिए महत्वपूर्ण है। 
के जी प्रभाकरण ने कहां बहु भाषिकता विविधता को साकार करती है वैदिक कालीन साहित्य ब्रह्म चैतन्य पर आधारित था अब समग्र चेतना और पर्यावरण केंद्रित साहित्य को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।किसी भी भाषा को श्रेष्ठ बताना यानी दूसरी भाषा को नीचा दिखाना ही है। चित्रा चिंचघरे ने कहा किसी भी देश की भाषा उसे देश की संस्कृति को समृद्ध करती है बहु भाषा से राष्ट्र समृद्ध हुआ है। डॉ ऊषा रानी राव ने अपनी सटीक विवरण के साथ संगोष्ठी का कुशल संरक्षण किया और आभार भी माना।


हिंदी साहित्य में भक्ति का योगदान - 

संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए डॉ. सलमा जमाल ने संगोष्ठी को उत्कृष्ट निरूपित करते हुए कहा भाषा के अनुवाद से भक्ति का भी अपना प्रभाव है। डॉ लक्ष्मी कृष्णन ने कहा भारतीय संस्कृति की सुंदरता है । नेहा भंडार कर ने अपने भक्ति कॉल और अनुवाद के मध्य क़ौमी एकता का महत्व रखा । डॉ सुजाता दास ने पुलिस विभाग में एक मामले के माध्यम से भारत के त्योहारों की रोचकता को प्रस्तुत किया वहीं सुबह मेहता में हिंदी साहित्य में राम कथा के महत्व को प्रतिपादित किया कार्यक्रम पशु संचालन अपनी संक्षिप्त और महत्वपूर्ण टिप्पणियों के साथ डॉ किरण पोपकर ने किया और आभार अशोक जैन ने माना।


भारतीय भाषाओं के माध्यम से संतों के योगदान और पत्रिका का महत्व - 

इसान गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए डॉक्टर चंद्र चतुर्वेदी ने कहा दक्षिण के संतों पर बहुत कम हुआ है और भारतीय संहिताओं का विकास दक्षिण भारत से ही हुआ है उन्होंने प्रज्ञा के विभिन्न तत्वों को प्रस्तुत किया। संगोष्ठी में प्रदीप गौतम ने ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के साथ गुजरे व्यक्तिगत अनुभवो के माध्यम से संस्था की गौरव गाथा प्रस्तुत की। जयशंकर बाबू ने दक्षिण में 1906 से प्रकाशित साप्ताहिक हिंदी पत्रिका के साथ कई भारतीय भाषाओं की नींव दक्षिण ने रखी यह उल्लेखित किया। डॉ के एस ने अनुवाद की सूक्ष्म पद्धति को समझाते हुए एक उदाहरण दिया ,अगर कोई सुंदर नहीं है तो वह फेथफुल हो सकती है। अगर फेथफुल है तो हो सकता है सुंदर ना हो। अनुवाद भी यही कला है । सुंदर और समर्पित बनाना है तो दोनों भाषाओं का पूर्ण ज्ञान होना अनिवार्य है। 
संगोष्ठी का संचालन और विषय का विस्तार करते हुए हरीश अरोड़ा ने सभी का आभार भी माना।

बहुभाषीय कवि सम्मेलन - 

राधेश्याम बंधु की अध्यक्षता और नरेंद्र सिंह परिहार के संचालन में कवि सम्मेलन की शुरुआत करते हुए डॉक्टर जयप्रकाश शर्मा ने भक्ति गीत प्रस्तुत किया - मुझे देख न मलिक, हम सब का दुःख श्मन करो कृष्णा। राजलक्ष्मी कृष्णन ने दुर्गा स्तुति तमिल में सरिता सही ने न्याय की पुकार तो डा कृष्ण कुमार द्विवेदी की कविता के बाद जमील अंसारी ने हास्य व्यंग प्रस्तुत किया - वक्त पर इलाज, नर्स से जो लड़ गई नजर, दो दिन भी अस्पताल में रहने नहीं दिया। जयप्रकाश सूर्यवंशी सभ्यता पर कविता, डॉ. के चेल्लम ने सृष्टि की देन नारी, शशिकला की ग़ज़ल, डॉ आशा मिश्रा के उम्मीद है जगी हुई जीत के साथ  श्रीदेवी का स्वर था - तुम प्रश्न बन जाओ, मैं उत्तर बन जाऊं।

मैं कवि बन जाऊं तो तुम, पत्थर ना बन जाना। बाबा कानपुरी की व्यंग्य गजल का शेर_ खुशी की रेत पर ताजा घरौंदा तोड़, किसी बच्चे ने अपनी भावना लाई है। जे एस राणा कंचन का ओजस्वी गीत था कि अपने तरकश के तीर चलाओगे । कोयल विश्वास का नैसर्गिक उत्साह, तो तमिल में पुष्पम आशारी कुन्नम का पुर्ववादन  निष्पादन गीत के साथ मीरा रायक्वार की तपती धरती पर कविता प्रस्तुत हुई । सी पार्वती की दक्षिण भाषा पर  कविता के बाद उषा रानी राव ने कहा_ खासियत जनतंत्र की यही है कि हमारी वफादारी पर जिरह  करते हैं। परशराम डेहरिया कि पर्यावरण कविता के पश्चात हरीश अरोड़ा - समय के गर्भ में लक्ष्मी का भंडार, जब हर बेटी निर्भय होगी, अंधेरे पथ की राहों में। पढ़ेंगे व्याकरण उजियारों का नन्ही किरणों की बाहों में। इनके पश्चात मंजू लंगोटे की रचना थी - मैं कच्ची इमारत भी नहीं, जो ढह जाऊंगी, मैं कच्ची कली भी नहीं, जो बिखर जाऊंगी। मैं सदा निखर जाऊंगी। इन काव्य रचनाओ से कवि, कवयित्री महफिल को उत्साहित करने में सफल हुए।

लक्ष्मण डेहरिया की गजल सियासी रहनुमाओं की चाल समझो, कुंतल दत्त की कशिश एक पागल औरत दिखाई देती है, सलमा जमाल की रचना बेटे को लेकर, मुकेश अग्रवाल मीठी बातों को केंद्र में रखकर कविता सुनाई वही ब रामादेवी ने तमिल में जुझारू महिला की व्यथा के साथ, मीणा कौशल ने चमचे और पतीले के माध्यम से व्यंग कथा तो डॉक्टर चंद्र चतुर्वेदी राम कथा को प्रस्तुत किया, तो उन्नी कृष्णन उल्लेरी ने मलयालम में अपनी कविता प्रस्तुत की। डॉ सरोज सिंह श्वासों के पाषाण कविता के माध्यम से कहा - गहरी मेरी साँसों में, समुद्री लहरों की तरह, धड़कनों के मधुरिम तरन्नुम में गाते, मेरे वो अव्यक्त स्वप्न। डॉ बाल कृष्णा महाजन के बोल थे - उनकी तस्वीर देखकर मैं हैरान हो गया, जो आदमी ना बन सका मैं भगवान हो गया। इनके बाद अजिथा राजन, ए के संध्या, पी बी रमादेवी, संध्या आरक्कल, डा सुजाता दास, सरिता सेल, टी मैनेथ, डा अजीतन मनौत, डॉ जय प्रकाश शर्मा, पुष्पन आरा रिक्कूनू, नेहा भंडारकर, शिल्पी भटनागर आदि ने मलयालम, कन्नड़, तमिल, अंग्रेजी, हिंदी, गुजराती, राजस्थानी, आसामी भाषा में काव्य पाठ किया।
कवि सम्मेलन का संचालन नरेंद्र सिंह परिहार ने किया और समापन अध्यक्ष राधे श्याम बंधु ने गीत प्रस्तुत किया - प्यार जब से हो गया है एक अफसर की तरह, जिंदगी लगने लगी है टी एक दफ्तर की तरह। इसके साथ भोजन उपरांत तारीख 19 अक्टूबर को विराम दिया गया।

दक्षिण भारतीय भाषाओं की संगोष्ठी संपन्न - 

20/10/24 की प्रथम संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए डॉक्टर श्याम सिंह शशि ने कहा एक भाषा से दूसरी भाषा में अनुवाद करना सरल नहीं है जैसे मराठी में संचालक निदेशक, निर्देशक और डायरेक्टर होता है। इसे अनुवाद करना अनुवादक के वृहत ज्ञान पर निर्भर है।
संचालक श्री मालन जी ने अनुवाद के चैलेंज, आवश्यकता, संस्कृति आदान-प्रदान, फ्लैक्सिबिलिटी को रखा। प्रथम वक्ता के रूप में श्री हरि हरण ने कहा तमिल हिंदी के कारण में जीता हूं। चैतन्य महाप्रभु के जीवन को अंग्रेजी से तमिल अनुवाद करने हेतु व्याकरण और संस्कृति का मुझे पठन करना पड़ा। अनुवाद में हमें मूल लेखक की तरह सोचना पड़ता तो है, परंतु मुहावरों और व्याकरण का ध्यान भी रखना पड़ता है। षडमुंगन जी ने कहा भारतीय भाषाएं और अनुवाद कम्युनिकेशन का एक माध्यम है । अनुवाद का मतलब ड्रेस बदलने जैसा होता है, उसके दिल की धड़कन को बदलना नहीं ।उन्होंने स्वतंत्रता के पहले और स्वतंत्रता के बाद के काल को रखा। अनुवादक को इंग्लिश ने एक प्लेटफार्म तो दिया ही है । प्रोवर्ब और इडियम को कन्वर्ट करना और कल्चरल हेरिटेज का ध्यान रखना सरल तो नहीं , बहुत कठिन भी नहीं ।यह वही कर सकता है जो दर्शन ,संस्कृति का ज्ञान रखता है। डॉ कायल ने कहा उन्होंने हिंदी से तमिल उर्दू से तमिल में बहुत काम किया है। सारे जहां से अच्छा आदि काव्य का अनुवाद भी किया है ।कवि अनुवाद के बीच स्वयं की भावना को लेकर खड़ा हो जाता है, तो वह मुख्य कवि और लेखक के साथ न्याय नहीं कर सकता। गालियों और गंदे  शब्दों का अनुवाद बहुत ही कठिन होता है। अनुवाद में इंग्लिश संस्कृत के शब्द ना आ जाए इसका भी ध्यान रखना चाहिए।
 सदा मुरूम ने कहा मैं तमिल से तेलुगू और तेलुगु से तमिल में अनुवाद करती हूं । घर जमाई शब्द के भाषा अनुवाद को समझाकर उन्होंने कहा, भाषा के मर्म को समझना पड़ता है। मातृभाषा में समझना और भाषा ज्ञान के अनुसार अनुवाद करना सरल होता है । अनुवाद से दोनों संस्कृति की पहचान तो होती ही है, एक दूसरे के करीब लाती भी है । कहते हैं रामायण के इतिहास को  तमिल में अनुवाद करना कठिन है पर ऐसा नहीं है। कार्यक्रम का संचालन मालन जी ने बहुत ही गंभीरता से पूर्ण किया और अंत में सबका आभार माना।

अनुवाद की संस्कृति और धरोहर और भाषा - 

दो दिवसीय कार्यक्रम की अंतिम संगोष्ठी में अध्यक्षता करते हुए डॉ.  आशा मिश्रा ने कहा अनुवाद करना कठिन होता है, क्योंकि शब्द अनुवाद और भाव अनुवाद ही अनुवाद की संधि है।
कार्यक्रम का संचालन अशोक कुमार जैन ने अपना मत अनुवाद को रखते हुए प्रथम वक्ता के रूप में आर. पार्वती जी को बुलाया । पार्वती जी ने कहा अनुवाद में दो भाषाएं होती हैं ,एक मां की दूसरी मामा की । दोनों का अपना एक महत्व होता है। करवा चौथ ,राखी उत्तर के त्यौहार हैं। इसको अगर दक्षिण में समझाना है तो हमें इन त्योहारों की संस्कृति को समझना होगा ,तभी अनुवाद पर न्याय होगा‌। डॉ मुरलीधरन ने दक्षिण भाषा के गौरव को प्रस्तुत करते हुए कहा 3000 साल पुरानी साहित्य को जीवित रखी है । इसमें तमिल ताई का उन्होंने उल्लेख किया। तमिल के  अद्वितीय व्याकरण के साथ थिरुक्कुल एक महान तमिल ग्रंथ है,  जिसमें धर्म, अर्थ, प्रेम का महत्व दिया गया है। अनुवाद ने मुझे हिंदी पढ़ने पर प्रोत्साहित भी किया। डॉ. चेल्लम जी ने कहा दक्षिण भारत के संतों का हिंदी में बहुत योगदान है । भगवत गीता संस्कृत तमिल में भी लिखे गए। शब्द जो लिखे जाते हैं वह नष्ट नहीं होते । हां! यह भी सच है भक्ति साहित्य का ही ज्यादा अनुवाद हुआ । डॉ. सरोज सिंह ने अनुवाद की प्रासंगिकता के साथ नवमी शताब्दी को तमिल साहित्य की आधारशिला बता कर कहा संत कवियों ने जो भी दिया है, आज भी पढ़ा जाता है, क्योंकि स्वस्थ जीवन के कल्याण की बातें उसमें होती हैं । हमारे कालेज में यहां प्रेमचंद ,कबीर भी पढ़ाया जा रहा है।   बच्चे हिंदी लिख और समझ पा रहे हैं ।  वासुदेवन ने कहा साहित्य हमारी धरोहर है अनुवाद रीड़ की हड्डी, जो हमें कौमी एकता प्रदान करती है। 
कार्यक्रम का सुसंचालन और आभार अशोक कुमार जैन ने माना।

समापन समारोह - 

अध्यक्षता करते हुए डॉ श्याम सिंह शशि ने चेन्नई के इस आयोजन को सफल घोषित किया उन्होंने कौतुक किया किस अवसर पर विभिन्न भाषाओं में प्रपत्र पढ़े गए विशेष कर डॉक्टर शिव शंकर अवस्थी डॉक्टर सरोज सिंह और अशोक जैन का कौतुक किया प्रमुख अतिथि के रूप में राजस्थान पत्रिका के संपादक संतोष तिवारी जी ने इसे दक्षिण भारत में भाषाओं का एक सफल कार्यक्रम निरूपित किया। इसके पश्चात सभी संयोजकों ने अपने-अपने क्षेत्र की गतिविधियों का संक्षिप्त रूप प्रस्तुत किया किरण पोपकर गोवा, उषा रानी राव कर्नाटक, सलमा जमाल जबलपुर, अशोक जैन चेन्नई, डॉ अहिल्या मिश्रा, हैदराबाद, डॉ. वर्गीश केरला, नरेंद्र परिहार नागपुर आदि प्रमुख थे।
समाचार 4975030265494306992
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