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मजबूरी..


मी लाड॔ ! आप इसकी भोली सूरत पर न जाये. इसकी हैवानियत को देखिये. एक मासूम बच्ची की हत्या करने के प्रयास में इसे रंगे हाथ पकडा गया है. यह कहते हुए सरकारी वकील कुमारसेन ने अपनी दलील रखी. इस अनोखे केस को सुनने के लिए फास्ट ट्रैक कोट॔ मे लोगों की भीड़ जमा हो चुकी थी. कारवाई को आगे बढ़ाते हुए कुमारसेन ने गवाह के रूप मे दरोग़ा राणे को कटघरे मे बुलाया. 'आपने क्या देखा?' कुछ दिन पहले  की बात है ,जब हम गस्त पर थे.रात 2 बजे के क़रीब सुदामा गली के कोने वाले कुऐं के पास इसे एक छ: - सात वषि॔य बच्ची के साथ देखा. फिर क्या हुआ?

पास जाकर देखा तो लगा कि इस व्यक्ति ने बच्ची के हाथ -पैर व मुंह बांध रखे है.कुछ अंदाजा नहीं हो पाया कि यह क्या करने वाला था. सो हमने इसे और बच्ची को थाना लेकर आ गए और बच्ची  को तुरंत अस्पताल भिजवा दिया.कोशिश करने के बाद भी इसने एक शब्द नहीं कहा. इसने कुछ बताया. सरकारी वकील ने पूछा. 'जी! नही, तब से अब तक इसने अपनी ज़ुबान नहीं खोली.'

मि लॉर्ड यह केस बिलकुल साफ नज़र आ रहा है. इसकी ख़ोमोशी ही इसके गुनाह का सबूत है. अपहरण बलात्कार व हत्या के प्रयास का केस है. बीएनएस धारा 63 ,109 व 137के तहत इसे सज़ा दि जानी चाहिए. तुम्हें अपनी सफाई में कुछ कहना है. 'न्यायाधीश मॅडम ने पूछा'-

जी! हाँ, जज साहेबा, मुझे फांसी पर लटका दीजिए. मै अपराधी हूँ. मेरा गुनाह है कि मै ग़रीब हूँ. तुम कहना क्या चाहते हो? मेरा नाम गिरधर है. मैं पास के गोगुल गांव का कम पढ़ा लिखा आदिवासी किसान हूँ. मेरी पत्नी की जान लेवा बीमारी के कारण मेरी जमा पूंजी ख़तम हो गयी थी. मेरी 5 एकड़ ज़मीन गांव के साहुकार के पास गिरवी रखकर, इलाज करवाने के लिए शहर चला आया. बाद में पता चला की साहुकार ने कोरे काग़ज पर मेरा अंगुठा लगा लिया है. 'इससे तुम्हारा किया गया गुनाह माफ नहीं होता. तुमने इस बच्ची का अपहरण क्यों किया?' सरकारी वकिल ने पूछा. 'क्या कोई बाप अपनी ही औलाद का अपहरण करेंगा, बलात्कार व हत्या करेंगा?' फिर तुम कुऐं के पास क्यों गये थे.

सरकारी अस्पताल में इलाज के दौरान मेरी पत्नी का निधन हो गया. मै लाचार, बेबस व मजबूर कुछ दिन तक बचे कुछे पैसों से ग़ुजारा करता रहा. इस बच्ची का क्या करने वाले थे? सराय के आहाते मे भूखा- प्यासा कब तक रहता. सोचा मेरे बाद इसको दरिंदो से भरी दुनिया में छोड़कर नही जा सकता. इसलिए सोचा हम दोनों ही कुऐं में कूदकर मर जायेंगे. बच्ची चिल्लाये नहीं और कहीं भाग न जाये.इसलिए उसके हाथ- पैर और मुंह बांध दिए थे. यह सुनकर कोट॔ मे शांति छा गयी.सभी का फ़ैसले का इन्तज़ार था. न्यायाधीश ने अपने फ़ैसले मे कहा- अज्ञान, गरीबी, लाचारी व मजबूरी मे गिरधर ने यह गुनाह करने का प्रयास किया. क़ानून के मुताबिक जो सज़ा है, वह तो इसे मिलेगी ही पर कोट॔ सरकार को यह आदेश देती है कि साहूकार से गिरधर की ज़मीन वापस लेकर उसे दुबारा जीने का अवसर दिया जाऐ. तालियों की गूंज के  साथ कोट॔ की कारवाई समाप्त  हूई.

- मोहम्मद जिलानी,
   चंद्रपुर, महाराष्ट्र 
कथा 3677791156427248532
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