ग़ज़ल
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सितारे और भी नीचे चले आए तो अच्छा है।
मुकद्दर हाथ पर रख हाथ, सोने वालों का कहां,
चने लोहे के दांतों से चबाए तो अच्छा है।
फकत पुतलों पे और तस्वीर पर माला से क्या होगा,
ये मिट्टी है वतन की ये तुझे भाये तो अच्छा है।
ना जाने कब सिमट आए, जरासी जिंदगी, समझो,
तू अपने वक्त के रहते पछताए तो अच्छा है।
तू जादूगर, हुनर तुझमें है सब कुछ जो बदलने का,
तू रोते आदमी को भी हंसाए तो अच्छा है।
- सरोज व्यास
नागपुर, महाराष्ट्र