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रावण अमर हैं...!


समाज में रावण दर्शन हर दिन नए नए रूप में हो रहे है। कभी बेटियों पर अत्याचार, कभी समाज में भ्रम फैलाते दिखते है...तो कभी जाति भेद का जहर उगलते दिखाई देते है। ऐसे ही कई रूपों में रावण के दर्शन हो ही जाते है। यानी रावण अमर है!

साल दर साल, दशहरे पर हम रावण का पुतला जलाते हैं। हर बार तालियाँ बजती हैं, लोग खुश होते हैं, मानो रावण के साथ सारे बुरे कर्म भी जलकर राख हो गए हों। पर सोचने वाली बात यह है कि क्या वह रावण सचमुच मरता है? नहीं! रावण केवल पुतले में जलता है, लेकिन असली रावण हमारे समाज और राजनीति के गलियारों में हर दिन नया जन्म लेता है। वह अमर है!

रावण, वह जो छल-प्रपंच, भ्रष्टाचार, असमानता और अहंकार का प्रतीक है, हमारे नेता, अधिकारी और स्वयं हम में समाहित है। किसी मंत्री के भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने का प्रयास हो, या बेटियों पर अत्याचार के दरिंदो को बचाने का, या किसी वर्ग विशेष पर अत्याचार हो - यह रावण फिर जीवित हो जाता है। कभी यह धर्म के नाम पर विभाजन कराता है, तो कभी जाति के नाम पर भेदभाव। 

राजनीति के रावण तो खासतौर पर अमर होते हैं। ये चुनाव के समय जनता के चरणों में झुकते हैं और फिर सत्ता पाते ही सत्ता का मखौल बनाते हैं। उनके दस सिर होते हैं - प्रलोभन, वादाखिलाफी, झूठ, भ्रष्टाचार, जातिवाद, धार्मिक उन्माद, परिवारवाद, सत्ता लोलुपता, अहंकार, और सबसे खतरनाक - जनता की याददाश्त की कमजोरी। 

जब भी कोई बेटा बूढ़े मां - बाप पर अत्याचार कर उन्हें घर से निकाल देता हैं तब बेटे में रावण की छबि नजर आती है। नेता अपने वादे से मुकरता है, तो समझिए कि रावण जीवित है। जब भी कोई अधिकारी अपने पद का दुरुपयोग कर गरीबों का हक मारता है, तब समझिए कि रावण वहीं खड़ा है। और तो और, जब हम खुद स्वार्थ के लिए अनुचित समझौते करते हैं, तब हम भी उस रावण की सेना का हिस्सा बन जाते हैं।

रावण का मारा जाना प्रतीक है अच्छाई की जीत का, लेकिन वह प्रतीक तभी सार्थक होगा जब हम समाज के भीतर बैठे रावणों को मारना शुरू करें। दशहरा तभी सफल होगा जब भ्रष्टाचार के, असमानता के, मानसिक दरिंदगी के और अज्ञानता के रावण समाज से सचमुच खत्म होंगे। लेकिन आज का सच यही है कि 'सामाजिक रावण कभी नहीं मरता,' क्योंकि हम उसे मरने ही नहीं देते। 

बस, हर साल उसका पुतला जलाकर हमें यह भ्रम हो जाता है कि हमने धर्म की रक्षा कर ली है। और अगले दिन वही सामाजिक रावण हमारी जिंदगी में फिर से हंसता हुआ लौट आता है, एक नए रूप में, एक नए पुतले के रूप में जलने के इंतजार में। तो सोचिए, क्या इस बार भी रावण केवल जलने के लिए बनेगा, या फिर वह वास्तव में मरेगा?

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डॉ. प्रवीण डबली (वरिष्ठ पत्रकार)
   नागपुर, महाराष्ट्र

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