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ज्ञान केंद्रित है भारतीय सभ्यता : प्रो. कपिल कपूर


नागपुर विश्वविद्यालय में भारतीय ज्ञान परम्परा पर राष्ट्रीय संगोष्ठी 

नागपुर। भारत योग भूमि है। भारत की सभ्यता का ज्ञान केन्द्रित है। भारत की संस्कृति मूल्य आधारित है और समाज कर्तव्य आधारित है। भारत की पहचान सनातन धर्म से है। यह बात विख्यात भाषा विज्ञानी और विचारक प्रो. कपिल कपूर ने हिन्दी विभाग, राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय द्वारा ‘भारतीय ज्ञान परम्परा और साहित्य-दृष्टि’ विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में कहीं । उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा विश्व की प्राचीनतम ज्ञान परंपरा है। दुनिया कोई भी ज्ञान परंपरा आज तक नहीं टिक सकी। भारतीय ज्ञान परंपरा आज भी वर्तमान है। अपनी ज्ञान जनित चेतना के कारण ही भारतीय राष्ट्रीयता आज तक विद्यमान है।


इस अवसर पर डॉ. अतुल कोठारी ने कहा कि शिक्षा ही भारतीय ज्ञान परम्परा का आधार है। एकत्व की संकल्पना ही भारतीय दर्शन का मूल तत्व है। इसलिए भारत को आध्यात्म की भूमि कहते हैं। भारतबोध  विकसित भारतीय ज्ञान चेतना का मूल लक्ष्य है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए नागपुर विश्वविद्यालय के प्र-कुलगुरु डॉ. संजय दुधे ने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा से ही जीवन-मूल्य समृद्ध होता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को शिक्षा के प्रत्येक स्तर पर लागू करने की आवश्यकता है।

इससे पूर्व स्वागत भाषण में मानविकी संकाय के अधिष्ठाता प्रो. शामराव कोरेटी कहा कि संस्कृति और ज्ञान के कारण ही भारत की पहचान राष्ट्र के रूप में है। पाश्चात्य शिक्षा के कारण हम अपने गौरवशाली अतीत को भूल गए हैं। इसलिए भारतीय ज्ञान परम्परा का अध्ययन आवश्यक है। कार्यक्रम की प्रस्तावना करते हुए हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. मनोज पाण्डेय ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा पर चिंतन समय की आवश्यकता है। भारतीय मूल्य चेतना और भारतीयता को अक्षुण्ण रखने के लिए इस पर संवाद होना चाहिए। संवादधर्मिता भारतीय ज्ञान परंपरा का मूलाधार है।

इस अवसर पर ‘भारतीय ज्ञान परम्परा का वैशिष्ट्य’ और ‘भारतीय ज्ञान परम्परा और संस्कृति’ नामक दो पुस्तकों का विमोचन अतिथियों द्वारा किया गया। साथ ही संगोष्ठी की स्मारिका तथा 'विद्यार्थी-दृष्टि' पत्रिका का विमोचन किया गया।

संगोष्ठी के प्रथम सत्र में भारतीय ज्ञान परंपरा की अवधारणा पर अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए डॉ. श्रीराम परिहार ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा वैदिक काल से चली आ रही है। इसके कई अभिलेख आज भी हमारे जनजीवन में मौजूद हैं। प्रमुख अतिथि पूर्व पुलिस महानिदेशक डॉ. भूषण कुमार उपाध्याय ने भारतीय ज्ञान परंपरा में मानव स्वास्थ्य की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए बताया कि यह एक ऐसी परंपरा है जिसमें मानव जीवन की समस्त विसंगतियों का समाधान दिया गया है। गाजीपुर से पधारे विद्वान डॉ. आनंद कुमार सिंह ने अपने उद्बोधन में भारतीय ज्ञान परंपरा को ऋषियों, मुनियों और तपस्वियों की साधना का सुफल बताया।

दूसरे तकनीकी सत्र का विषय था भारतीय ज्ञान परंपरा की वैश्विक दृष्टि। सत्र की अध्यक्षता करते हुए मध्य प्रदेश शासन के पूर्व अपर मुख्य सचिव श्री मनोज श्रीवास्तव ने भारतीय ज्ञान परंपरा के वैश्विक सरोकारों को रेखांकित करते हुए कहा कि यह दुनिया की एक ऐसी परंपरा है जिसमें समस्त चराचर जगत की चिंता की गई है। डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर विश्वविद्यालय दिल्ली के प्रोफेसर डॉ. सत्यकेतु ने अंबेडकर और गांधी का संदर्भ प्रस्तुत करते हुए भारतीय ज्ञान परंपरा की वैश्विक समझ को रेखांकित किया। डॉ. कृष्ण गोपाल मिश्रा ने अपने उद्बोधन में भारतीय ज्ञान परंपरा की विश्व को देन पर विचार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. संतोष गिरहे और डॉ.लखेश्वर चंद्रवंशी ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ. सुमित सिंह और प्रा. जागृति सिंह ने किया। संगोष्ठी में देश भर से लगभग 200 प्रतिभागी शामिल हुए हैं।
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