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किसान का दुःख दर्द है


किसान है तो हम हैं 
धस मिट्टी में काम करें ।
दिन- रात, सुबह -शाम करें 
ठंडी, बरसात, जाड़ा या तप्ती धूप
धरती से वो प्यार करें 
पर किसान का दुख क्या ?

अपनी परवाह किए बिना 
भूखा प्यासा रह कर वो
धरती से अन्य उगाता है। 
जग का पेट भरता है 
पर खुद भूखा सो जाता है 
पर किसान का दुःख  क्या?

सारी मेहनत करता है 
दाना, पानी, खाद, दवाई
फसल का पोषण कर्ता है 
दाम उसे कभी कम मिलता 
पेट भरे सब का, वह ख़ुश रहाता
है पर किसान का दुःख क्या ?

कर्ज ले कर भी सहता है 
जो सबको खिलाता है अन्न
कभी उसके नसीब न होता है 
जो कहते हैं सुखी किसान 
सूखी किसान, नहिं हम है 
जो अन्न बीना मेहनत के पाते हैं
पर उसे किसान का दुःख
सुनने से भी कतराते हैं 
पर किसान की दुःख क्या ?

- मेघा अग्रवाल 
   नागपुर, महाराष्ट्र
काव्य 4279764667861977749
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