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भाषा बोध ही है लेखन कला की आधारशिला : श्रीपाद जोशी


नागपुर। भाषा बोध ही लेखन कला की शक्ति और आधारशिला है। भाषा ही ज्ञान का माध्यम है।  मीडिया लेखन के लिए समाज, संस्कृति और भाषा का गहन बोध होना चाहिए। यह बात प्रसिद्ध साहित्यकार और अखिल भारतीय मराठी महामंडल के पूर्व अध्यक्ष श्रीपाद जोशी ने कही। 

वे हिन्दी विभाग, राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित 'मीडिया लेखन कार्यशाला' के समापन सत्र में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि भाषा के शिक्षण-प्रशिक्षण पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। भाषा का संस्कार ही हमारे व्यक्तित्व का नियामक होता है।

इस अवसर पर पावर ऑफ वन (मासिक) के सम्पादक नीरज श्रीवास्तव ने कहा कि ज्ञान मनुष्य का सबसे बड़ा हथियार है। ज्ञान के बल पर व्यक्ति हर चुनौती पर विजय प्राप्त कर सकता। इसलिए मनुष्य को ज्ञानार्जन के लिए सतत प्रयत्नशील रहना चाहिए।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. मनोज पाण्डेय ने कहा कि भाषा मनुष्य को संस्कारित करती है। भाषायी कौशल हमारी वैचारिक समझ को विकसित करता है। माध्यम लेखन में भाषा की भूमिका को हमें ईमानदारी से समझने की जरूरत है।  

कार्यशाला के दूसरे दिन तरुण भारत के सहयोगी संपादक चारूदत्त कडू ने स्तम्भ लेखन के विविध आयामों पर तथा लेखा - डाक विभाग के राजभाषा अधिकारी तेजवीर सिंह ने पत्र-लेखन तथा विज्ञापन लेखन कला पर प्रतिभागियों का मार्गदर्शन किया। संचालन डॉ. सुमित सिंह ने तथा आभार प्रदर्शन प्रा. जागृति सिंह ने किया। सभी प्रतिभागियों को अतिथियों के हाथों प्रमाण-पत्र प्रदान किया गया।
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