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भाषायी सौहार्द से प्रवहमान होगी भारतीय ज्ञान परम्परा - श्रीराम परिहार


नागपुर विश्वविद्यालय में भारतीय ज्ञान परम्परा पर राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न

नागपुर। भारतीय ज्ञान परम्परा को सुरक्षित रखना है तो भाषायी भेद मिटाकर सबको साथ आने की आवश्यकता है। क्योंकि भाषायी सौहार्द से ही भारतवर्ष के ज्ञान भंडार को अक्षुण्ण रखा जा सकता है। अपनी ज्ञान परम्परा के आधार पर ही युगीन चुनौतियों से लोहा लिया जा सकता है। यह बात वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. श्रीराम परिहार ने हिन्दी विभाग राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित "भारतीय ज्ञान परम्परा और साहित्य-दृष्टि" विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए कही। उन्होंने लोक को भारतीय ज्ञान का अधिष्ठान बताते हुए कहा कि भारत के जन-मन में जो मानवीय चेतना है, वही लोकभाषा में अभिव्यक्त हुई है।


प्रमुख अतिथि मध्य प्रदेश शासन के पूर्व अपर मुख्य सचिव श्री मनोज श्रीवास्तव ने पूर्व और पश्चिम की ज्ञान परंपराओं के अंतर को रेखांकित करते हुए कहा कि भारतीय परंपरा अपनी समावेशी प्रकृति के कारण ही चिरपुरातन और चिर नवीन है। विशिष्ट अतिथि राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के प्रधानमंत्री श्री हेमचन्द्र वैद्य ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारतीय संस्कृति के संवाहक के रूप में हिन्दी भाषा की बहुत बड़ी भूमिका रही है। 
धन्यवाद ज्ञापित करते हुए हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. मनोज पाण्डेय ने कहा कि संगोष्ठी में भारतीय ज्ञान परम्परा के विविध आयामों पर महत्वपूर्ण चर्चा हुई। इससे भारतीय मूल्य चेतना के प्रति हमारी जिज्ञासा और जवाबदेही सुनिश्चित होती है। 

इसके पूर्व तृतीय तकनीकी सत्र की अध्यक्षता करते हुए केन्द्रीय विश्वविद्यालय, हैदराबाद की पूर्व प्रोफेसर डॉ. शशि मुदिराज ने कहा कि द्वैत और अद्वैत के द्वन्द्व में न पड़कर सबको एकत्व के भाव से ग्रहण करने की आवश्यकता है। नागपुर के विचारक डॉ. श्रेयस कुरहेकर ने कहा कि नई शिक्षा नीति के अनुसार यदि सही ढंग से शिक्षा जगत में कार्य हो तो भारतीय ज्ञान की विश्व में प्रतिष्ठा होगी। 'भारतीय ज्ञान परम्परा और कला-दृष्टि' विषक चौथे सत्र की अध्यक्षता प्रधानमंत्री संग्रहालय, नई दिल्ली के वरिष्ठ फेलो डॉ. ज्योतिष जोशी ने की। उन्होंने कहा कि शरीर, मन, बुद्धि, चित्त से परे शिवोहम का अनुभव ही भारतीय ज्ञान की कला-दृष्टि है। बाबासाहब आम्बेडकर विश्वविद्यालय, दिल्ली के डॉ. महेन्द्र प्रजापति और अंजना झा ने भी चर्चा में भाग लिया।

संगोष्ठी के पंचम सत्र की अध्यक्षता शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के महिला कार्य आयाम की राष्ट्रीय संयोजिका सुश्री शोभाताई पैठणकर ने की। भारतीय ज्ञान परम्परा और आर्ष ग्रंथ विषय पर बोलते हुए शोभाताई ने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा एक सनातन परम्परा है। मंत्रदृष्टा ऋषियों ने धर्म, दर्शन, संस्कृति की धारा को समाज जीवन में प्रवाहित किया। अंबिकापुर से पधारे डॉ. पुनीत राय ने उपनिषदों के महत्त्व को रेखांकित करते हुए कहा कि उपनिषद भारतीय ज्ञान परम्परा का आधार ग्रंथ है। उपनिषद का ज्ञान हमें तेजस्वी और निर्भय बनाता है। विशेष अतिथि डॉ. प्रकाश चन्द्र गिरि ने आर्ष ग्रंथों के विविध आयामों पर प्रकाश डाला। प्रमुख अतिथि डॉ. जितेंद्र तिवारी, मुंबई ने कहा कि हमारे जीवन में भारतीय ज्ञान परंपरा का महत्वपूर्ण स्थान है। संगोष्ठी के विविध सत्रों का संचालन प्रा. जागृति सिंह, प्रा. आकांक्षा बांगर और डॉ. एकादशी जैतवार ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ. सुमित सिंह, प्रा. दामोदर द्विवेदी और प्रा. विनय उपाध्याय ने व्यक्त किया। 
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