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बिन चिकन, चिकन गुनिया


सुबह उठे तो लगा मानों मनों वजन दोनों पावों पर था, इतना जबरदस्त दर्द कि पांव हिलाना मुश्किल। सभी जोड़ों में दर्द। साथ ही तेज बुखार। फिर क्या, काम पर न जा पाये। यह परेशानी पांच दिन रही। पांच दिनों के काम का बंटाधार। यह केवल मेरे साथ हुआ हो, ऐसा नहीं। मुहल्ले के हर एक घर में दो तीन मरीज हैं।

चिकन गुनिया कोई एक दशक पहले काफी पसरा हुआ था। तब हम बच निकले थे। चिकन गुनिया एक वायरस है जो  मच्छर काटने से होता है। और मच्छर हैं, कब काट दिया, न मालूम, हालांकि 12 महिने  मच्छरदानी लगाते हैं, चौबिसो घंटे मच्छर भगाने के आल आउट, अगरबत्ती, नेट और न जाने क्या क्या। और तो और, व्हाटस एप युनिवर्सीटी द्वारा सत्यापित प्याज और घी की बाती भी जलाकर देख ली। 

मच्छर हैं कि इन सब  कार्यकलाप को बड़े मजे से देखते हैं और काट लेते हैं, आखिर कब तक बचे रहोगे मिंयां, घर से तो निकलोगे ही ना, और जाना कारपोरेशन द्वारा निर्मित रस्ते पर ही है, जहां जगह  जगह रस्ते खुदे हुए हैं। वह रस्ते भी खुदे हैं  जो महीने भर पहले ही बनाए गए थे।

हम सोच रहे थे कि इसे चिकन गुनिया क्यों कहते हैं? तांझानिया के किमाकोंडे भाषा में विकृत हो जाने को चिकनगुनिया कहते हैं। इस बिमारी में जोड़ों के दरद की वजह से मरीज सिकुड़ सा जाता है, यानि विकृत हो जाता है।

मच्छर जब चिकनगुनिया से संक्रमित मरीज को काटती है, तब ये वायरस उसके बदन में आ जाते हैं जो मच्छर अपने अगले शिकार पर उगल देती है।मच्छर काटने के बाद 3 से 7 दिनों में जोड़ों में दर्द चालू हो जाता है और 4-10 दिन रहता है। कुछ लोगों में यह महिने भर रहता है।चिकन गुनिया में व्यक्ति केवल समय गिनता रहता है कि कब दर्द कम हो। नाक पर और गालों पर कालापन आना चिकन गुनिया का एक और रुप है।

दवा कोई विशेष नहीं , पैरासिटामोल  और जोड़ों पे गरम सेंक या बरफ की सिंकाईं। चिकनगुनिया से बचने के लिए एक प्रतिरोधक टिका भी बनाया गया है लेकिन यह ज्यादा प्रचलित नहीं है।

एक बार चिकन गुनिया हो गया तो बदन में प्रतिरोधक शक्ति आ जाती है और दुबारा फिर से चिकन गुनिया नहीं होता। मुझे लगता है कि चिकन गुनिया के फैलने की जिम्मेदारी मच्छर की नहीं बल्कि उन कर्मचारीयों की है, जो अपना काम ढंग से नहीं करते। शहर में गंदगी फैलते रहने की जिम्मेदारी उनकी ही है। टाऊन प्लानिंग डिपार्टमेंट तो ऐसे गायब है जैसे गधे के सिर से सिंग। 

नागपूर की नाग नदी अब नदी केवल नाम की है। असल में पिछले विगत बरसों में यह गंदा नाला बन चुका है। प्रत्येक चुनाव के पहले नाग नदी के साफ सफाई का कार्यक्रम बनता है फिर कचरे के पेटी में झोंक दिया जाता है।

वैसे तो गांव-शहर को साफ रखने की जिम्मेदारी हर एक नागरिक की है। अपने घर के सफाई के अलावा घर के आसपास के परिवेश के सफाई की जिम्मेदारी भी अपनी है। प्लास्टीक की बनी चीजें थैले, पैकेट, ग्लास इत्यादि  पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं। बरसात में गलीयों में, सड़कों में पानी जमने का कारण प्लास्टीक ही है।और इसी कारण से मच्छर पनपते हैं और मलेरिया, डेंगू, चिकन गुनिया जैसी बिमारीयां फैल रही हैं।
और हमें चिकन न खाते हुए भी हो गया चिकन  गुनिया।

- डॉ. शिवनारायण आचार्य 'शिव'
   नागपुर, महाराष्ट्र 
व्यंग्य 873901475327180105
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