हॉकी : लगातार दूसरी बार ओलंपिक कांस्य
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श्रीजेश : गौरवशाली बिदाई
विश्व हॉकी पटल पर चुनौतियां कितनी प्रतिस्पर्धी है इस बात का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि पिछली बार की शीर्ष दोनों टीम इस बार प्रथम 4 में भी अपना स्थान बनाने में असफल रही। आधुनिक हॉकी जंगल के नियम जैसी हो गई है जिसमें शेर हो या हिरण दोनों को दूसरे दिन के सूर्य का दर्शन करना है तो अपनी सामान्य रफ्तार से तेज भागना तो पड़ेगा ही साथ ही साथ चौकन्ना भी रहना पड़ेगा। इतनी कठिन चुनौतियों के बावजूद भारत ने अपना पिछला स्थान सुरक्षित रखा , हमने जंगल के नियम का पीछा किया,यह हमारी निरंतरता एवं प्रतिबद्धता को दर्शाता हैं। पिछली बार ओलंपिक में हम कोच ग्राहम रीड की योजना के साथ उतरे थे एवं इस बार कोच क्रेग फुल्टन के मंत्र 'रक्षा मजबूती के बाद आक्रमण' के साथ मैदान में थे।
जैसे जैसे टूर्नामेंट आगे बढ़ता गया हमारे खेल में निखार आता गया। हम सौभाग्यशाली रहे कि शुरआत के दोनों मैच कम प्रतिस्पर्धी टीमों से थे। ग्रुप चरण में ऑस्ट्रेलिया के साथ के मैच में टीम पूरे शबाब के साथ खेली। ओलंपिक में हमने ऑस्ट्रेलिया को एस्ट्रो टर्फ आने के बाद से कभी भी नहीं हराया था, खिलाडियों के मानस पटल पर कहीं न कहीं इसका मानसिक प्रभाव रहता है। लेकिन हमारे खेल मनो विशेषज्ञ पैडी अप्ट्रॉन ने टीम के साथ अपने लगातार सेशन से खिलाडियों के मन से भय को दूर कर दिया था जिससे खिलाडियों ने आत्मविश्वास के साथ खुलकर हॉकी खेली। ऑस्ट्रेलिया का खेलने का तरीका ही ऐसा है कि वे खुलकर खेलते हैं एवं विपक्षी टीम को भी खुलकर खेलने का अवसर देते हैं।
क्वार्टर फाइनल मुकाबले में एक कठोर निर्णय ने हमारे मेडल के रंग को प्रभावित किया। हर एक खिलाड़ी का अपनी टीम की योजना में कितना महत्व रहता है यह उस खिलाड़ी के नहीं रहने पर पता चला। अमित रोहिदास को रेड कार्ड दिखाया जाना अनावश्यक था, जिसका भारतीय हॉकी संघ ने जमकर विरोध दर्ज कराया, जिसके परिणाम स्वरूप सेमीफाइनल मैच में अंपायरिंग का स्तर कुछ लचीलापन लिए रहा। मैच के दौरान कुछ अवसरों पर खिलाडियों को कार्ड दिखाया जा सकता था, लेकिन अंपायरों ने आपसी समन्वयन एवं चेतावनी देकर खेल को आगे बढ़ाया।
इंग्लैंड के खिलाफ रेड कार्ड दिखाने के बाद के 42 मिनट भारतीय टीम ने बहुत बेहतर रक्षात्मक हॉकी का प्रदर्शन किया। भारतीय टीम अपनी रणनीति की मैच को पेनल्टी शूटआउट में ले जाने की योजना में कामयाब रही। इसके लिए खिलाडियों के साथ हमारे दोनों कोचेस ( खेल एवं मनो) को पूरा श्रेय जाता है। पेनल्टी शूटआउट में हमारे सभी खिलाडियों ने गोल किए एवं श्रीजेश जो कि अपने खेल जीवन का अन्तिम टूर्नामेंट खेल रहे हैं, ने बेहतरीन बचाव कर टीम के पदक जीतने के रथचक्र को आगे ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सेमीफाइनल : जर्मनी के खिलाफ हम जीता हुआ मैच हार गए। पेनल्टी कॉर्नर बचाने में अमित रोहिदास की फर्स्ट रशर की कमी सामने आई एवं पेनल्टी कॉर्नर पर गोल करने के अवसर पर जर्मन टीम की नीति का हम समय रहते तोड़ नहीं निकाल पाए। पेनाल्टी कॉर्नर बचाते समय जर्मन कोच ने जो नीती अपनाई थी, उनके 3 डिफेंडर हमारे स्ट्राइकर हरमनप्रीत को चक्रवूह जैसे घेर लेते थे एवं शॉट लेने के लिए गैप ही नहीं दे रहे थे। विरोधी की इस व्युहरचना को भेदने का हमारे कोच एवं खिलाड़ी समय रहते कोई गेम प्लान नहीं बना पाए। ओलंपिक में हम प्लान ए, बी एवं, जेड ऐसी 3 योजना के साथ गए थे, लेकिन जब जरूरत पड़ी तो हम अपने गेम प्लान में आवश्यक परिवर्तन करना भूल गए।
इसके अलावा जर्मनप्रीत सिंग जिन्होंने पूरे टूर्नामेंट में बेहतरीन खेल का प्रदर्शन किया जर्मनी के खिलाफ गलती कर बैठे। हमारा खेल निश्चित रूप से बेहतर था, हमारे गोल करने के प्रयास मामूली अंतर से चुके, खेल के अन्तिम सेकंड में गुरजंट का शॉट गोल के थोड़ा उपर से चला गया। इस मैच के प्रदर्शन को लेकर हमारे कप्तान ने देशवासियों के प्रति खेद प्रगट किया।
कांस्य पदक का मैच काफ़ी रोमांचक रहा। 1 गोल से पिछड़ने के बावजूद टीम ने शानदार वापसी की। हरमनप्रीत ने पेनाल्टी कॉर्नर पर दोनों गोल किए। दोनों समय पेनल्टी कॉर्नर लेने से पहले कोच क्रेग फुल्टन ने हरमनप्रीत के कान में कुछ दिशा निर्देश दिए, नतीजा दोनों गोल हुए। इसी प्रकार के निर्देश यदि सेमीफाइनल मैच में भी दिए जाते तो शायद हम फाइनल खेल रहे होते।
भारतीय हॉकी की सुरक्षा दीवार पी आर श्रीजेश का यह अन्तिम मैच था। इतने महान खिलाड़ी की जीत एवं पदक के साथ बिदाई एक गौरवशाली बिदाई रहेगी। 2012 में अपना सीनियर टीम के साथ सफर की शुरुआत करते हुए 12 वर्षों के अपने खेल जीवन में अनेकों उतार चढ़ाव तय किए। भारतीय हॉकी संघ के अध्यक्ष एवं पूर्व खिलाड़ी दिलीप तिर्की ने श्रीजेश को भारतीय हॉकी का भगवान की संज्ञा देना कोई अतिशयोक्ति नहीं है। भारतीय रक्षा पंक्ति को उनकी कमी अवश्य महसूस होगी। हम सभी श्रीजेश के खेल की, खेल भावना की एवं टीम के प्रति उनके समर्पण के लिए अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। अब इनकी सेवाएं जूनियर हॉकी टीम के कोच के रुप में भारतीय टीम को प्राप्त होगी।
ओलंपिक के लिए रवाना होने के पूर्व टीम यह निश्चय करके गई थी कि, 'खाली हाथ नहीं लौटना है' , अपने इस कृतसंकल्प को पूरा किया इसके लिए सभी खिलाड़ी, कोचेस एवं हॉकी इंडिया सभी बधाई के पात्र हैं। टीम का एक दूसरे खिलाड़ी के प्रती समर्पण कांस्य पदक जीतने के बाद मैदान पर दिखाई दिया। पोडियम पर श्रीजेश एवं हरमनप्रीत दोनों ने अपने मेडल एक दूसरे को पहना दिए।
किसी एक खिलाड़ी को इसका हकदार बताना बाकी अन्य के साथ अन्याय होगा, फिर भी कुछ एक खिलाडियों का ज़िक्र करना मुझे उचित लग रहा है, हमारे कप्तान हरमनप्रीत सिंग, श्रीजेश,विवेक सागर प्रसाद, ललित उपाध्याय, अभिषेक, हार्दिक सिंग, अमित रोहिदास। पूरे देश वासियों को खुशी देने के लिए सभी को बहुत बहुत बधाई। अपनी निरंतरता को बनाए रखें और आगे इससे भी बेहतर परिणाम प्राप्त होंगे इसी विश्वास के साथ।
- जितेन्द्र शर्मा (खेल समीक्षक)
नागपुर, महाराष्ट्र