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'बुढ़ापा एक सुखद बदलाव' विषय पर हिन्दी महिला समिति की परिचर्चा संपन्न


नागपुर। हिन्दी महिला समिति के तत्वाधान में अध्यक्षा श्रीमती रति चौबे द्वारा 'बुढ़ापा एक सुखद बदलाव' विषय पर एक परिचर्चा आयोजित की गयी जिसमें सदस्यों ने गद्य एवम् पद्य में अपने विभिन्न विचार प्रस्तुत किये। 

भगवती पंत के विचारों में  बुढ़ापा आराम से जीवन जीने का एहसास है क्योंकि  इस समय बच्चे अपने अपने कार्यक्षेत्र में भली भांति में  स्थापित होजाते हैं जिस कारण अपनी रुचि के कार्य आसानी से कर सकते हैं। बुढ़ापे को वरदान माना कर इसका आनंद लेना चाहिए। 

पूनम मिश्रा के अनुसार बुढ़ापे में शारीरिक बदलाव होने से चेहरे में झुर्रियां दिखाई देने लगती हैं। लेकिन इस बदलाव को सहर्ष अपनाना चाहिये क्योंकि यह ईश्वर प्रदत्त है। निवेदिता शाह के अनुसार बुढ़ापे की ओर बढ़ते कदम निश्चिंतता के होते हैं। एक तो बच्चों को अपनी दुनिया में मस्त देख कर आनंद की अनुभूति होती है। दूसरा अपने लिये भी कुछ करने व सोचने का अवसर मिल जाता है। 

समिति की अध्यक्षा रति चौबे ने कविता को गीत में ढाल कर बुढ़ापे के सुखद बदलाव के बारे में बताते हुए कहा है - तन में बुढ़ापा आता है मन तो प्रफुल्लित हो जाता है फिर क्यों उदास हो मेरे साथियों। हम हर पल बदलते रहते हैं परिवर्तित होते रहते हैं। कुछ नवजीवन सा होता है सरल सहजता जाती है उसमें सरलता और सहजता जाती है मन कभी बच्चों सा चंचल तो कभी संतों सा वैरागी हो जाता है। 

निशा चतुर्वेदी ने अपने विचारों को पद्य में ढालकर अपने विचार प्रकट करते हुए कहा है आज जब कुछ ध्यान आया मुझे, देखती हूँ फूल मेरे खिल चुके अब महक दें ये जहां में और फलें फूलें, बने शोभा ये चमन की लोग भी देखें हर्ष से। 

ममता जी का मानना है कि यह ऐसा समय है जब हम अपने शौक व रुचियों को आसानी से पूरा कर सकते हैं। अपने परिवार मित्रों के साथ  समय व्यतीत कर सकते हैं बीमारी से बचने व मानसिक संतुलन के लिये योग, साधना व धार्मिक सत्संग करना  चाहिए। 

सुषमा अग्रवाल के अनुसार नाती व पोते पोतियों की ऊंगली पकड़ कर उन्हें चलाने का सुखद एहसास और किसी अजनबी व्यक्ति का अपने बच्चे की तरह मम्मी पापा कहने का सुखद अहसास भुलाये नहीं भूलता।अपनी पसंद की किताबें पढ़ने का अवसर मिलना भी  बुढ़ापे  का स्वर्णिम बदलाव है। 

हेमलता मिश्रा ने अपनी सुंदर कविता द्वारा बुढ़ापे के  बदलाव के बारे में बताते हुए कहा है, बढ़ती उम्र का बढ़ता कद सरल मन का कद घटाता है खोने और पाने के समीकरण व्यवहार को दौड़ाते हैं अनायास ही कहीं कटु तो कहीं सदय हो जाते हैं श्मशान वैराग्य की बातें बेमानी हो जाती हैं। 

गीतू शर्मा ने बताया कि बदलाव प्रकृति का नियम है। बुढ़ापा उम्र का दौर नहीं वरन वह दौर है जब हम अपने लिये जीते हैं और अपने लिये सोचते हैं। यही वह समय है जब हम ज़िम्मेदारियों से मुक्त होकर स्वयं पर ध्यान  दे सकते हैं।
समाचार 8917105741282816053
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