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बढ़ता शुल्क घटता शिक्षा का स्तर में समीक्षा की जरूरत है ‌: ब्रजकिशोर शर्मा


नागपुर/प्रयागराज। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के राष्ट्रीय आभासी संगोष्ठी में मुख्य वक्ता ब्रजकिशोर शर्मा, पूर्व शिक्षा अधिकारी एवं प्राचार्य, इंदौर ने कहा कि बढ़ता शुल्क घटता शिक्षा का स्तर इसके लिए हमें समीक्षा करने की जरूरत है । देश में स्कूल से लेकर कॉलेज समेत हर शिक्षण संस्थान में लगातार फीस बढ़ोतरी एक बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है लेकिन इसके साथ शिक्षा का गिरता स्तर भी चिंता जनक है शासन की नीति शिक्षा मंहगी होगी तो शुल्क महंगी होगी। सामान्य जीवन जीना खर्चीला हो गया है।आज महंगाई की वजह से शिक्षा महंगी हो गई है। अतः शिक्षा का स्तर विषय वस्तु के आधार पर पढ़ाई जाती है वह स्तर सही हो बाहर पढ़ाई के नाम पर कोचिंग के लिए भेजना विद्यार्थी अनुशासन हीन हो रहे हैं। अतः शिक्षा के गुणवत्ता में सुधार होना बहुत ही आवश्यक हो गया है।

वक्ता डॉ मंजू पाटीदार, प्रभारी प्राचार्य, हिंदी शासकीय महाविद्यालय, कानवन ,जिला,धार ने कहा कि प्राचीन काल में भी तक्षशिला, नालन्दा, कान्यकुब्ज, मिथिला जैसी शिक्षण संस्थाएँ हुआ करती थी। उस शिक्षण पद्धति से आर्यभट्ट, वाराहमिहिर, नागार्जुन बोधायन जैसे रत्न प्राप्त हुए जिन्होंने भारत को विश्वगुरु बनाया | उस समय शिष्य में गुरु के प्रति भगवान जैसी श्रद्धा पाई जाती थी, परंतु आज के बाजारीकरण और भूमंडलीकरण के कारण शिक्षा ने व्यवसाय का रूप धारण कर लिया अन्य वस्तुओं की भाँती शिक्षा भी बेची जाने लगी, आज के छात्र-छात्राएँ उत्तम खेती, मध्यम बान, अधम नौकरी, भीख निदान जैसी संस्कृति को भूलकर नौकरी पाने एवं अधिकाधिक धन कमाने को अपने जीवन का उद्देश्य मानने लगे, मल्टीनेशनल कंपनी के हाथों की कठपुतली बनकर हमारे ही देश को बेचने में लगे हैं, और उनके टारगेट पूरा करने में अपने जीवन के यौवन के स्वर्णिम वर्षों को खपा रहे हैं | 

स्वतंत्रता प्राप्ति के 78 वर्ष व्यतीत हो गए और आज पुन: हम विदेशी सभ्यता, विदेशी संस्कृति, विदेशी वस्तुओं और विदेशी शिक्षा प्रणाली के गुलाम बनते जा रहे हैं | इस तरह के निम्न स्तर के शिक्षण से उत्पन्न समस्याओं के निदान के लिए समाज के प्रत्येक व्यक्ति को आगे आना होगा | शासकीय एवं निजी शिक्षण संस्थानों के पाठ्यक्रम में एकरूपता लानी होगी। शासकीय शिक्षण संस्थानों के शिक्षकों को अतिरिक्त कार्यभार से मुक्त करना होगा | शिक्षा के प्रचार-प्रसार के साथ-साथ उसकी गुणवत्ता में भी सुधार करना होगा। माननीय, शासकीय सेवक एवं मजदूर के बेटे को एक ही तरह की शिक्षा प्रदान कर शिक्षा में एकरूपता लानी होगी, तभी इस समस्या से समाज को मुक्त किया जा सकेगा।

 वक्ता डॉ. शहनाज शेख प्राध्यापक, नांदेड़, महाराष्ट्र ने कहा कि ‘आज शिक्षा बाजारी करण का दास खेल रही है । इस और शासन की गंभीरता का आलम यह है कि ,वह कई योजनाएं शिक्षा के बेहतरीन के लिए चला रही है ।लेकिन उन योजनाओं की दशा और दिशा की ओर कोई सकारात्मक पहलू नहीं हो रही है । जिस कारण योजनाओं का सही लाभ नहीं मिल पा रहा है ।शिक्षकों की बेहतर के मामले में शासन का नजरिया सकारात्मक नहीं होना ही इस गिरते सर का प्रमुख कारण है’।

प्रस्तावक के रूप में डॉ. गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी, सचिव, विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान ,प्रयागराज ने कहा कि आज का शिक्षा स्तर गंभीर समस्या बन गई है 10 से 40% तक शिक्षक का स्तर गिर गया है शिक्षक व गुणवत्ता में कमी आई है। आज शिक्षा का स्तर व्यवसायिक दृष्टिकोण से कमाई का जरिया है। अध्यक्षता डॉ.ओमप्रकाश त्रिपाठी के द्वारा किया गया।कार्यक्रम का प्रारंभ श्री लक्ष्मीकांत वैष्णव युवा संसद के सरस्वती वंदना से हुआ। स्वागत उद्बोधन प्राध्यापिका रोहिणी डावरे, अकोला, महाराष्ट्र के द्वारा किया गया। 

संयोजक एवं संचालन डॉ. मुक्ता कान्हा कौशिक, छत्तीसगढ़ प्रभारी ने संचालन करते हुए कहा के शिक्षा के स्तर में गिरावट का मुख्य कारण मोबाइल और बाजारीकरण है। धन्यवाद ज्ञापन शोधार्थी रतिराम गढ़ेवाल ,रायपुर ,छत्तीसगढ़ के द्वारा किया गया। इस राष्ट्रीय आभासी संगोष्ठी में हरिराम बाजपेई, डॉ. रंजीत सिंह अरोरा, डॉ. रूपाली चौधरी, डॉ. नजमा मलिक, डॉ. भरत शेणकर, डॉ. रश्मि चौबे, डॉ. रजिया शेख सहित अनेक प्राध्यापकगण, साहित्यकार उपस्थित रहे।
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