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रामकली की रसोई

                               


मकई की रोटी, सरसों दा साग, अगर  यह खाना हो तो चले जाईए पंजाब।  लेकिन उतने दूर जाने की दरकार नहीं, यहीं अपने बगल में इससे मिलता जुलता एक और पकवान है जो अपने इलाके में मिलता है, और जायके में कम नहीं, वो है मकई की रोटी साथ में बैंगन का भरता और पाएंगे कहां, आ जाइए तामिया के रामकली की रसोई में। पचमढ़ी जाते हुए रास्ते में एक छोटा रमणीय स्थल है तामिया।  छिंदवाड़ा से महज पचपन किलोमीटर दूर 
तामिया सतपूड़ा पहाड़ीयों की शृंखला में है। यह आदिवासी इलाका है। बाकी पहाड़ी दर्शनीय स्थलों के मुकाबले यहां भीड़ कम रहती है।पातालकोट यहां से कुछ दूरी पर है। 

पातालकोट यानी ऐसा किला जो पाताल में हो, यानी सतह से नीचे, किला तो नहीं, लेकिन घना जंगल है। कहते हैं कि रावण के बेटे इंद्रजीत यहां शिव भगवान की आराधना के लिए पाताल लोक आए थे। पातालकोट वही जगह है। पातालकोट में घना जंगल है, कुछ झरने हैं। यह आदिवासी बहुल इलाका है। पहले यह गोंड राजाओं के अधीन था, फिर नागपुर के भोंसले राजा का राज चला। फिर अंग्रेज आए। तामिया में उंची पहाड़ीयां और हरित जंगल मन मोह लेती हैं। बरसात के दिनों में यहां की छटा देखने लायक है।
                                                                                                                                                                                   एक छोटा महादेव मंदिर है जो पहाड़ी से करीब एक किलोमीटर नीचे है, जहां जाने के लिए टेड़ी मेड़ी सिड़ियां हैं। जब आप इन सिड़ियों से उतरते हैं, तो घने जंगल के बीच से गुजरते हैं, दोनों ओर उंची पहाड़ीयां और गहरी खाई। गुंजती खामोशी के बीच पाखियों की चहचहाअट आपको मानों कोई अलग दुनिया ले जाता है। मजे की बात यह है कि आप शहर से दूर ना होकर भी शहर के शोरगुल से दूर होते हैं।       
   
तामिया सरकारी विश्राम गृह के चढ़ाई पर आपको रामकली की रसोई मिलेगी। रामकली अपने बेटे- बहुओं और बेटीयों के साथ यहीं अपना डेरा जमाए है। यहां बहुत से रसोई मिलेंगे, सभी रामकली परिवार के हैं। सभी बहुएं हर पल मकई का आटा गुंधते मिलेंगी। छोटी भट्टीयों में मिट्टी के तवों में ये रोटी सेंकीं जाती हैं। परोसने के पहले रोटीयों को सीधे आंच में डाला जाता है, फिर आपके थाली में बैंगन के भरते के साथ।                                                                                                               

अब जब मकई की रोटी की बात चल ही रही है , तो क्यों न इसके फायदे की ओर भी एक नज़र डालें। मकई की रोटी वजन कम करने में अव्वल है। हार्ट और मधुमेह के लिए अत्यंत उपयोगी है। यह ग्लुटेन फ्रि है, मतलब यह है कि जिन्हें ग्लुटेन से एलर्जी होती है, वे मकई की रोटी बखूबी ले सकते हैं। मकई में फाईबर ज्यादा होता है। गेहूं के रोटी की तुलना में मकई की रोटी मधुमेह में ज्यादा लाभदायक है। मकई की रोटी में करीबन नब्बे कैलोरी हेते हैं, जबकि गेहूं की रोटी में एक सौ सैंतिस।  

हम बात कर रहे थे रामकली की। रामकली मकई की रोटी बेलन से बेलती नहीं बल्कि हाथों से थपथपाकर बनाती है। सिगड़ी गैस की नहीं, बल्की चुल्हा है जिसमें जंगल में पेड़ों से गिरी टहनी और लकड़ीयों से चुल्हा सुलगाया जाता है। जब आप यह मकई की रोटी खाते हैं तो धुंएं की एक भीनी भीनी खुशबु मिलेगी और जब ऐसी भीनी खुशबु मिले, तो समझ जाइएगा, हो ना हो, यह रामकली की रसोई की ही है। और यही   रामकली के रसोई की विशेषता है जहां कम नहीं तो पंद्रह लोगों को आजिविका मिल रही है।                      

- डॉ. शिवनारायण आचार्य
   नागपुर, महाराष्ट्र
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