आइए विचार करे - मिलकर सुधार करे
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एक दौपदी के इज्जत पर जब हाथ डाला गया था जिसमे कौरव कामयाब भी नहीं हो पाए थे। तब भी बंसी बजैया ने महाभारत जैसा भयावह युद्ध रच डाला था।ऐसी युद्ध भूमि जहां अपने ही अपने अतिप्रिय जनों को मौत के घाट उतार रहे थे।स्वयम ही पीड़ा दे रहे थे तथा स्वयम ही पीड़ित हो रहे थे।कही धर्मात्मा पितामह भिष्म जो बाणों की शैया पर लेटकर भी कुंती से कहते है -हे कुंती तुम्हारी कोख धन्य है जो ऐसे पुत्रों को जन्म दिया तो कहीं अतिप्रिय गुरू दोर्णाचार्य, ऐसे अतिप्रिय जनों को, ऐसे अतिविशिष्ट जनों को, ऐसे आदर्शपुरूषो को भी नहीं बक्षा गया क्योंकि धर्म सर्वोपरि है। संपूर्ण धरा पर नारी की अस्मिता से बढ़कर, नारी के गौरव से बढ़कर कुछ भी नहीं है। पर आज बेटियों को तार तार कर दिया जा रहा है। क्या दो वर्ष की, क्या चार वर्ष की, क्या चालीस की, क्या अस्सी की।
उस पर भी निर्भया तथा मोमिता जैसे पारदर्शी तथा जघन्यतम अपराध वाले केश में भी पापियों को वकील मिल जाते है।वो भी बड़े आसानी से क्या ये निंदनीय एवं विचारनीय सत्य नहीं है? फिर हमारे ताकतवर राजनेता जन जो ऐसे केसो पर भी अपनी कुर्सी और पार्टी की चिंता में रहते है।क्या ये भयावह नहीं है कि ये लोग मेरी पार्टी तथा तेरी पार्टी वाले रेप केसेस पर लड़ाइयां करते है। जबकी इन नेताओं का परम धरम बनता है कि एकजुट होकर, पुरजोर प्रयास के साथ इन बच्चियों की रक्षा करे इनके साथ हुए अपराध पर इन्हें उचित समय पर न्याय दिलवाए और ना कर पाए तो इस्तीफा दे दे। हमे इस ओर भी ध्यान केन्द्रित करने की जरूरत है कि किस तरह से हम अपवित्रता के चलन को आकर्षित नाम देकर धड़ल्ले से अपनाते चले जा रहे है।
जैसे सिगरेट, शराब, अंग प्रदर्शन अमर्यादित स्त्री-पुरुष मित्रता, अपवित्र धरावाहिक और फिल्में बॉलीवुड इंडस्ट्री भी कला, अभिनय और मनोरंजन, संस्कार से ज्यादा बच्चों को अमर्यादित तथा अपवित्र फिल्में परोस रही है ।हम अपने बच्चों को ऐसे वातावरण की वजह से उचित संस्कार देने में असमर्थ है। संस्कारों के बिना पवित्रता की स्थापना नहीं की जा सकती।ऐसी बातों का एकजुट होकर हमें पुरजोर विरोध करना चाहिए। कानून और सरकार को इस चलन पर भी ध्यान केन्द्रित करने की जरूरत है "तारीख पर तारीख " विशेष रूप से मोमिता और निर्भया जैसी बेटियों के केस में जिनके साथ जघन्य अपराध हुआ है। इन बच्चियों को उचित समय पर यदि न्याय मिलेगा तो मौत से बद्तर जिंदगी जी रहे माता पिता के दर्द को थोड़ी तो राहत मिलेगी।इस मामले में सरकार तथा कानून को थोड़ा सा संवेदनशील तथा जिम्मेदार होने की जरूरत है।
जब किसी भी परिवार का जीव प्राकृतिक मौत से इस लोक से परलोक जाता है तो बेपनाह पीड़ा होती है। जब वो बीमारी, दुर्घटना, आत्महत्या से जाता है तब भी बेपनाह पीड़ा होती है। जब वो अकाल मृत्यु से जाता है, युवावस्था मे जाता है तब परिवार जिंदा लाश बनकर जीता है। पर जब परिवार की इज्जत पर आच़ आती है जब माता-पिता के जिगर के टुकड़े को बिना किसी दोष के तार तार कर दिया जाता है। तब उस परिवार की स्थिति मौत से भी बद्तर हो जाती है। इसी तरह से यदि जघन्य अपराध बढ़ता रहा तो उसका परिणाम क्या होगा समय रहते कानून तथा सरकार को ये समझने की जरूरत है।
- पूनम हिंदुस्तानी
नागपुर, महाराष्ट्र