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'नई सोच'


आज के माहोल में अगर हमने अपनी सन्तान को पुरी आजादी दे दी, तो कई बच्चे पूरी तरह बिगड जाते हैं। तो कोई इतने समझदार होते हैं। सलीके से ही अपना जिवन बिताते हैं। जो बिगड जाते हैं; अपने मौँ बाप की परवाह नहीं करते। अगर वह कुछ अपने बच्चे को अच्छा समझाने जाते हैं। तो वह सुनते नहीं हैं और उलटा जवाब देकर अपने बडों की बेइज्जती कर देते हैं। ऐसे ही बच्चों को आगे पछताना पडता हैं।

धनराज अपनी इकलौती बेटी शगुना ही हरकतो से बहुत परेशान रहते थे। शगुना लाडप्यार से बिगड गई थी। अलग अलग लडकों के साथ घूमना पारटी करना, देर रात घर आना, माँ के पूछनेपर बेरूखी से जवाब देना, जादातर घर से बाहर ही रहती कभी कभी तो रात को आती ही नहीं सुबह आती शगुना के मौँ बाप को यही लगता। हमने इसे इतनी छूट नहीं देनी चाहिये थी। लड़के शगुना के इस आदत का फायदा उठाते रहते। एक लडकेने ऐसा फायदा उठाया की शगुना से रिलेशन बनाया। शगुना के दौलत का पूरा फायदा उठाने लगा। अपना घर बनाया। धोरे धीरे अपना बँक बँलेंस भी बढ़ाने लगा, एक दिन शगुना ने उससे शादी की बात की तो उसने टाल दिया इतनी जल्दी क्या हैं बोलकर, इसी लडके का नाम समीर था। 

आजकल लड़के लड़कीया सोच समझकर फैसला लेती नहीं हैं। जिन्दगी को जवाँ बनाकर रख दिया। खेले हारे छोड दो एक को दुसरे को पकडो, माँ बाप अगर कुछ बोलते हैं तो उनके भले के लिए बोलते हैं। क्योंकी उनको अपनी औलाद की फिकर होती हैं। जमाने का तजरबा होता हैं। इन्सान की पहचान होती हैं। क्योंकी उन्होंने अपनी आँखो से दुनिया को देखा होता हैं। लेकिन औलाद यह सब समझती नहीं हैं। आये दिन खुबरे पढती हैं सुनती हैं। कुछ कुछ ऑँखो से भी देखती हैं। चेकिन वह सब बाते अपने जिवन में नजर अंदाज करती हैं। अगर हम जीवन को सोच समजकर अपने बड़ोके नजरिये से देखकर जिवनसाथी को अच्छे से परखकर अपनी जिन्दगी जिये तो सदा खुशीयों से धोरे रहेंगे हम, इतनी खुशीयाँ मिलेगी की आँचल में संभालना मुश्कील होगा, चेकिन शगुना ने ऐसा नहीं किया पांच साल रिलेशन में रहने के बाद समीर से

 अलग हो गई। इन पांच सालो में शगुना ने समीर को शादी के लिए बोला चेकिन वह टालत गया। चेकिन समीर के आखरी जवाब से शगना हिल गई। समीर बोला ऐसी बदचलन बिगडा हुई लड़की से मैं शादी करके अपनी जिन्दगी नर्क नहीं बनाना चाहता। यह सुनकर शगुनाक दिलपर जबरदस्त आघात हुआ अब तो वह पूरा टाईम नशे में रहती थी। उसके ग्रुप में एक आनद नाम का लडका था। उसने भी शगना को बीच बीच में समझाने की कोशीश को था। चाकन तब शगुना का जवाब रहता था की, तुम उससे जलते हो, अभी शगुना जब नशे में रहता तो आनंद ही उसे संभालकर उसकी गाड़ी तक लाता। कई बार शगुना कार चलाने के हालत में नहीं रहती तो आनंद उसे घर छोड़ देता आनंद उसे पहले से पसंद करता था। आनंद को पता था शगुना अच्छी लड़की हैं। चेंकिन ना समझ है। भले बूरे की पहचान नहीं हैं। यही सब बाते ख्द हो बडबडाते हये अपने दिल को समझा देता आनंद तो साधारण घर का और बहुत मेहनती और हाशियार लड़का था। कुछ दिनो से शगूनाके घर शगूना को पहुंचाने आ रहा था। आनंद को देखकर शगुना की माँ को बहुत खुशी होती थी। शगुना को उसके कमरे में पहुंचाकर शगुना की मो के साथ कुछ देर आनंद बैठ जाता। आनंद के आने से घर का माहोल ठोक हो रहा था।

शगुना के माँ को लगने लगा खुशीयों फिर से लौटने लगो, अब सब कुछ ठीक हो जायेगा, जब आनंद शगुना के माँ के पास बैठता तो शगुना की माँ आनंद को उसके भविष्य के बारे में पुछती थी। आनद कहता अभी आगे बहुत पढ़ना है । मुझे मेरी माँ का सपना पूरा करना हैं। मूझे बहुत आगे जाना हैं। शगुना की माँ ने शादी के बारे में पुछा तो आनंद ने जवाब दिया। शादी के बारे में में अभी नहीं सोच सकता आंटी अभी टाईम हैं। यह सब सुनकर शगुना को माँ चुप हो गई और आगे बोलती भी क्या, आनंद ने कहाँ शगूना मेरी दोस्त थी। पढ़ाई में भी अच्छी थी मैने सोचा था हम दोनो मिलकर आगे बहुत पढेंगे चेंकिन शगुनाने अपना रास्ता ही बदल दिया। उसे देखकर दुख होता हैं। इसलिए उसकी मदद करता हैूँ। आनंद बहुत होशियार था स्कॉलरशिप पर आगे पढ़ रहा था। दो साल के बाद आनंद को फॉरेन जानेका चान्स मिला तब आनंद शगुना की माँ से मिल्ने आया। बोला आन्टी मुझे अगले महिने फॉरेन जाना हैं। 

मेरी माँ का सपना अब पूरा हो जायेगा मुझे आरशिवाद दिजीये। आंटी ने कहा बेटा हमें भूल तो नहीं जावोगे। आनंद ने कहां आप केसी बाते कर नही में आपको और अपने देश को कैसे भूल सकता हैं। अपने देश में था। इसलिए आज वह सात बजे मंदौर पहुंचा पूजा करके दर्शन करके निकला। तो रास्ते में बजे मंदोर जा रहा था। आनंद हर सोमवार शाम को मंदीर जाता था। सुबह टाईम नहीं मिलता के नजरों के सामने अपनी माँ का चेहरा आ रहा था। वह शिवभक्त था सोमवार को शाम सात यह हमारे आगे कैसे जा रहा। आनंद के दो साल पूरे होने वाले थे आनंद बहुत खृश था। आनंद लगाकर पढ़ाई कर रहा था। इसलिए उसके क्लास में उसके कुछ लडके दृश्मन बन गये। की जिवन ठीक से शूरू हुआ और उधर यू. एस. में आनंद की पढ़ाई शुरू हुई। 

आनंद बहुत दिल आनंद को शगुना को देखकर बहुत खुशी हुई और आनंद खुशी खुशी चला गया। इधर शगुनाका शगुना ने आनंद को हिम्मत दी की तुम आन्टी की फिकर मत करना मैं उनका पूरा ध्यान रखंगी कर और अपने देश का नाम रोशन कर, दुसरे दिन आनंद की माँ और शगुना की माँ और सभाळूंगा, माँ ने आनंद के कंधे पर हाथ रखकरे दिलासा दिया की ठीक हैं बेटा तू बहुत तरक्की आपके सपने पूरे करने ही तो जा रहा हैं। माँ आप ही हिम्मत हारेगी तो में कैस खुदको आया और माँ को गले लगाकर बोला माँ दो साल तो चुटकीयों में गुजर जायेगे आपका बेटा तो लिया, की माँ अपने ऑँसू छुपाने की कोशीश कर रही हैं। तो उसने पॅकाग छोडकर माँ के पास बहुत हो रही थी। चेकिन उसकी आखों में बार बार पानी छलकता जा रहाथा। आनंद ने देख विदा ली। घर आकर अपनी जाने की तैयारी कृरने लगा। उसे देखकर आनंद की माँ खुश तो किया तब तो चुटकियों में देश की परेशानीयों दूर हो जायेगी इतनी सारी बाते करके आनंद ने आदमी ज्यादा नहीं कर सकता सबने यानी पूरी जनताने सभी देशवासीयोने मिलकर यह काम आदमीयों को टिकने नहीं देते। वेसे तो आन्टी जी बहत सारी बाते हैं। चेकिन एक अकला वह करके दिखाते नहीं। ऐसे नहीं की सभी ऐसा करते हैं । 

कुछ कुछ हैं इमानदार चेकिन अच्छ हक नही छोनना चाहीये, मजदूरों को उनको मजदूरी बराबर मिलनी चाहोये चेकिन जो बोलते हैं कंपनीयों के मालिक अपनी छवि बनाये रखने के लिए लंबे लंबे भाषण देते हैं की, गरीबों का इसी विषय पर ध्यान केन्द्रित करना हैं सबका, दुसरी बात लोगों के सामने नेता बड़े बड़े है अपने भाषणों में अपना देश छोड़कर पराये देश में काम करते हैं। जब मैं पढ़कर आवुगा तब टाइम तो यह सब समझते ही नहीं। पता सबको हैं चेंकिन उसपर ध्यान देते नहीं और फिर कहते एकही कमी हैं। मेहनत तो बहुत करवा लेते हैं लेकिन उसका मेहनताना ठीक से देते नहीं। बाहेर उसके जो सहपाठी थे। जो उससे जलते थे उन्होंने मूँह पर कपडा बांधिकर दो पिछे और आगे से आकर आनेंद पर हमला किया और भाग गये, वहाँ से कुछ लोग गुजर रहे थे। उन्होंने आनंद को उठाकर हॉस्पीटल पहुँचाया आनंद ठोक तो हो गया चेकिन आनंद की शरीर की एक साइंड लकवा मार गई। 

अब वह अपनी बाये साईड से कुछ नहीं कर सकता था फिर भी उसने हिम्मत नहीं हारी शिवजी का नाम लेकर अपने कुछ अच्छे फ्रेंडस की मदत से परिक्षा दी। रिझल्ट आन में टाईम था तब तक अपना थोडा इलाज जारी रखा थोडा सुधार हुआ। चेकिन पूरों तरह ठाक नहीं हुआ, उसके पास इतने पैसे तो नहीं थे इसलिए अपनी डिग्री लेकर अपने देश वापस आया। यहाँ पर उसने किसी को बताया नहीं सारे चिता करेंगे अचानक आनंद को ऐसी हालत में देखकर सब बहुत दुःखी हुये। आनंद ने सारी घटना बताई चेकिन उसने किसी के विरूद्ध रिपोर्ट नहीं की, इसलिए की उसे जल्द से जल्द अपने देश आना था। आनंद को थोडा अंदाज था कीन हो सकते चेकिन वह चुप रहा। शगुणा भी एअर पोर्ट आई थी उसको उसको हिम्मत दी और आनंद को अपनी पापा की कंपनी में नौकरी दी, धिरे धिरे शगुना की सहायतासे अपने सपने पूरे करने की कोशीश कर रहा था आनंद कुछ दिन साथ काम करने के बाद सबकी मर्जी से शगुना ने आनंद से शादी कर ली और दोनो परिवार को खुशीयाँ दी, शगुना का भी जिवन सुधार गया और आनंद की ताकत शगुना बनकर हिम्मत से काम में जूट गई और अपने जिवन को एक नया मोड दिया, धिरे धिरे आनंद भी ठक हो गया।

 - मालती माणिक

   लखनऊ, उत्तर प्रदेश
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