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बूंदों की झालर


प्यार भरी बातें हैंकरती है,
सावन की रिमझिम।

काली बदली छाई,मस्तानी रुत आई,
पुरवा की डोली में,बरखा रानी आई।
बादल की दुल्हन लगती है,
सावन की रिमझिम।

भीगा भीगा मौसम,भीगा तन मन यौवन,
भीगी भीगी सीं हैं,भीगे दिल की धड़कन।
ख्वाबों को गीले करती है,
सावन की रिमझिम।

रात मिलन की आई,मस्त फुहारें लाई,
सोलहवे सावन ने,तन में ली अंगड़ाई।
रह रह कर छेड़ा करती हैं,
सावन की रिमझिम।

सूरज,चांद,सितारे,बौंछारों के मारे,
मेघों की नगरी में,छिप जाते हैं सारे।

बूंदों की झालर लगती है,
सावन की रिमझिम।

गीत बहारों के गाती है
सावन की रिमझिम।

 - गीतकार : अनिल भारद्वाज 

    एडवोकेट उच्च न्यायालय, ग्वालियर
काव्य 913842342432336942
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