बरखा आनंदमयी
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हर ओर खुशहाली छाई
खेत खलियान खिल उठे
ऋतु ने ली अंगड़ाई।
पेड़ पौधों से झड़ी मिट्टी
यौवन का रूप है पाया
धरती के श्रींगार में
फिर चार चांँद लगाया।
बच्चों ने भी मौज उड़ाई
पानी में छपाक लगाई
छोटी-छोटी नाव बनाकर
पानी के ऊपर चलाई।
बड़े बुढ़े भी कहाँ रुके अब
बरखा का आनंद पाया
गरमा-गरम पकौड़े संग
चाय का लुफ्त उठाया।
बरखा की बौछारों ने
चारों ओर खुशियां बिखेरी
पशु-पक्षी, पेड़ -पौधे, जन-जीवन मे
धरती पर संजीवनी बिखेरी।
- मेघा अग्रवाल
नागपुर, महाराष्ट्र