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कवियेत्रियों ने ‘आईना खुद से मेरा पहले सा रूप मांगे’ विषय की परिचर्चा में सारगर्भित विचार रखे


नागपुर। शहर की जानी मानी संस्था हिंदी महिला समिति द्वारा आयोजित परिचर्चा के कार्यक्रम के अंतर्गत बड़ी संख्या में महिलाओं ने हिस्सा लिया परिचर्चा का विषय ‘आईना खुद से मेरा पहले सा रूप मांगे’ था जिसपर सभी ने बहुत सारगर्भित विचार रखे।
कार्यक्रम का संचालन अध्यक्षा रति चौबे ने किया।’

सर्वप्रथम गीतू शर्मा ने अपनी रचनात्मक कविता द्वारा कहा की ‘फिल्टर और मेकअप के चलन में आईने ने भी क्या मांग लिया, आईना भी तो अब झूठ ही बोले, सच का अब अस्तित्व ही कहां रहा, बात तो तब जब आईना वजूद मांगे, आईना खुद से मेरा पहले सा रूप मांगे।"

तत्पश्चात गार्गी ने अपनी काव्य रचना के माध्यम से अपने विचार रखे की ‘दे  दूं धोखा सारे जमाने को की मैं हूं जवां।, पर क्या खुद से छिपा पाऊंगी मैं, ऐ आईने तू ही बता सच ये, जो मैं हूं आज वही सच है तू भी वही दिखा।’

इसके बाद निशा जी ने अपने वक्तव्य में बताए की आईने को सोच समझ कर मांग करनी चाहिए रूप सौंदर्य भी सहेजने और संभालने की वस्तु है ऐसे कैसे अपना रूप कोई दिखा दे किसी को भी।

तत्पश्चात निवेदिता शाह ने बताए की आईना तो वही रहता है किंतु रूप सौंदर्य परिवर्तन शील है जो समय के साथ निरंतर बदलता जाता है समय के वेग में सब कुछ बदल जाता है।

फिर सुषमा जी ने अपने वक्तव्य में बताए की आईना देखते देखते तो बचपन ,जवानी सब बीत गई अब अचानक आईने की ऐसी मांग क्यों आईना मन की थाह लेकर आंतरिक सौंदर्य को क्यों नही देखता  , जीवन तप का आकलन कर सत्कर्म और सफलता देखेगा तब आईने को सब सुंदर लगेगा।

इसके बाद भगवती जी ने अपनी सुंदर कविता के जरिए अपनी बात रखे की जीवन बसंत एक सा नहीं रहता निरंतर परिवर्तनशील है ना एक सी काया रही ना एक सी छाया तो आईना क्यों भरमाया।

तत्पश्चात किरण जी ने अपनी बात रखते हुए कहे की जैसा रूप होगा आईना वही दिखायेगा समयानुसार खिलता चेहरा मुरझाएगा , तो आईना वही बताएगा उम्र और सूरत हमेशा एक से नही रहते।

इसके बाद ममता जी ने अपने वक्तव्य में बताए की आईना मेरा सच्चा साथी है जैसी मैं रही वैसे ही आईना दिखाता गया , आईना अगर मुझसे पहले जैसा रूप मांग रहा है तो पहले मुझे भी पहले जैसा रूप दे दे।

फिर मंजू जी ने बताए की आईना कभी नही बदलता ना समय के साथ ना परिस्थिति के साथ बदलते तो हम है हमारा रूप स्वरूप है।

इसके बाद  रश्मिजी ने आईने से आग्रह करते हुए कहा की चाहे तो ले ले आइना मेरा रूप आईना क्या जनता नही जीवन पथ पर चलते हुए कितने ही संघर्षों का सामना करते हुए अपना पूर्ववत रूप खोया है तो अब जैसे है वैसे ही आईना दिखायेगा।

तत्पश्चात अमिता जी बताए की कभी आईना देखकर अपने रूप पर ही मोहित होते थे अब झुर्रियों और सिलवटों में जीवन की सारी गाथा झलकती है आईना झूठ नही बोलता जैसे होंगे वही दिखेंगे ना की जैसे हम चाहते है वैसे दिखेंगे।

इसके बाद निवेदिता पाटनी ने अपनी सुंदर रचना में बताए की आईना देखने की आदत हो गई है जब जब भी आईना देखा अपने रूप पर इठलाएं, इतराएं अब जब ढल चुका सब तो फिर पहले सा रूप चाहे  आईना भी अब तो कुछ बदल ना पाए।

इसके बाद जिगिशा जी ने अपनी  सुंदर कविता के माध्यम से बताए की आईना हमदम , हमकदम रहा बचपन से ही हर बात में हंसना रोना सुख दुख सब आईने के साथ में जब जब भी आईना देखा खुद में हिम्मत पाई अपनी छवि देख देख कर खुदको सुंदर ही नज़र आई।

तत्पश्चात रेखा जी ने अपनी बात रखते हुए कहे की आईना देखने का भी एक दौर था जीवन की आपा धापी में अपने आप शौक खतम होता गया और आईने से दूरी बढ़ती गई , आईना सच दिखाने में कभी गुरेज़ नही करता।

फिर रेखा जी ने अपनी रचनात्मक कविता के माध्यम से बताए की सावन सा मनभावन रूप सौंदर्य आईना हमेशा ही दिखाता आया है समय के साथ परिवर्तन के बाद भी ऐसे ही रूपवान दिखाए तो कोई बात हो।

इसके बाद रूबी जी ने अपने वक्तव्य में आईने से ही सवाल जवाब तलब करते हुए कहे की आईना तुम क्या मुझसे मेरा पहले सा रूप मांगते हो मेरे रूप सौंदर्य के तुम ही तो साक्षी रहे हो हमेशा से , एक जगह पर खुद लटके रहते हो मैं ना पोंछु तुम्हें तो मैं क्या कोई कुछ ना देख ओए तुम में, आंतरिक सुंदरता ही चेहरे पर दिखती है इसलिए मैं सुंदर थी और हूं।

इसके बाद नंदिता जी ने अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहे की ऐ आईने सुनो तुम्हारा शुक्रिया जीवन में खुद को सजा संवारकर हमेशा ही तुमने मुझे खूबसूरत ही दिखाया है, इठलाते इतराते मेरा प्रतिबिंब तुममें देखकर मैं फूली नहीं समाती, पर तुम मुझसे पहले सा मेरा रूप ना मांगो क्योंकि बढ़ती उम्र के साथ रूप भी बदला है और पर तुम तो वही रहोगे हमेशा ही।

अंत में अध्यक्षा रति जी ने कहे की कभी किसी दौर में आईना हमजोली हुआ करता था नादान ने आज अचानक ही मुझे पुकारा और मैं हतप्रभ कैसे उससे कहती की वो भी अब पहले जैसा ना रहा अपनी धुंधलाई आंखों बस उस धुंधलाए आईने को देखती रह गई। कार्यक्रम में सखियों के उत्साहपूर्ण सहयोग के लिए अंत में भगवती जी ने सभी का आभार प्रकट किए
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