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परसाई ने अपने समय और आने वाले समय को विरोध का संस्कार दिया : प्रेम जनमेजय


व्यंग्यधारा समूह की 'समकालीन राजनीतिक परिदृश्य में परसाई की प्रासंगिकता' पर ऑनलाइन गोष्ठी

नागपुर। परसाई ने अपने समय और आने वाले समय को विरोध का संस्कार दिया, जो हमें नपुंसक होने से बचाता है। यह विचार वरिष्ठ व्यंग्यकार और व्यंग्य यात्रा के संपादक डॉ. प्रेम जनमेजय (नई दिल्ली) ने व्यंग्यधारा समूह की ओर  से171 वीं व्यंग्य-विमर्श गोष्ठी की श्रृंखला में हरिशंकर परसाई की जन्मशती के अवसर पर 'समकालीन राजनीतिक परिदृश्य में परसाई की प्रासंगिकता'  विषय पर आयोजित ऑनलाइन गोष्ठी में बतौर विशिष्ट अतिथि वक्ता व्यक्त किए। विशिष्ट अतिथि वक्ता के रूप में  सुभाष चंदर (गाजियाबाद),  सेवाराम त्रिपाठी (रीवा) और राजेंद्र वर्मा (लखनऊ) उपस्थित थे। 

डॉ जनमेजय ने कहा कि हमारे कबीर बनने का समय है, क्योंकि परसाई कबीर की राह के रचनाकार थे। विरोध के लिए विचारधारा जरूरी है। परसाई के समय को जानना भी जरूरी है। समय के साथ में चलना होगा। वह साहित्य का स्वर्णकाल था जब हरिशंकर परसाई, शरद जोशी, रवींद्रनाथ त्यागी और श्रीलाल शुक्ल थे। उस दौर में भी व्यंग्य ऐसा लिखा जा रहा था। उस समय भी राजनीति विसंगतियां थीं। परसाई और जोशी ने राजनीतिक विसंगतियों पर ज्यादा लेखन किया। अपने समय की विसंगतियों पर प्रहार किया। लक्ष्य और बाण की धार दोनों की एक थीं। हालांकि बाण कैसा हो और किस पर चलना है यह दोनों का अलग था। परसाई जी ने कहा था कि हम क्षणभंगुर जरूर लिख रहे हैं, लेकिन लिखना जरूरी है। डॉ जनमेजय ने कहा कि अब बदली हुई परिस्थिति में राजनीतिक विसंगतियों का विरोध करना आसान हुआ है।

आरंभ में वरिष्ठ व्यंग्यकार रमेश सैनी (जबलपुर) ने कहा कि वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य पर व्यंग्य लिखने के लिए परसाई जी की तरह साहस चाहिए। आज का व्यंग्यकार कई जगह शोषक के साथ खड़ा है। वह लिखने से पहले नफा-नुकसान के बारे में सोचने लगा है।

वरिष्ठ व्यंग्यकार सुभाष चंदर ने कहा कि परसाई की व्यंग्य चेतना ही उनकी सबसे बड़ी शक्ति थी। परसाई की तरह विषय की गहराई, जनोन्मुखता और प्रहार इन तीन बातों का हमें ध्यान रखना चाहिए। वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य पर व्यंग्य लिखने के लिए हमें परसाई की तरह क्षमता, सामर्थ्य और साहस चाहिए।  आज परसाई की तरह व्यंग्य  नहीं लिखे जा रहे, क्योंकि हममें हिम्मत, क्षमता और सामर्थ्य नहीं है। समकालीन राजनीतिक परिदृश्य में परसाई हमें इसलिए याद आ रहे हैं, क्योंकि हम दूर बैठकर व्यंग्य-कविता लिख रहे हैं। हम चाहते हैं कि परसाई जी की तरह कोई और व्यंग्य लिखें। इमरजेंसी में भी परसाई, शरद जोशी, शंकर पुणतांबेकर, लतीफ घोंघी आदि ने व्यंग्य लिखे। श्री चंदर ने चिंता जताई कि आज पत्र-पत्रिकाओं से राजनीतिक व्यंग्य गायब हो रहे हैं। प्रखर राजनीतिक व्यंग्य बेहद कम आ रहे हैं। इसका दूसरा रास्ता है सोशल मीडिया, जहां हम लिख सकते हैं। उन्होंने अंदेशा जताया कि ऐसा न हो कि डेढ़-दो दशकों में राजनीतिक व्यंग्य लिखना बंद होने की स्थिति आ जाए।

वरिष्ठ व्यंग्यकार सेवाराम त्रिपाठी ने विमर्श की शुरुआत करते हुए कहा कि परसाई के लेखन में अपने समय, युग और समाज का चेहरा दिखाई देता है। परसाई जी ने राजनीति और राजनीतिक स्थिति पर बहुत सधे हुए ढंग से व्यंग्य लिखा। आज परसाई जी के युग से हमारे युग में सौ गुना ज्यादा विसंगतियां हैं। उन्होंने दो टूक कहा कि आज के व्यंग्यकार राजनीति से बचने की कोशिश कर रहे हैं। परसाई जी ने कहा था-जिनका कोई स्वार्थ है, वही राजनीति से दूर है। राजनीति को नकारना भी एक राजनीति है। श्री त्रिपाठी ने कहा कि परसाई जी का लेखन सार्थक,  समकालीन, सार्वजनीन और सार्वकालिक है। अपने समय के सवालों से जुड़ने की ताकत देता है। उनका लेखन एक प्रतिबद्ध आदमी के क्रमबद्ध विकास का लेखन है । परसाई के लेखन में पूरा युग बोलता है। परसाई का पूरा लेखन भारत के लोकतंत्र की आलोचना पर आधारित है। उनकी राजनीतिक चेतना निर्भीकता के साथ जागृत और सचेत थी। परसाई ने लेखन को औजार की तरह इस्तेमाल किया और साहस के साथ लिखा।

तत्पश्चात वरिष्ठ व्यंग्यकार राजेंद्र वर्मा ने कहा कि परसाई जी से क्षमता, हिम्मत और सामर्थ्य लेंगे तो ही राजनीतिक व्यंग्य लिखे जा सकेंगे। आज के राजनीतिक परिवेश में धर्म का इस्तेमाल हो रहा है। यह मूल मुद्दे से ध्यान भटकाने की कोशिश है। परसाई जी कहते थे कि राजनीति बहुत बड़ी नियामक शक्ति है। उन्होंने राजनीति पर कई व्यंग्य लिखे जिनमें से एक है 'हम बिहार में चुनाव लड़ रहे हैं'।  वर्मा जी ने इस व्यंग्य के कई तीखे और धारदार अंश पढ़कर सुनाया। इसके अलावा 'आवारा भीड़ के खतरे', 'ठिठुरता हुआ गणतंत्र', 'सूरज छिपा हुआ है' आदि का उल्लेख करते हुए धारदार व्यंग्य की बानगी रखी। श्री वर्मा ने कहा कि हम परसाई जी की तरह नहीं, लेकिन उनके आसपास तो व्यंग्य लिख ही सकते हैं।

गोष्ठी का संचालन वरिष्ठ व्यंग्यकार रमेश सैनी ने किया। संयोजन और संचालन सहयोग प्रखर व्यंग्य आलोचक डॉ रमेश तिवारी (नई दिल्ली) का रहा। आभार प्रदर्शन टीकाराम साहू 'आजाद' ने किया। ऑनलाइन व्यंग्य विमर्श गोष्ठी में रामस्वरूप दीक्षित, बुलाकी शर्मा, रेणु देवपुरा, वीना सिंह, हनुमान प्रसाद मिश्र, प्रदीप मिश्र, प्रभात गोस्वामी, डॉ. महेंद्र कुमार ठाकुर, राजशेखर चौबे, डॉ किशोर अग्रवाल, डॉ बृजेश त्रिपाठी, अभिजित दुबे, विवेक रंजन श्रीवास्तव, मुकेश राठौर,परवेश जैन, गौरव सक्सेना आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।
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